Friday, 31 March 2017

नीरवता से जीवन की ओर

अभी अंधेरे की चादर
पसरी है बाहर,
अपने कच्चे पक्के छोटे बडे
घरौंदों मे खुद को समेटे
गरम लिहाफों को लपेटे
सुख की नगरी मे विचरते
जहान के झमेले से दूर
सब सुखद नींद मे है,
मेरे छत के पास
उस पीपल मंे हल्की हल्की
सुगबुगाहटें होने लगी,
रात थकी सी चुपचाप
तन्हा राहगीर सी
उजाले के आस में
अपने विश्राम के इंतज़ार में हो,
आसमां का एक कोना
अब स्याह से रक्तिम होने लगा
चिड़ियों की चीं चीं बढ़ने लगी
दूर मंदिर में घंटियों का
मधुर स्वर रस घोल गया
अंतिम तारा भी खो गया,
समन्दर की नीले लहरों में
रतनारी  बड़ी सी बिदियाँ
नभ के माथे पे उदित हुई,
सरसराती शीतल पवन
हौले से कलियों को चूमने लगी
बूंदें ओस की दूबों पर
बूटों से झिलमिलाने लगे
झुंड पंक्षियों के झूमने लगे,
फुदक फुदक कर.गौरैया
मे नृत्य दिखाने लगी
एक नयी सुबह ने पलकें
अपनी खोली है फिर से
आपके जीवन में नयी आशा
नवजीवन का संचरण करने
बाहों को पसारे मुस्कुराईये
दिल से स्वागत कीजिए
अपने जीवन के एक नये दिन का।

     #श्वेता🍁



Thursday, 30 March 2017

मेरे दिल को छू गये

मेरे दिल को छू गये हो तुम,
एहसास मेरा चमन हो गया।
खुशबू बन गये तुम जेहन के,
गुलाब सा तन बदन हो गया।
पंखुड़ियाँ बिखरी हवाओं में,
चाहत फैला गगन हो गया।
ज़माने के शोर से अन्जान हूँ,
खुमारी में डूबा ये मन हो गया।
महकती साँसे कहने लगी है,
तुझसे मोहब्बत सजन हो गया।
न टूटे कभी  नेह का ये बंधन,
दिल से दिल का लगन है गया।
         #श्वेता
  

रिश्ता अन्जाना हो गया

तुमसे बिछड़े तो इक ज़माना हो गया,
जख्म दिल का कुछ   पुराना हो गया।

टीसती है रह रहकर  यादें बेमुरव्वत,
तन्हाई का खंज़र कातिलाना हो गया।

नमी पलकों की पूछती है दरोदिवारों से,
हर आहट से क्यूँ रिश्ता अन्जाना हो गया।

लहर मोहब्बत की नहीं उठती है दरिया में,
अब साहिल ही समन्दर से बेगाना हो गया।

रोज ही टूटकर बिखरते है फूल सेहरा में,
बहारों का न आना तो इक बहाना हो गया।

    #श्वेता🍁

Tuesday, 28 March 2017

ढलती शाम

बस थोड़ी देर और ये नज़ारा रहेगा
कुछ पल और धूप का किनारा रहेगा

हो जाएँगे आकाश के कोर सुनहरे लाल
परिंदों की खामोशी शाम का इशारा रहेगा

ढले सूरज की परछाई में चिराग रौशन होगे
दिनभर के इंतज़ार का हिसाब सारा रहेगा

मुट्ठियों में बंद कुछ ख्वाब थके से लौटेगे
शज़र की ओट लिये एक चाँद आवारा रहेगा

अँधेरों की वादियों में तन्हाईयाँ महकती है
सितारों की गाँव में चेहरा बस तुम्हारा रहेगा


         #श्वेता🍁



चूड़ियाँ

छुम छुम छन छन करती
कानों में मधुर रस घोलती
बहुत प्यारी लगी थी मुझको
पहली बार देखी जब मैंने
माँ की हाथों में लाल चूूड़ियाँ
टुकुर टुकुर ताकती मैं
सदा के लिए भा गयी
अबोध मन को लाल चूड़ियाँ
अपनी नन्ही कलाईयों में
कई बार पहनकर देखा था
माँ की उतारी हुई नयी पुरानी
खूब सारी काँच की चूड़ियाँ

