ब्रह्मांड में धरा का जन्म
धरा पर जीवन का अंकुरण
प्रकृति के अनुपम उपहारों का
क्यूँ मान नहीं कर पाते हैं?
जीवन को प्रारब्ध से जोड़
नियति को सत्य मानकर
आड़ी-तिरछी रेखाओं में उलझे
क्यों कर्म से पीछा छुड़ाते है?
माया-मोह में गूँथ भाव मन
दुख-सुख का अनुभव करते
मन की पीड़ा में उलझकर
हम स्वयं का अस्तित्व मिटाते है?
जनम का उद्देश्य सोचती
है क्या मेरे होने न होने से अंतर
मोह क्यों इतना जीवन से
क्यूँ भौतिक सुख में भरमाते हैं?
जीवन-मरण है सत्य शाश्वत
नश्वर जग,काया-माया छलना
जीव सूक्ष्म कठपुतली ब्रह्म के
हम जाने क्यूँ जीते जाते है?
व्यथा जीवन की भुलाती
गंध मृत्यु की बड़ी लुभाती
जीवन से अनंत की यात्रा में
चिर-निद्रा में पीड़ा से मुक्ति पाते है।
-श्वेता सिन्हा
वाह! अप्रतिम!!!जीवन और जिजीविषा दोनों पर मीमांसापरक प्रश्न!!!
ReplyDeleteआपके अनुपम आशीष से अभिभूत हुआ मन।
Deleteहृदयतल से अति आभार आपका।🙏
बेमिसाल रचना
ReplyDeleteबहुत उम्दा
अति आभार आपका लोकेश जी। हृदयतल से बहुत शुक्रिया।
Deleteजीवन-मरण है सत्य शाश्वत
ReplyDeleteनश्वर जग,काया-माया छलना
जीव सूक्ष्म कठपुतली ब्रह्म के
हम जाने क्यूँ जीते जाते है?
वाह बहुत खूब लिखा बेहतरीन रचना
अति आभार आपका अनुराधा जी, हृदयतल से बहुत शुक्रिया।
Deleteवाह अप्रतिम ...गहन चिंतन मनन सी रचना ...
ReplyDeleteसादर आभार आपका। हृदयतल से शुक्रिया।
Deleteवाह!!श्वेता ,अद्भुत !!बहुत गहरी बात कह गई आप ...!!
ReplyDeleteसादर आभार आपका दी। हृदयतल से बहुत शुक्रिया।
Deleteजीवन कर्म से चुरू हो कर कर्म पर ही समाप्त होता है ...
ReplyDeleteउत्पत्ति कर्म से ही संभव है ... फिर इससे विमुख क्यों होना ...
गहन चिंतन मनन करती हुयी रचना ... दार्शनिक जीवन दर्शन की और ले जाती है ...
सादर आभार आपका नासवा जी। हृदयतल से बहुत शुक्रिया।
Deleteबहुत सुन्दर ...नमन आप की लेखनी को
ReplyDeleteएक सार्थक रचना और अप्रतिम भाव। लाजवाब !!!
सादर आभार आपका नीतू। हृदयतल से बहुत शुक्रिया।
Deleteसादर आभार आपका राकेश जी। हृदयतल से शुक्रिया।
ReplyDeleteश्वेता,जीवन की जिजीविषा को बहुत ही खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है तुमने। बहित सुंदर।
ReplyDeleteसादर आभार आपका दी।
Deleteतहेदिल से बेहद शुक्रिया।
जीवन के प्रश्नों का उत्तर खोजती ...गहन दर्शन से ओतप्रोत रचना
ReplyDeleteसादर आभार आपका वंदना जी।
Deleteहृदययल से बेहद शुक्रिया।
आध्यात्म और दर्शन एक रहस्य एक खोज, मिमांशा मे डूबी गहरी रचना।
ReplyDeleteएक उद्धरण काफी मिलता जलता इसी रचना के रहस्य प्रश्न जैसा …
*मैं ( जीव ), ब्रह्मांड में रहता हूँ जिसकी कोई सीमा नहीं....जो अनंत है।*
*मेरा इतना बड़ा घर है कि कोई आ जाये तो मुझे ढूंढ भी नहीं सकता....हां आवाज लगा दे तो अलग बात है।*
*मेरे घर में सब कुछ है ....... अद्भुत दृश्य.....चमत्कार।*
*यहाँ कल्पना और वास्तविकता में कोई अंतर नहीं है।*
*यहाँ आत्मा और परमात्मा में भी कोई अंतर नहीं है, क्योंकि यहाँ मत और मतभेद का कोई औचित्य नहीं है।*
*समानता और असमानता का कोई भेद नहीं है।*
*यहाँ समभाव है।*
*यहाँ जीवन मृत्यु नहीं है ।*
*यहाँ प्रेम ही है कुछ और नहीं।*
*मैं इतने बड़े साम्राज्य का अंश हूँ फिर भी खुद को भूल जाता हूँ...*
*हे परम शक्ति मेरी मदद करो।*
*मुझे मुझमें जीवंत रहने की प्रेरणा दो।*
*मुझे सब कुछ बदलने का साहस दो।*
बेहद उम्दा विचारशील प्रतिक्रिया दी।
Deleteआपकी सराहना सदैव विशेष होती है। मन में सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित करती हुई।
सादर आभार दी:)
व्यथा जीवन की भुलाती
ReplyDeleteगंध मृत्यु की बड़ी लुभाती
जीवन से अनंत की यात्रा में
चिर-निद्रा में पीड़ा से मुक्ति पाते है।
ये पंक्तियाँ जीवन के अंतिम सत्य को साक्षात करती हुईं.... जीवन मृत्यु के गूढ़ विषय पर लिखकर आपने अपनी विलक्षण प्रतिभा का परिचय दिया है और अपनी सोच की व्यापकता का भी...प्रकृति और प्रेम की चितेरी श्वेता का यह रूप भी अच्छा लगा। सस्नेह।
जी दी, आपका स्नेहाशीष बरसता रहे।
Deleteसादर आभार आपका दी।
हृदययल से बहुत शुक्रिया।
गहन चिंतन युक्त सृजन श्वेता जी ।
ReplyDeleteसादर आभार आपका मीना जी।
Deleteजीवन दर्शन के प्रश्नों से जूझती और मानस मंथन करती रचना प्रिय श्वेता | पढकर सराहना से परे लगी ये रचना | धीरे धीरे नये विषयों और आध्यात्मिकता की और अग्रसर होता आपका लेखन निखार के नये सोपान को छूरहा है |सुंदर सार्थक रचना के लिए बधाई नहीं बस मेरा प्यार |
ReplyDeleteहृदयतल से सादर आभार मेरी प्यारी दी:)
Deleteआपका स्नेह सदैव प्रेरित करता है कुछ नया लिखने को।
कृपया बहुमूल्य साथ बनाये रखे दी।
सादर आभार सर।
ReplyDeleteहृदय तल से बेहद शुक्रिया आपका।
गहरे विचारों की अभिव्यक्ति ! बहुत खूब आदरणीया ।
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