दस्तूर ज़माने की तोड़ने की सज़ा मिलती है
बेहद चाहने मे, तड़पने की उम्रभर दुआ मिलती है
ज़मीं पर रहकर महताब को ताका नहीं करते
जला जाती है चाँदनी, जख्मों को न दवा मिलती है
किस यकीं से थामें रहे कोई यकीं की डोर बता
ख़्वाब टूटकर चुभ जाए ,तो ज़िंदगी लापता मिलती है
जिनका आशियां बिखरा हो उनका हाल क्या जानो
अश्क़ों के तिनके से बने ,मकां मे फिर जगह मिलती है
क्यों लौटे उस राह जिसकी परछाईयाँ भी अपनी नही
चंद ख़ुशियों की चाहत में, तन्हाइयाँ बेपनाह मिलती है
#श्वेता🍁
बेहद चाहने मे, तड़पने की उम्रभर दुआ मिलती है
ज़मीं पर रहकर महताब को ताका नहीं करते
जला जाती है चाँदनी, जख्मों को न दवा मिलती है
किस यकीं से थामें रहे कोई यकीं की डोर बता
ख़्वाब टूटकर चुभ जाए ,तो ज़िंदगी लापता मिलती है
जिनका आशियां बिखरा हो उनका हाल क्या जानो
अश्क़ों के तिनके से बने ,मकां मे फिर जगह मिलती है
क्यों लौटे उस राह जिसकी परछाईयाँ भी अपनी नही
चंद ख़ुशियों की चाहत में, तन्हाइयाँ बेपनाह मिलती है
#श्वेता🍁