सम्मोहित मन
निमग्न ताकता है,
एकटुक झरोखे से
मुंडेर की अलगनी पर
बेफिक्र लटके
अभ्रख के टुकड़े से
चमकीले चाँद को,
पिघलती चाँदनी
की बूँदों को पीने को
व्याकुल
हृदय चकोर।
जानता है
मुमकिन नहीं छू पाना
एक कतरा भी
उंगली के पोर से भी
फिर भी अवश हो
बौराया चकोर
चाँद की बेपरवाही
भूलकर
बूँदभर चाँदनी के लिए
सिसकता है,
बंधा अपनी सीमाओं से
सुरमई रात के
ख्वाब का भरम टूटने तक।
#श्वेता🍁