Friday, 12 July 2019

तीसरे.पहर

सुरमई रात के उदास चेहरे पर
कजरारे आसमां की आँखों से
टपकती है लड़ियाँ बूँदों की
झरोखे पे दस्तक देकर
जगाती है रात के तीसरे पहर

मिचमिचाती पीली रोशनी में
थिकरती बरखा घुँघरू-सी
सुनसान राहों से लगे किनारों पे
हलचल मचाती है बहती नहर
बुलाती है रात के तीसरे पहर

पीपल में दुबके होगे परिंदें
कैसे रहते होगे तिनकों के घर में
खामोश दरख्तों के बाहों में सिकुड़े
अलसाये है या डरे,पूछने खबर
उकसाती है रात के तीसरे पहर

झोंका पवन का ले आया नमी
उलझ रहा जुल्फों में सताये बैरी
छूकर चेहरा सिहराये बदन
पूछता हाल दिल का रह-रह के
सिलवट,करवट,बेचैन,बसर,
कुहकाती है रात के तीसरे पहर

#श्वेता सिन्हा

Wednesday, 10 July 2019

मौन


तुम्हारे मौन के ईद-गिर्द
परिक्रमा मेरे मन की
ज्यों धुरी में नाचती धरती
टोहती सूरज का पारा

तुम्हारे मौन के सन्नाटे में
मन बहरा,ध्यानस्थ योगी
हर आवाज़ से निर्लिप्त
तुम पुकारो नाम हमारा

मौन में पसरी विरक्ति 
टीसता है,छीलता मन 
छटपटाता आसक्ति में
चाहता नेह का कारा

तुम्हारे मौन से विकल
जार-जार रोता मेरा मन
आस लिये ताकता है 
निःशब्द मन का किनारा

#श्वेता सिन्हा


Saturday, 22 June 2019

बरखा

लह-लह,लह लहकी धरती
उसिनी पछुआ सहमी धरती
सही गयी न नभ से पीड़ा
भर आयी बदरी की अँखियाँ
लड़ियाँ बूँदों की फिसल गयी
टप-टप टिप-टिप बरस गयी  

अंबर की भूरी पलकों में
बदरी लहराते अलकों में
ढोल-नगाड़े सप्तक नाद
चटकीली मुस्कान सरीखी
चपला चंचल चमक गयी
बिखर के छ्न से बरस गयी

थिरके पात शाख पर किलके
मेघ मल्हार झूमे खिलके
पवन झकोरे उड़-उड़ लिपटे
कली पुष्प संग-संग मुस्काये
बूँदें कपोल पर ठिठक गयी 
जलते तन पर फिर बरस गयी

कण-कण महकी सोंधी खुशबू
ऋतु अंगड़ाई मन को भायी
अवनि अधर को चूम-चूम के
लिपट माटी की प्यास बुझायी
गंध नशीली महक गयी
मदिर रसधारा बरस गयी 

व्यथित सरित के आँगन में
बूँदों की गूँजी किलकारी
सरवर तट झूमा इतराया 
ले संजीवनी बरखा आयी
तट की साँसें बहक गयी
नेह भरी बदरी बरस गयी 

क्यारी-क्यारी रंग भरने को
जीवन अमृत जल धरने को
अवनि अन्नपूर्णा करने को
खुशी बूँद में बाँध के लायी
कोख धरा की ठहर गयी
अंबर से खुशियाँ बरस गयी

#श्वेता सिन्हा




Monday, 17 June 2019

सफेद कोट वाले भगवान से...


साक्षात अवतार 
बीमार गरीब के लिए
जीवनदाता हैं 
सफेद कोट वाले भगवान
सर्दी,कफ़,बुखार से घरघराते
नन्हे-नन्हे बच्चे
हाथ,पाँव पर पलस्तर चढ़ाये 
पपड़ीदार मुँह लिये नौजवान
प्रसव पीड़ा से छटपटाती औरतें,
असाध्य रोगों से तंग होकर 
मुक्ति के लिए शून्य में ताकते 
मरियल काया ढोते बुजुर्ग
सुविधाहीन,गंदे परिसर में
अपनी बारी के इंतजार में
उँघते,थके हैरान-परेशान परिजन
सरकारी हस्पताल के राहदारी में
हाथ जोड़े,पनियायी आँखों से
मुँह ताकते,उनके मुख से झरे
शब्द-शब्द पूजा के मंत्र सा जापते
श्रद्धानत मस्तक उम्मीद है
स्वस्थ कर देंगे 
सफेद कोट वाले भगवान....
और तथाकथित भगवान...;
गंभीर ,मुर्दानी छाये चेहरे लिये
मरीजों और परिजनों के सवालों से उकताये
जल्दी-जल्दी सरकारी बीमार निपटाते
चंद मरीज को देखने के बाद
टी ब्रेक लेकर फोन टापते
डिनर,लंच के लिए,
नये प्रोजेक्ट डिस्कसन करते
एप्वाइंटमेंट फिक्स करते,
काग़जों में बीमार स्वस्थ करते
जैसे-तैसे जिम्मेदारी पूरी कर 
प्राइवेट पेंशेट की
लंबी प्रतीक्षित सूची अपडेट लेते हैं...
मरीजों के मरने पर 
आक्रोशित परिजनों के
सवाल पूछे जाने पर,
दुर्व्यवहार से आहत होकर
"हड़ताल" पर चले जाते हैं
सिर्फ़ गरीबों के लिए
सरकारी हस्पतालों में...
सफेद कोट वाले भगवान
अपने हक़ की लड़ाई में
तड़पते,कराहते,रोते,घिघियाते
मरीजों को अनदेखा कर
संवेदनशील,दयालु भगवान 
रुष्ट होकर,आला त्यागकर
धरने में बैठ जाते हैं..
आखिर उनका जीवन 
बेशकीमती है,सम्मानजनक है
उनके अपमान का ख़ामियाज़ा
भुगतना पडेगा ही 
सरकारी गरीबों को।
बाकी एक सवाल 
सफेद कोट वाले
धरती के भगवान से..
प्रभु! आपके हड़ताल से 
हाहाकार मच जाता है 
सहमे हुये मरीज सहित परिजन
ऊपर वाले भगवान से निहोरा करते
पर...
आपके प्रिय मालदार भक्त,
वंचित हैं क्या
आपके
आरोग्य के आशीष से...?

