Wednesday, 14 June 2017

तेरी तलबदार

तन्हाई मेरी बस तेरी ही तलबदार है
दिल मेरा तुम्हारे प्यार में गिरफ्तार है

तेरे चेहरे पे उदासी के निशां न हो
आँख़े तुम्हारी मुस्कां की तरफदार है

बिन बहार महकी है बगिया दिल की
तेरी रूह की तासीर ही खुशबूदार है

जी नहीं पायेगे तेरी आहटों के बिन
पलभर का साथ तेरा इतना असरदार है

जो भी दिया तुमने रहमत लगी खुदा की
हर एक पल के एहसास तेरे कर्जदार है

       #श्वेता🍁

Tuesday, 13 June 2017

भँवर

स्याह रात की नीरवता सी
शांत झील मन में
तेरे ख्यालों के कंकर
हलचल मचाते है
एक एक कर गिरते
जल को तरंगित करते
लहरें धीरे धीरे तेज होती
किनारों को छूती है
भँवर बेचैनी की तड़प बन
खींचने लगते है
बेबस बेकाबू मन सम्मोहित
अनन्त में उतर जाता है
निचोड़कर प्राण  फिर
छोड़ देता है सतह पर
निर्जीव देह जिसे सुध न रहती
बहता जाता है मानो
जीवन के प्रवाह में अंत की तलाश में

#श्वेता🍁




तुम्हारे लिए

ज़हन के आसमान पर
दिनभर उड़ती रहती,
ढूँढ़ती रहती कुछपल का सुकून,
बेचैन ,अवश, तुम्हारी स्मृतियों की तितलियाँ
बादलों को देख मचल उठती
संग मनचली हवाओं के
छूकर तुम्हें आने के लिए,
एक झलक तुम्हारी
अपनी मुसकुराहटों मे
बसाने के लिए,
टकटकी लगाये चाँद को
देखती तुम्हारी आँखों में
चाँदनी बन समाने के लिए,
अपनी छवि तुम्हारी उनींदी पलकों में
छिपकर देखने को आतुर
तुम्हारे ख़्यालों के गलियारे में
ख़्वाब में तुमसे बतियाने के लिए,
तुम्हारे लरजते ज़ज़्बात में
खुद को महसूस करने की
चाहत लिए
तन्हाई में कसमसाती,
कविताओं के सुगंधित
उपवन मे विचरती,
शब्दों में खुद को ढ़ूँढ़ती
तितलियाँ उड़ती रहती हैंं,
व्याकुल होकर
प्रेम पराग की आस में,
बस तुम्हारे ही ख़्यालों के
मनमोहक फूल पर।


      #श्वेता


Monday, 12 June 2017

कुछ बात होती

बहुत लंबी है उम्र, चंद लम्हों में ,सिमट जाती तो कुछ बात होती
मेरी ख़्वाहिश है तू, कुछ पल को,मिल जाती तो कुछ बात होती

रातें महकती है चाँदनी बनके मेरी आँखों के राहदारी में
धूप झुलसती, बदन को चूम,संदल सी भर जाती तो कुछ बात होती

दिल धडकनें लगता है बेतहाश़ा देखो न तेरा जिक्र सुन के
ये खबर झूठी नही,तुम तक उड़ती,,पहुँच जाती तो कुछ बात होती

पीकर जाम तेरे एहसास का झूमता है मन मलंग दिन रात
तुझे ख्वाब बना, आँखों से आँखों में पी जाती तो कुछ बात होती

तन्हाई को छूकर तो हर रोज बरस जाती है यादें तेरी
सूखी जमीं दिल की ,नेह की बूँदे,बिखर जाती तो कोई बात होती

