गरमी की
अलसायी सुबह,
जब तुम बुनते हो
दिनभर के सपने
अपने मन की रेशमी डोरियों से,
रक्ताभ आसमान से
टपककर आशा की किरणें
भर जाती हैं घने गुलमोहर की
नन्हीं कलियों में,
बेचैन दोपहर में
कार्य की अधिकता में
बिसराकर अपना अस्तित्व
चिलचिलाती घाम से तपकर
धैर्य से दिपदिपाते हो तुम,
तब गुलमोहर की
कलियों के अधरों से फूटती हैं
लाल-पीली,मख़मली पंखुडियाँ..।
उमसभरी लंबी रातों में
नींदभरी पलकों की
फैली ओढ़नी पर
अधूरे सपनों को
सीते हो बारीक़ी से
और गुलमोहर की फुनगी में
अटका चाँद
तुम्हें थपकियाँ देकर
सुला देता है।
मैं तुम्हारे आँगन के,
अनगिनत गमलों में खिले
गुलाब,बेला,जूही के सुगंधित फूल
नहीं बनना चाहती,
जो सुख की छाँव में साथ देते हैं
और गर्मीे की प्रचंडता से
घबराकर मुरझा जाते हैं।
तुम्हारे कमरे की खिड़की से
झाँकता रहता है अपलक
तुम कितने भी उनींदे रहो,
थके रहो,अलसाये रहो,
जिन मख़मली लाल फूलों और
हरी पत्तियों को देखकर
तुम्हारे होंठ मुस्कुरा देते हैं...;
जिसमें मदहोश ख़ुशबू नहीं,पर
तुम्हारा दग्ध हृदय सुकून पाता है
तुम्हारे हर दुःख,पीड़ा और संताप पर
अचूक औषधि की तरह
तुम्हारे साथ रहना चाहती हूँ
आजीवन,
और रचाना चाहती हूँ,
तुम्हारे मन में
आत्मिक सौंदर्य के गझिन बेलबूटे,
गुलमोहर के चटकीले फूलों
के गुच्छों-सा
प्रेम का प्रगाढ़ रंग।
#श्वेता सिन्हा
Beautiful and HOT composition of yours. make us feel the fire of summer. WAAH..
ReplyDeleteअगर गुलमोहर और अमलतास जैसा चटक प्यार न होता तो गर्मियों में जीना क्या, मरना भी मुश्किल हो जाता.
ReplyDeleteआत्म मुग्ध करती अपूर्व रचना।
ReplyDeleteशाख पर बन नव गुलमोहर
मुस्कुराना चाहती हूं ।
बन सूर्ख गुलमोहर रुत का सुकून
धरा पे बिखरना चाहती हूं ।
मनोभाव एक चिर सुख का
तेरे मन में भरना चाहती हूं ।
आत्मानंद का सुंदर शाश्वत
अहसास बनना चाहती हूं ।
ग्रीष्म ऋतु की तपिश में रंग-बिरंगे फूलों को तलाशतीं आँखें जब किसी खिले-मुस्काते गुलमोहर पर जा टिकतीं हैं तो एक कविता मचलती है शब्दों को भावों की चाशनी में लपेटने के लिये।
ReplyDeleteसुन्दर सृजन जो दिल को सुकून देता हुआ मन को सुखद एहसासों की यात्रा पर ले जाता है।
बधाई एवं शुभकामनाएँ। लिखते रहिये क्योंकि आपका सृजन समाज को सकारात्मकता की ज़मीन पर चलने को प्रेरित करता है।
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteगर्मी की तपिश में अंगारों सा दहकता गुलमोहर शीतलता का आभास कराता है | भावपूर्ण रचना जिसमें जड़ से फुनगी तक शब्द शब्द प्रेम और समर्पण है | शुभकामनायें और प्यार प्रिय श्वेता |
ReplyDeleteबचपन से गुलमोहर नाम ही मुझे बेहद पसन्द है ।न जाने कितना ही बार "गुलमोहर अगर तुम्हारा नाम होता.....।" सुनती आई हूँ । आपके सृजन ने मेरी कल्पनाओं में और रंग भर दिये ।
ReplyDeleteसुंदर शब्द चित्रण
ReplyDeleteवाह!!खूबसूरत सृजन श्वेता!!
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत रचना
ReplyDeleteऔर गुलमोहर की फुनगी में
ReplyDeleteअटका चाँद
तुम्हें थपकियाँ देकर
सुला देता है।
अद्भुत.. क्या कहने इस लेखनी के... 👌 👌 👌 👌
बेचैन दोपहर में
ReplyDeleteकार्य की अधिकता में
बिसराकर अपना अस्तित्व
चिलचिलाती घाम से तपकर
धैर्य से दिपदिपाते हो तुम,
तब गुलमोहर की
कलियों के अधरों से फूटती हैं
लाल-पीली,मख़मली पंखुडियाँ..।
वाह!!!
बहुत हघ लाजवाब.... कमाल का सृजन...
बहुत खूब ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवाह !बेहतरीन सृजन प्रिय श्वेता बहन
ReplyDeleteसादर
लाजवाब सृजन
ReplyDeleteगुलमोहर के चटकीले फूलों
ReplyDeleteके गुच्छों-सा
प्रेम का प्रगाढ़ रंग।
.... मन को एक नई ऊर्जा दे जाता है ...बेहतरीन सृजन
गुलमोहर - तुमने हमेशा ही किया है मुझे आकर्षित लेकिन आज श्वेता की लिखी ये पंक्तियाँ तुमसे प्रेम करने को उकसा रही हैं । बहुत बारीकी से किया गया अवलोकन कलियों , फूलों और फुनगी तक पहुँचा ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर वर्णन ।