Friday, 16 June 2017

एक बार फिर से

मैं ढलती शाम की तरह
तू तनहा चाँद बन के
मुझमे बिखरने आ जा
बहुत उदास है डूबती
साँझ की गुलाबी किरणें
तू खिलखिलाती चाँदनी बन
मुझे आगोश मे भरने आजा
दिनभर की मुरझायी कली
कोर अब भींगने  लगे
भर रातरानी की महक
हवा बनके लिपटने आजा
परों को समेट घर लौटे
परिदें भी अब मौन हुए
तू साँझ का दीप बन जा
मन मे मेरे जलने आ जा
सारा दिन टटोलती रही
सूने अपने दरवाजे को
कोई संदेशा भेज न
तू आँखों मे ठहरने आजा
बेजान से फिरते है
बस तेरे ख्याल लिए
एहसास से छू ले फिर से
धड़कनों मे महकने आजा

     #श्वेता🍁


Thursday, 15 June 2017

पापा

पापा,घने, विशाल वट वृक्ष जैसे है
जिनके सघन छाँह में,
हम बनाते है बेफ्रिक्र होकर
कच्चे पक्के जीवन के घरौंदे
और बुनियाद में रखते है
उनके अनुभवों की ईंट,
पापा के मजबूत काँधे पर चढ़कर
आसमान में उड़ने का स्वप्न देखते है
इकट्ठे करते है सितारे ख्वाहिशों के
और पापा की जेब में भर देते सारे,
उनके पास दो जादू भरे हाथ होते है
जिसमें पकडकर अनुशासन,
स्नेह और सीख की छेनी हथौड़ी
वो तराशते है बच्चों के
अनगिनत सपनों को,
अपने हृदय के भाव को
व्यक्त नहीं करते कभी पापा
सहज शांतचित्त गंभीर
ओढ़कर आवरण चट्टान का
खड़े रहते है हमसे पहले
हमारे छोटी से छोटी परेशानी में
कोई नहीं जानता पापा की
सोयी इच्छाओं के बाबत
क्योंकि पापा जीते है हमारे
अतीत, वर्तमान और भविष्य,
की कामनाओं को
पापा की उंगली पकड़कर
जब चलना सीखते है
हम भूल जाते है
जीवन राह के कंटकों को
डर नहीं लगता जग के
बीहड़ वन की भयावहता में
दिनभर के थके पापा के पास
लोरियाँ नहीं होती बच्चों को
सुलाने के लिए
पर उनकी सबल बाहों के
आरामदायक बिस्तर पर
चिंतामुक्त नींद आती है
पापा वो बैंक है
जिसमें जमा करते है
अपनी सारे दुख, तकलीफ,
परेशानी,ख्वाहिशें और अनगिनत आशाएँ,
और बदले में पाते है एक निश्चत
चिरपरिचित विश्वास ,सुरक्षा घेरा
और अमूल्य सुखी जीवन
की सौगात उनके आशीष के रूप मे।
    #श्वेता🍁

Wednesday, 14 June 2017

तेरी तलबदार

तन्हाई मेरी बस तेरी ही तलबदार है
दिल मेरा तुम्हारे प्यार में गिरफ्तार है

तेरे चेहरे पे उदासी के निशां न हो
आँख़े तुम्हारी मुस्कां की तरफदार है

बिन बहार महकी है बगिया दिल की
तेरी रूह की तासीर ही खुशबूदार है

जी नहीं पायेगे तेरी आहटों के बिन
पलभर का साथ तेरा इतना असरदार है

जो भी दिया तुमने रहमत लगी खुदा की
हर एक पल के एहसास तेरे कर्जदार है

       #श्वेता🍁

Tuesday, 13 June 2017

भँवर

स्याह रात की नीरवता सी
शांत झील मन में
तेरे ख्यालों के कंकर
हलचल मचाते है
एक एक कर गिरते
जल को तरंगित करते
लहरें धीरे धीरे तेज होती
किनारों को छूती है
भँवर बेचैनी की तड़प बन
खींचने लगते है
बेबस बेकाबू मन सम्मोहित
अनन्त में उतर जाता है
निचोड़कर प्राण  फिर
छोड़ देता है सतह पर
निर्जीव देह जिसे सुध न रहती
बहता जाता है मानो
जीवन के प्रवाह में अंत की तलाश में

