Monday, 17 April 2017

थोड़ा.सा पा लूँ तुमको

अपनी भीगी पलकों पे सजा लूँ तुमको
दर्द कम हो गर थोड़ा सा पा लूँ तुमको

तू चाँद मखमली तन्हा अंधेरी रातों का
चाँदनी सा ओढ़ खुद पे बिछा लूँ तुमको

खो जाते हो अक्सर जम़ाने की भीड़ में
आ आँखों में काजल सा छुपा लूँ तुमको

मेरी नज़्म के हर लफ्ज़ तेरी दास्तां कहे
गीत बन जाओ होठों से लगा लूँ तुमको

महक गुलाब की लिये जहन में रहते हो
टूट कर बाँह में बिखरों तो संभालूँ तुमको

        #श्वेता🍁

ज़िदगी की चाय

ख्वाहिशों में लिपटी
खूबसूरत भोर में,
उम्मीद के पतीले में
सपनों का पानी भरा
चंद चुटकी पत्तियाँ
कर्मों की डालकर
मेहनत के शक्कर
सच्चाई की दूध और
 रिश्तों के मसाले मिला
प्रेम के ढक्कन लगाकर
ज़िदगी के चूल्हें पर रखी है,
वक्त की धीमी आँच पर
पककर जब तैयार हो जाए
फिर चखकर बताना
कैसी लगी अनोखे स्वाद
से भरी हसरतों की चाय

                                 #श्वेता🍁


Sunday, 16 April 2017

तारे

भोर की किरणों में बिखर गये तारे
जाने किस झील में उतर गये तारे

रातभर मेरे दामन में चमकते रहे
आँख लगी कहीं निकल गये तारे

रात पहाड़ों पर जो फूल खिले थे
उन्हें ढूँढने वादियों में उतर गये तारे

तन्हाईयों में बातें करते रहे बेआवाज़
सहमकर सुबह शोर से गुज़र गये तारे

चमक रहे है फूलों पर शबनमी कतरे
खुशबू बनकर गुलों में ठहर गये तारे

           #श्वेता🍁

Saturday, 15 April 2017

शाम

सूरज डूबा दरिया में हो गयी स्याह सँवलाई शाम
मौन का घूँघट ओढ़े बैठी, दुल्हन सी शरमाई शाम

थके पथिक पंछी भी वापस लौटे अपने ठिकाने में
बिटिया पूछे बाबा को, झोली में क्या भर लाई शाम

छोड़ पुराने नये ख्वाब अब नयना भरने को आतुर है
पोंछ के काजल ,चाँदनी भरके थोड़ी सी पगलाई शाम

चुप है चंदा चुप है तारे वन के सारे पेड़ भी चुप है
अंधेरे की ओढ़ चदरिया, लगता है पथराई शाम

भर आँचल में जुगनू तारे बाँट आऊँ अंधेरों को मैं
भरूँ उजाला कण कण में,सोच सोच मुस्काई शाम

             #श्वेता🍁

खुशबू


साँसों से नहीं जाती है जज़्बात की खुशबू
यादों में घुल गयी है मुलाकात की खुशबू


चुपके से पलकें चूम गयी ख्वाब चाँदनी
तनमन में बस गयी है कल रात की खुशबू

नाराज़ हुआ सूरज जलने लगी धरा भी
बादल छुपाये बैठा है बरसात की खुशबू

कल शाम ही छुआ तुमने आँखों से मुझे
होठों में रच गयी तेरे सौगात की खुशबू

तन्हाई के आँगन में पहन के झाँझरे
जेहन में गुनगुनाएँ तेरे बात की खुशबू

        #श्वेता🍁

आस का पंछी

कोमल पंखों को फैलाकर खग नील गगन छू आता है।
हर मौसम में आस का पंछी सपनों को सहलाता है।।

गिरने से न घबराना तुम  गिरकर ही सँभलना आता है।
पतझड़ में गिरा बीज वक्त पे नया पौध बन जाता है।।

जीवन के महायुद्ध में मिल जाए कितने दुर्योधन तुमको।
बुरा कर्म भी थर्राये जब रण में अर्जुन गांडीव उठाता है।।

टूटे सपनों के टुकड़ों को न  देख कर आहें भरा करो।
तराशने का दर्द सहा तभी तो हीरा अनमोल बन पाता है।।

     #श्वेता🍁

Friday, 14 April 2017

गुलाब

भोर की प्रथम रश्मि मुस्काई
गुलाब की पंखुड़ियों को दुलराई
जग जाओ ओ  फूलों की रानी
देख दिवस नवीन लेकर मैं आई

संग हवाओं की लहरों में इठलाकर
रंग बिरंगी परिधानों में बल खाकर
तितली भँवरों ने गीत गुनगुनाए है
गुलाब के खिले रूख़सारों पर जाकर

बिखरी खुशबुएँ मन ललचाएँ
छूने को आतुर हुई है उंगलियाँ
काश कि कोई जतन कर पाती
न मुरझाती फूलों की कलियाँ

देख सुर्ख गुलाब की भरी डालियाँ
जी डोले अँख भरे रस पियालियाँ
खिल जाते मुख अधर कपोल भी
पिया की याद में महकी जब गलियाँ

          #श्वेता🍁




Thursday, 13 April 2017

मेरा चाँद

ओ रात के चाँद
तेरे दीदार को मैं
दिन ढले ही
छत पर बैठ जाती हूँ
घटाओं के बीच
ढ़ूँढ़ती हूँ घंटों
अनगिनत तारे भी गिनती हूँ
झलक तेरी दिख जाए
तुझे छूने को मैं दिवानी
अपनी अंजुरी में भर लेती
कभी उंगलियों के पोरों से
उन कलियों को छू लेती
जहाँ गिरती है चँदनियाँ
उस ओसारे पे रख पाँव
किरणों से मैं खेलूँ
कभी बाहें पसारे
पलकें मूँदे महसूस करती हूँ
तेरा शीतल उजाला मैं
अक्सर बाहों में भर लेती
जी भरता नहीं मेरा
कितना भी तुमको मैं देखूँ
उठा परदे झरोखों के
अंधेरे कमरे के बिछौने पर
तुझे पाकर मैं खुश होती
तकिये पर हर टिकाकर
अपनी आँखों से
जाने कितनी ही बात करती हूँ
तुझे पलकों भरती जाने
कब नींद से सो जाती
तेरी रेशम सी किरणों का
झिलमिल दुशाले को ओढकर
ख्वाब में खो जाती हूँ
मेरे तन्हा मन के साथी
चाँद तुम दूर हो लेकिन
तुम्हें मैं पा ही लेती हूँ।

     .#श्वेता🍁




मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...