जाओ न
सताओ
न बरसाओ फुहार
साजन बिन
क्या सावन
बरखा बहार
पर्वतों को
छुपाकर
आँचल में अपने
अंबर से
धरा तक
बादल बने कहार
पिया पिया बोले
हिय बेकल हो डोले
मन पपीहरा
तुमको बुलाये बार बार
भीगे पवन झकोरे
छू छू के मुस्काये
बिन तेरे
मौसम का
चढ़ता नहीं खुमार
सीले मन
आँगन में
सूखे नयना मोरे
टाँक दी पलकें
दरवाजे पे
है तेरा इंतज़ार
बाबरे मन की
ठंडी साँसें
सुलगे गीली लड़की
धुँआ धुँआ
जले करेजा
कैसे आये करार
#श्वेता🍁
*चित्र साभार गूगल*
बहुत ही सुंदर
ReplyDeleteअच्छे रचना
बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका लोकेश जी।
Deleteसीले मन
ReplyDeleteआँगन में
सूखे नयना मोरे
टाँक दी पलकें
दरवाजे पे
भावनाओं का सजीव चित्रण सरलतम शब्दों का चयन और गहरी अनुभूति संवारती रचना बस क्या कहूं? पूरी पोस्ट का एक एक शब्द लाजवाब है. बधाई स्वीकार करें
आपका बहुत बहुत आभार संजय जी:)
Deleteवाह ... विरह और सावन ... कई बार जब दोनों साथ आ जाएँ तो करार कहाँ आता है ...
ReplyDeleteऐसी रचनाएं तभी जन्म लेती हैं ...
बहुत बहुत आभार आपका नासवा जी।
Deleteबादल बने कहार....चढ़ता नहीं खुमार.....टाँक दी पलकें .....जले करेजा
ReplyDeleteकैसे आये करार....
सुन्दर शब्दव्यूह! कल्पनाओं को करते साकार!!!!
जी, बहुत बहुत आभार एवं शुक्रिया आपका विश्वमोहन जी।
Deleteवाह !बहुत खूबसूरत शब्दचित्र !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार मीना जी।
Deleteजी, बहुत बहुत आभार आपका मेरी रचना.को मान देने के लिए।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर शब्द रचना के साथ सावन और विरही मन....
ReplyDeleteलाजवाब...
बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका सुधा जी।
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