मन मुस्काओ न छोड़ो आस
जीवन के निष्ठुर राहों में
बहुतेरे स्वप्न है रूठ गये
विधि रचित लेखाओं में
है नीड़ नेह के टूट गये
प्रेम यज्ञ की ताप में झुलसे
छाले बनकर है फूट गये
मन थोड़ा तुम धीर धरो
व्यर्थ नयन न नीर भरो
न बैठो तुम होकर निराश
मन मुस्काओ न छोड़ो आस
उर विचलित अंबुधि लहरों में
है विरह व्यथा का ज्वार बहुत
एकाकीपन के अकुलाहट में
है मिलते अश्रु उपहार बहुत
अब सिहर सिहर के स्वप्नों को
पंकिल करना स्वीकार नहीं
फैले हाथों में रख तो देते हो
स्नेह की भीख वो प्यार नहीं
रहे अधरों पर तनिक प्यास
मन मुस्काओ न छोड़ो आस
अमृतघट की चाहत में मैंने
पल पल खुद को बिसराया है
मन मंदिर का अराध्य बना
खरे प्रेम का दीप जलाया है
देकर आहुति अब अश्कों की
ये यज्ञ सफल कर जाना है
भावों का शुद्ध समर्पण कर
आजीवन साथ निभाना है
कुछ मिले न मिले न हो निराश
मन मुस्काओ न छोड़ो आस
#श्वेता🍁
जीवन के निष्ठुर राहों में
बहुतेरे स्वप्न है रूठ गये
विधि रचित लेखाओं में
है नीड़ नेह के टूट गये
प्रेम यज्ञ की ताप में झुलसे
छाले बनकर है फूट गये
मन थोड़ा तुम धीर धरो
व्यर्थ नयन न नीर भरो
न बैठो तुम होकर निराश
मन मुस्काओ न छोड़ो आस
उर विचलित अंबुधि लहरों में
है विरह व्यथा का ज्वार बहुत
एकाकीपन के अकुलाहट में
है मिलते अश्रु उपहार बहुत
अब सिहर सिहर के स्वप्नों को
पंकिल करना स्वीकार नहीं
फैले हाथों में रख तो देते हो
स्नेह की भीख वो प्यार नहीं
रहे अधरों पर तनिक प्यास
मन मुस्काओ न छोड़ो आस
अमृतघट की चाहत में मैंने
पल पल खुद को बिसराया है
मन मंदिर का अराध्य बना
खरे प्रेम का दीप जलाया है
देकर आहुति अब अश्कों की
ये यज्ञ सफल कर जाना है
भावों का शुद्ध समर्पण कर
आजीवन साथ निभाना है
कुछ मिले न मिले न हो निराश
मन मुस्काओ न छोड़ो आस
#श्वेता🍁