        #श्वेता🍁


Sunday, 11 June 2017

हिय के पीर

माने न मनमोहना समझे न हिय के पीर
विनती करके हार गयी बहे नयन से नीर

खड़ी गली के छोर पे बाट निहारे नैना
अबहुँ न आये साँवरे बेकल जिया अधीर

हाल बताऊँ कैसे मैं न बात करे निर्मोही
खत भी वापस आ गये कैसे धरूँ अब धीर

जीत ले चाहे जग को तू नेह बिन सब सून
मौन तेरे विष भरे लगे घाव करे गंभीर

सूझे न कुछ और मोहे उलझे मन के तार
उड़ उड़ जाये पास तेरे रटे नाम मन कीर

भरे अश्रु से मेघ सघन बरसे दिन और रात
गीली पलकें ले सुखाऊँ जमना जी के तीर

         #श्वेता🍁



Saturday, 10 June 2017

जब भी

जब भी जख्म तेरे यादों के भरने लगते है
किसी बहाने हम तुम्हे याद करने लगते है

हर अजनबी चेहरा पहचाना दिखाई देता है
जब भी हम तेरी गली से गुजरने लगते है

जिस  रात को चाँद से तेरी बातें की हमने
सुबह की आँख मे आँसू उभरने लगते है

जिसने भर दिया दामन को बेरंग फूलों से
उनके एक दर्द पर हम क्यों तड़पने लगते है

दिल के दरवाजे पर कोई दस्तक नही होती
तेरा जिक्र होते ही दरो दीवार महकने लगते है

मिटा दे हर ख्याल जेहन की किताब से लेकिन
इबारत पे उनका नाम देखकर सिसकने लगते है

        #श्वेता🍁



Thursday, 8 June 2017

अजनबी ही रहे

हम अजनबी ही रहे इतने मुलाकातों के बाद
न उतर सके दिल में कितनी मुलाकातों के बाद

चार दिन बस चाँदनी रही मेरे घर के आँगन में
तड़पती आहें बची अश्कों की बरसातों के बाद

है बहुत बेदर्द लम्हें जो जीने नहीं देते है सुकून से
बहुत बेरहम है सुबह गुजरी मेहरबां रातों के बाद

चाहा तो बेपनाह पर उनके दिल में न उतर सके
दामन मे बचे है कुछ आँसू चंद सवालातों के बाद

ऐ दिल,चल राह अपनी किस आसरे मे बैठा तू
रुकना मुनासिब नहीं लगता खोखली बातों के बाद

#श्वेता🍁

Wednesday, 7 June 2017

पुरानी डायरी

सालों बाद
आज हाथ आयी
मेरी पुरानी डायरी के
खोये पन्ने,
फटी डायरी की
खुशबू में खोकर,
छूकर उंगलियों के
पोर से गुजरे वक्त को
जीने लगी उन
साँसें लेती यादों को,
मेरी लिखी पहली कविता,
जिसके किनारे पर
काढ़ी थी मैंने
लाल स्याही से बेलबूटे,
जाने किन ख़्यालों में बुनी
आड़ी तिरछी लकीरें
उलझी हुयी अल्पनाएँ
जाने किन मीठी
कल्पनाओं में लिखे गये
नाम के पहले अक्षर,
सखियों के खिलखिलाते
हँसते- मुस्कुराते कार्टून,
मेंहदी के नमूने,
नयी-नयी रसोई बनाने
की उत्साह में लिखे गये
संजीव कपूर शो के व्यंजन
कुछ कुछ अस्पष्ट
टेलीफोन  नम्बर
कुछ पन्नों पर धुँधले शब्द
जिस पर गिरे थे
मेरे एहसास के मोती,
अल्हड़,मादक ,यौवन
की सपनीली अगड़ाईयाँ,
बचकाने शब्दों में अभिव्यक्त,
चाँद, फूल और परियों की
आधी-अधूरी कहानियाँ
कुछ सूखे गुलाब की पंखुड़ियाँ
दो रूपये के नये नोट का
अनमोल उपहार,
जिसे कभी माँ ने दिया था
जिसका चटख गुलाबी रंग
अब फीका हो गया है,
दम तोड़ते पीले पन्नों पर
लिखी मेरी भावनाओं
के बेशकीती धरोहर
जिसके सूखे गुलाब
महक रहे हैं
गीली पलकों पर समेटकर
यादें सहेजकर रख दिया
अपने गुलाबी दुपट्टे में लपेटकर,
फुरसत के पलों में
इन फीके पन्नों से
गुजरे वक्त की चमकीली
तस्वीर पलटने के लिए।

#श्वेता सिन्हा

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...