Monday 17 July 2017

व्यर्थ नहीं हूँ मैं

व्यर्थ नहीं हूँ मैं,
मुझसे ही तुम्हारा अर्थ है
धरा से अंबर तक फैले
मेरे आँचल में पनपते है
सारे सुनहरे स्वप्न तुम्हारे
मुझसे ही तो तुम समर्थ हो
स्त्री हूँ मैं,तुम्हारे होने की वजह
तुम्हारे जीवन के सबसे खूबसूरत
पड़ाव की संगिनी मैं,
हुस्न हूँ,रंग हूँ ,बहार हूँ
अदा हूँ ,खुशबू हूँ नशा हूँ
तुम्हारे लिए मन्नत का धागा बाँधती
एक एक खुशी के लिए रब के आगे,
अपनी झोली फैलाती
सुख समृद्धि को जाने कितने
टोटके अपनाती
लंबी उमर को व्रत ,उपवास से
ईश को रिझाती
तुम्हारे चौखट को मंदिर समझ
तुम्हें देव रूप मे सम्मान करती
मुहब्बत हूँ ,इबादत हूँ वफा हूँ
तुम्हारी राह के काँटे चुनती
मैं तुम्हारे चरणों का धूल हूँ,
अपने अस्तित्व को भूलकर
तुम में संपूर्ण हृदय से समाहित
तुम्हारी जीवन की नदी में
बूँद बूँद समर्पित मैं,
सिर्फ तुम्हारी इच्छा अनिच्छा
के डोर में झुलती
कठपुतली भर नहीं
"तुम भूल जाते हो क्यों
मैं मात्र एक तन नहीं,
नन्हीं इच्छाओं से भरा
एक कोमल मन भी हूँ।"

         #श्वेता🍁

10 comments:

  1. वाहः
    बहुत खूबसूरत बयानगी

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    1. जी,बहुत आभार शुक्रिया लोकेश जी।

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  2. स्त्री हूँ मैं,तुम्हारे होने की वजह
    तुम्हारे जीवन के सबसे खूबसूरत
    पड़ाव की संगिनी मैं,
    प्यार के अनमोल भावों को आपने जिन शब्दों में अभिव्यक्त किया है सच में वह सराहनीय हैं .....आपके हर शब्द में हर किसी को प्रेम दिखाई देता है

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    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका संजय जी।

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  3. बहुत सही कहा।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आभार आपका।

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  4. मैं मात्र एक तन नहीं,
    नन्हीं इच्छाओं से भरा
    एक कोमल मन भी हूँ।"......बहुत सुंदर!!!!!

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    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका विश्वमोहन जी।

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  5. स्त्री मन के कोमल भावों की अभिव्यक्ति करती सुंदर रचना!

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    1. जी, बहुत बहुत आभार आपका मीना जी। रचना के भाव समझने के लिए।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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