Saturday 29 July 2017

किस गुमान में है

आप अब तक किस गुमान में है
बुलंदी भी वक्त की ढलान में  है

कदम बेजान हो गये ठोकरों से
सफर ज़िदगी का थकान में  है

घूँट घूँट पीकर कंठ भर आया
सब्र  गम़ का इम्तिहान  में  है

डरना नही तीरगी से मुझको
भोर का सूरज दरम्यान में है

नीम  सी लगी  वो बातें   सारी
कड़वाहट अब भी ज़बान में है


  #श्वेता🍁

14 comments:

  1. एक सलाम इस रचना की शान में है -
    अलबेली मिठास इन भावों की तान में है ---------
    आदरणीय श्वेता जी हर बार की तरह आपके शब्द मन को छूते जा रहे है ---------

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    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका रेणु जी, आपकी सुंदर ऊर्जा से लबरेज प्रतिक्रिया के लिए।

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  2. बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल

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    1. बहुत बहुत आभार आपका लोकेश जी।

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  3. नीम सी लगी वो बातें सारी
    कड़वाहट अब भी ज़बान में है
    अभी कुछ और,अभी कुछ और बाक़ी है

    ...........उम्दा गजल बनी है

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    1. जी, बहुत बहुत.आभार आपका शुक्रिया आपका संजय जी हमेशा की तरह:)

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  4. बहुत खूब ,जीवन का यथार्थ संजोती रचना

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    1. बहुत बहुत आभार आपका रितु जी।

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  5. बहुत बहुत आभार आपका मीना जी

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  6. किसी एक शेर को लिखना आसान नहीं यहाँ ... हर शेर बहुत लाजवाब है ...

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    1. बहुत बहुत आभार आपका इतने उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए।

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  7. Replies
    1. जी, शुक्रिया आपका।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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