#श्वेता सिन्हा

Thursday, 13 June 2019

न वो नसीब मेरा


तन्हाई में जब उनकी याद सुगबुगाती है
धड़कनें खास अंदाज़ में सिहर जाती है

वो जो कह गये बातें आधी-अधूरी-सी
दिल की तह से टकराकर छनछनाती है

बाँट के ख़ुद को थोड़ा उसमें थोड़ा इसमें
उलझे धागों की गुत्थियाँ सुलझ जाती हैं

दर्द सहना,अश्क़ पीना,तड़पना हर पल
ज़िंदगी ताल में हक़ीकत के नग्में गाती है

वो पूछते हैं अक्सर मेरी उदासी का सबब
उनकी मासूमियत भी आजकल रुलाती है

न चाँद,न सितारा कोई,न वो नसीब मेरा 
जिनकी ख़्वाहिश में तमन्नाएँ मचल जाती है

#श्वेता सिन्हा

Tuesday, 11 June 2019

कितने जनम..

रह-रह छलकती ये आँखें है नम।
कसमों की बंदिश है बाँधे क़दम।।

गिनगिन के लम्हों को कैसे जीये,
समझो न तुम बिन तन्हा हैं हम।

सजदे में आयत पढ़े भी तो क्या,
रब में भी दिखते हो तुम ही सनम।

सुनो, ओ हवाओं न थामो दुपट्टा,
धड़कन को होता है उनका भरम।

मालूम हो तो सुकूं आये दिल को,
तुम बिन बिताने है कितने जनम।

ज़िद में तुम्हारी लुटा आये खुशियाँ,
सिसकते है भरकर के दामन में ग़म।

 #श्वेता सिन्हा


Monday, 10 June 2019

तोड़कर तिमिर बंध

चीर सीना तम का
सूर्य दिपदिपा रहा
तोड़कर तिमिर बंध
भोर मुस्कुरा रहा

उठो और फेंक दो तुम
जाल जो अलसा रहा
जो मिला जीवन से उसको
मन से तुम स्वीकार लो
धुँध आँखों से हटा लो
मन से सारे भ्रम मिटा लो
ज़िंदगी उर्वर जमीं है
कर्मों का श्रृंगार कर लो

जो न मिला न शोक कर
जो मिल रहा उपभोग कर
तू भागे परछाई के पीछे
पाँव यह दलदल में खींचे
न बने मन काँच का घट
ठेस लग दरके हृदय पट
अपने जीवन की कथा के
मुख्य तुम किरदार हो

बन रहे हो एक कहानी
कर्म तेरे अपनी ज़ुबानी
बोलते असरदार हो
बस लेखनी को धार कर  
लड़कर समर है जीतना
हर बखत क्या झींकना
विध्न बाधा क्या बिगाडे
तूफां में अडिग रहे ठाडे

निराशा घुटन की यातना
ये बंध कठिन सब काटना
चढ़कर इरादों के पहाड़
खोल लो नभ के किवाड़
खुशियाँ मिलेंगी बाँह भर
भर अंजुरी स्वीकार कर लो

#श्वेता सिन्हा

Friday, 7 June 2019

रात


अक्सर जब शाम की डोली
थके हुये घटाओं के
शानों से उतरती है
छनकती चाँदनी की पाजेब से
टूटकर घुँघरू
ख़्वाबों के आँगन बिखरती है

ख़ामोश दरख़्तों के
गीली बाहों में
परिदों के सो जाने के बाद
बेआवाज़ 
पत्तियाँ जुगनुओं से
रातभर बातें करती हैं।

स्याह दामन के नर्म 
तन्हाइयों में सोयी 
दूध-सी झीलों के
बियाब़ां किनारे पर
ख़ामोशी के रेज़ों को 
चुन-चुनकर
शब झोली में भरती है।

लम्हा-लम्हा सरकती रात
हवाओं की थपकियों से
बेज़ान लुढ़क कर
पहाड़ी के कोहान पर 
सिर टिकाये 
भोर की राह तकती है।

 #श्वेता सिन्हा

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...