Thursday 12 May 2022

राजनीति ... कठपुतलियाँ

वंश,कुल,नाम,जाति,धर्म, संप्रदाय
भाषा,समाज,देश के सूक्ष्म रंध्रों से
रिसती सारी रोशनियों को
 दिग्भ्रमित बंद कर दिया गया
राजनीति की अंधेरी गुफाओं में...।

चांद,सूरज,नदी,पोखर,जंगल,फूल
चिड़िया,पशु,धूप,पहाड़ प्रकृति को
चुपचाप रंग दिया गया 
राजनीतिक तूलिकाओं  से ...।

भूख-प्यास,
ध्वनियां-प्रतिध्वनियाँ
तर्क-वितर्क,  विश्लेषण 
शब्दकोश, कल्पनाएँ
यहाँ तक कि
जीवन और मृत्यु की
 परिभाषा के स्थान पर
अब नये शिलापट्ट अंकित किये गये हैं
जिस पर लिखा गया है राजनीति...।

विषय-वस्तुओं,भावनाओं,
के  राजनीतिकरण के इस  दौर में
कवि-लेखक,चिंतकों की
लेखनी का 
प्रेम और सौहार्द्र के गीत भुलाकर
पक्ष-विपक्ष के
ख़ेमे में विभाजित होकर
बेसुरी खंजरी बजाते हुए
अलग-अलग स्वर में
राजनीति-राजनीति-राजनीति का
एक ही राग अलापना
विवादित होकर
प्रसिद्धि पाना सबसे सरल लगा...।

हर चित्र को 
राजनीति के कीचड़ से
लीप-पोतकर 
हाइलाइट करना,
राजनैतिक बगुलों का
बौद्धिकता के तालाब पर
आधिपत्य कर
वैश्विक अंतर्दृष्टि को
सीमित परिदृश्यों में बदलना,
राजनैतिक उन्माद से भरे
असंवेदनशीलता के नये युग में
आओ हम कठपुतलियाँ हो जाने पर
गर्व करें।
-------
-श्वेता सिन्हा

8 comments:

  1. आज कल हर बात का और हर विचार का , धर्म का और जाति का राजनीतिकरण हो गया है । लेकिन सोचने की बात ये है कि ये उन्माद जैसा क्यों फैल रहा है । जिनके हाथ में सत्ता है वो ऐसा उन्माद भला क्यों फैलाएंगे ? साफ है कि जो खाली हाथ हैं उनको ऐसा करने से लाभ मिलने की संभावना है । लोग अपनी बुद्धि को गिरवी रख यदि कठपुतली बनना ही चाहते हों तो क्या किया जा सकता है ? आज इतना राजनैतिक प्रभाव बढ़ गया है कि दोस्ती के रिश्ते खतरे में आ गए हैं । सब पर ही पक्ष / विपक्ष की राजनीति का गहरा असर हो रहा है ।
    विचारणीय रचना ।

    ReplyDelete
  2. राजनीति को अब राज - अनीति कहना उचित होगा। जिस शब्द में ही 'नीति' निहित था उसी को नैतिकता का त्याग करने का, षडयंत्र और साजिश का पर्यायवाची बना दिया गया है। अब तो छोटे बच्चे भी कहते हैं, मम्मी मेरे साथ पॉलिटिक्स मत करो। घरों, दफ्तरों में भी किसी के खिलाफ कोई बुरा बर्ताव होता है तो कहा जाता है कि लोग मेरे साथ राजनीति/ पॉलिटिक्स कर रहे हैं।
    बहुत ही प्रभावशाली एवं चिंतनपरक रचना है।

    ReplyDelete
  3. कटु सच्चाई व्यक्त करती बहुत सुंदर रचना, स्वेता दी।

    ReplyDelete
  4. भूख-प्यास,

    ध्वनियां-प्रतिध्वनियाँ

    तर्क-वितर्क,  विश्लेषण 

    शब्दकोश, कल्पनाएँ

    यहाँ तक कि

    जीवन और मृत्यु की

     परिभाषा के स्थान पर

    अब नये शिलापट्ट अंकित किये गये हैं


    समय के इस पड़ाव पर सही आघात किया है आपने।हम सब साथ मैं शायद इसके लिये ज़िम्मेदार है।
    सुंदर रचना।

    ReplyDelete
  5. बौद्धिकता के तालाब पर
    आधिपत्य कर
    वैश्विक अंतर्दृष्टि को
    सीमित परिदृश्यों में बदलना,
    राजनैतिक उन्माद से भरे
    असंवेदनशीलता के नये युग में
    आओ हम कठपुतलियाँ हो जाने पर
    गर्व करें। ...
    आज के परिदृश्य पर सार्थक रचना ।

    ReplyDelete
  6. हर चित्र को
    राजनीति के कीचड़ से
    लीप-पोतकर
    हाइलाइट करना,
    राजनैतिक बगुलों का
    बौद्धिकता के तालाब पर
    आधिपत्य कर
    वैश्विक अंतर्दृष्टि को
    सीमित परिदृश्यों में बदलना,
    राजनैतिक उन्माद से भरे
    असंवेदनशीलता के नये युग में
    आओ हम कठपुतलियाँ हो जाने पर
    गर्व करें।
    सही कहा राजनीति का ये कीड़ा सब कुछ निगल रहा है और इसके सबसे बड़े सहायक हैं मोबाइल और सोशल मीडिया...
    राजनीति का ज्ञान हम सरीखों ने तो व्हाट्सएप से लिया है पक्ष विपक्ष जाति धर्म हिन्दू मुस्लिम का ज्ञान पहले इतना कहाँ हुआ करता था ....
    अब ज्ञान ऐसा बढ़ा कि जो सुने पढ़े उसी के अनुयायी बन कठपुतली ही तो बन रहे हैं
    बहुत ही विचाररणीय सृजन।

    ReplyDelete
  7. मानव चित्र को साकार करती हुई भावपूर्ण पंक्तियां

    ReplyDelete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...