#श्वेता🍁




तुम्हारे लिए

ज़हन के आसमान पर
दिनभर उड़ती रहती,
ढूँढ़ती रहती कुछपल का सुकून,
बेचैन ,अवश, तुम्हारी स्मृतियों की तितलियाँ
बादलों को देख मचल उठती
संग मनचली हवाओं के
छूकर तुम्हें आने के लिए,
एक झलक तुम्हारी
अपनी मुसकुराहटों मे
बसाने के लिए,
टकटकी लगाये चाँद को
देखती तुम्हारी आँखों में
चाँदनी बन समाने के लिए,
अपनी छवि तुम्हारी उनींदी पलकों में
छिपकर देखने को आतुर
तुम्हारे ख़्यालों के गलियारे में
ख़्वाब में तुमसे बतियाने के लिए,
तुम्हारे लरजते ज़ज़्बात में
खुद को महसूस करने की
चाहत लिए
तन्हाई में कसमसाती,
कविताओं के सुगंधित
उपवन मे विचरती,
शब्दों में खुद को ढ़ूँढ़ती
तितलियाँ उड़ती रहती हैंं,
व्याकुल होकर
प्रेम पराग की आस में,
बस तुम्हारे ही ख़्यालों के
मनमोहक फूल पर।


      #श्वेता


Monday, 12 June 2017

कुछ बात होती

बहुत लंबी है उम्र, चंद लम्हों में ,सिमट जाती तो कुछ बात होती
मेरी ख़्वाहिश है तू, कुछ पल को,मिल जाती तो कुछ बात होती

रातें महकती है चाँदनी बनके मेरी आँखों के राहदारी में
धूप झुलसती, बदन को चूम,संदल सी भर जाती तो कुछ बात होती

दिल धडकनें लगता है बेतहाश़ा देखो न तेरा जिक्र सुन के
ये खबर झूठी नही,तुम तक उड़ती,,पहुँच जाती तो कुछ बात होती

पीकर जाम तेरे एहसास का झूमता है मन मलंग दिन रात
तुझे ख्वाब बना, आँखों से आँखों में पी जाती तो कुछ बात होती

तन्हाई को छूकर तो हर रोज बरस जाती है यादें तेरी
सूखी जमीं दिल की ,नेह की बूँदे,बिखर जाती तो कोई बात होती

        #श्वेता🍁


Sunday, 11 June 2017

हिय के पीर

माने न मनमोहना समझे न हिय के पीर
विनती करके हार गयी बहे नयन से नीर

खड़ी गली के छोर पे बाट निहारे नैना
अबहुँ न आये साँवरे बेकल जिया अधीर

हाल बताऊँ कैसे मैं न बात करे निर्मोही
खत भी वापस आ गये कैसे धरूँ अब धीर

जीत ले चाहे जग को तू नेह बिन सब सून
मौन तेरे विष भरे लगे घाव करे गंभीर

सूझे न कुछ और मोहे उलझे मन के तार
उड़ उड़ जाये पास तेरे रटे नाम मन कीर

भरे अश्रु से मेघ सघन बरसे दिन और रात
गीली पलकें ले सुखाऊँ जमना जी के तीर

         #श्वेता🍁



Saturday, 10 June 2017

जब भी

जब भी जख्म तेरे यादों के भरने लगते है
किसी बहाने हम तुम्हे याद करने लगते है

हर अजनबी चेहरा पहचाना दिखाई देता है
जब भी हम तेरी गली से गुजरने लगते है

जिस  रात को चाँद से तेरी बातें की हमने
सुबह की आँख मे आँसू उभरने लगते है

जिसने भर दिया दामन को बेरंग फूलों से
उनके एक दर्द पर हम क्यों तड़पने लगते है

दिल के दरवाजे पर कोई दस्तक नही होती
तेरा जिक्र होते ही दरो दीवार महकने लगते है

मिटा दे हर ख्याल जेहन की किताब से लेकिन
इबारत पे उनका नाम देखकर सिसकने लगते है

        #श्वेता🍁



मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...