वक्त के साथ समझ आयी बात
कलाई पर सजी सुंदर चुड़ियाँ
सिर्फ एक श्रृंगारभर नहीं है
नारीत्व का प्रतीक है ये
सुकोमल अस्तित्व को
परिभाषित करती हुई
खनकती काँच की चूड़ियाँ
जिस पुरुष को रिझाती है
सतरंगी चुड़ियों की खनक से
उसी के बल के सामने
निरीह का तमगा पहनाती
ये खनकती छनकती चूड़ियाँ

ब्याह के बाद सजने लगती है
सुहाग के नाम की चूड़ियाँ
चूड़ियों से बँध जाते है
साँसों के आजन्म बंधन
चुड़ियों की मर्यादा करवाती
एक दायित्व का एहसास
घरभर में खनकती है चुड़ियाँ
सबकी जरूरतों को पूरा करती
एक स्वप्निल संसार सजाती
रंग बिरंगी काँच  की चूड़ियाँ

चूड़ियों की परिधि में घूमती सी
अन्तहीन ख्वाहिशें और सपनें
टूटते,फीके पड़ते,नये गढ़ते
चुड़ियों की तरह ही रिश्ते भी
हँसकर रोकर सुख दुख झेलते
पर फिर भी जीते है सभी
एक नये स्वप्न की उम्मीद लिए
कलाईयों में सजती हुई
नयी काँच चूड़ियों की तरह
जीवन भी लुभाता है पल पल
जैसे खनकती काँच की चूड़ियाँ

               #श्वेता🍁

Sunday, 26 March 2017

तुम्हारा एहसास

खामोशियों में भी
दूरियों में भी
कुछ तड़पता है
कुछ कसकता है
वो न हो कही भी
फिर भी
हर साँस के साथ उनको
महसूस करते है
जैसे महसूस होती है हवा
अदृश्य प्राणवायु की तरह
जैसे महसूस करते है
अपने रब्ब के वजूद को
खुली बंद पलकों में
जैसे महसूस करते है
धड़कते हुए सीने को
वैसे ही चलती साँसों के
साथ उनको महसूस
कर सकते है
अपने एहसासों से छू
जाते है वो हर लम्हा
जैसे सूरज धरती को
चूमता है धूप बनकर
जैसे चाँद लिपटता है
रात से अपनी श्वेत
किरणों का दुशाला लिए
वैसे ही उनका एहसास
बादलों की तरह
मेरे जेहन के आसमां को घेरे
 हर पल हर घडी़
अपनी मुस्कान मे
तड़प मे बहते अश्कों मे
मचलते जज़्बातों मे
उनका एहसास
बस उनको महसूस करते है

        #श्वेता🍁
 

Friday, 24 March 2017

अब शाम होने को है

अब शाम होने को है
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आसमां के कोर गुलाबी होने लगे
अब शाम होने को है।
हवाओं ने झुरमुटों को सहलाया
अब शाम होने को है।

बढ़ने लगी आसमां की तन्हाईयाँ
फिजांं में खामोशियों का रंग चढ़ा
बेआवाज़ लौटने लगे परिंदें भी अब
थके सूरज की किरणें कहने लगी
अब शाम होने को है।

मन के मुंडेर पर आ बैठे खामोश ख्याल
जेहन में आहटों का शोर बढ़ने लगा
क्षितिज के स्याह बादल का टुकड़ा
नम पलकों में ठिकाना ढूँढने लगा
अब शाम होने को है।

दिनभर के शोरगुल से भागकर चुपचाप
शाम की तन्हाई में ख्वाबों के जीने चढ़कर
कसकर मेरे आगोश में लिपटने लगी
तुम हो कही मुझमें ही याद बताने लगी
अब शाम होने को है।

                #श्वेता🍁



तेरा ख्याल

घोलकर तेरे एहसास जेहन की वादियों में,
मुस्कुराती हूँ तेरे नाम के गुलाब खिलने पर।

तेरा ख्याल धड़कनों की ताल पर गूँजता है,
गुनगुनाते हो साँसों में जीवन रागिनी बनकर।

तन्हाई के आगोश में लिपटी रिमझिम यादें,
भींगो जाती है कोना कोना मन के आँगन का।

खामोशियों में फैलती तेरी बातों की खुशबू,
महक जाते है जज़्बात तुम्हें महसूस करके।

जबसे बाँधा है गिरह तेरे दिल से मेरे दिल ने,
कोई दूजा ख्वाब आता नहीं पलकों के दायरे में।


         #श्वेता🍁




मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...