*चित्र साभार गूगल*
मोहब्बत की रस्में अदा कर चुके हम
मिटाकर के ख़ुद को वफ़ा कर चुके हम
इबादत में कुछ और दिखता नहीं है
सज़दे में उन को ख़ुदा कर चुके हम
ये कैसी ख़ुमारी में भूले ज़माना
कितनों को जाने खफ़ा कर चुके हम
बड़े बेरहम,बेमुरव्वत हो जानम
शिकवा ये कितनी दफ़ा कर चुके हम
जाता नहीं दर्द दिल का है भारी
हकीमों से कितनी दवा कर चुके हम
#श्वेता🍁
बड़े बेरहम,बेमुरव्वत हो जानम
शिकवा ये कितनी दफ़ा कर चुके हम
जाता नहीं दर्द दिल का है भारी
हकीमों से कितनी दवा कर चुके हम
#श्वेता🍁
खूबसूरत गजल
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका रंगराज जी।आपकी उपस्थिति और सराहना से अति प्रसन्नता हुयी।
Deleteउम्दा गज़ल स्वेता जी.आप की लेखनी ने इश्क के इकरार को ज़िंदगी अता कर दी है. सादर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार एवं तहेदिल से शुक्रिया आपका अपर्णा जी।
Deleteसरलता का कोई विकल्प नहीं।
ReplyDeleteग़ज़ल इतने सहज शब्दों में जब आकार लेती है तो वाचक/ श्रोता से सीधा संवाद करती है दूसरे शब्दों में कहें तो आम जन को पूरी तरह समझ आती है।
ऐसी ग़ज़ल समूह को प्रभावित करती है और लोकप्रिय हो जाती है।
हो सकता है किसी मंच से सुनने को भी मिले।
बधाई एवं शुभकामनाऐं श्वेता जी।
हिंदी में नुक्ता (क ,ख ,ग,ज ,फ के नीचे रखी जाने वाली बिंदी (.) क़ , ख़ , ग़ , ज़ , फ़ ) के साथ शब्द लिखने पर विवाद है क्योंकि इसका महत्व उर्दू में है किन्तु सही उच्चारण और अर्थ का अनर्थ होने से बचने के लिए मेरे अनुसार नुक्ता लगाया जाना चाहिए।
यादव जी, आपने सही कहा कि आज तक हिंदी में नुक्ता को नहीं अपनाया है. पर जब उर्दू के शब्दों का प्रयोग हो रहा है तो अर्थ के अनर्थ होने से बचने के लिए नुक्ता जरूरी हो जाता है. आप परिचित होंगे ...कहा जाता है कि उर्दू में नुक्ता के हेरफेर से खुदा जुदा हो जाता है. लिपि आती हो तो लिख कर देखें... इसे सही करार दिया है कई ने.
Deleteसादर.
अयंगर
जी रवींद्र जी सर्वप्रथम आपकी सुंदर उत्साहवर्धन करती सराहना भरी प्रतिक्रिया के लिए तहेदिल से बहुत शुक्रिया एवं बहुत बहुत आभार।
Deleteजी सही कहा आपने उर्दू में नुक्ता का बहुत महत्व है आपने ध्यान दिलाया उसके लिए बहुत आभारी है, टाईप करते समय शायद नज़र अदाज़ हो गयी थी एक जगह हम सुधार कर लिये।
कृपया, अपनी सूक्ष्म दृष्टि सदैव बनाये रखे यही प्रार्थना है आपसे। आपकी शुभकामनओं की सदैव आकांक्षी हूँ।
आदरणीय रंगराज जी आपकी बातों से सहमत है हम।आशा है आपके ज्ञान का आशीष आगे भी आपके सानिध्य में मिलता रहेगा।कृपया मेरी त्रुटियाँ पर अवश्य ध्यान दें यही प्रार्थना है। हृदय से अति आभार आपका।
ReplyDeleteश्वेता जी, आप मुझे पेड़ पर मत टाँगिए. मैं भी आपके बीच का ही एक पाखी हूँ.
Deleteविनम्रता स्वीकारें.
अयंगर
जी,रंगराज जी आपकी विनम्रता को नमन।
Deleteआपका हृदय से सदा स्वागत है।
थोड़े ही शब्द बहुत कुछ बयान कर जाते हैं. सुन्दर.
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बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका।
Deleteबड़ी सुन्दरता से आज और कल की परिस्थितियाँ बयान की हैं....खुद में ही लिप्त...प्यारी सी खूबसूरत गजल
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका शुक्रिया संजय जी।
Deleteप्रेम का रोग कब हकीमों की दवा से दूर हुआ है ...
ReplyDeleteहर शेर बेहतरीन है ...
बहुत बहुत आभार आपका तहेदिल से शुक्रिया नासवा जी।
Deleteबहुत सुन्दर मनोभाव हैं आपकी गज़ल में श्वेता जी .
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार तहेदिल से शुक्रिया आपका मीना जी।
Deleteबहुत सुंदर !!!!!!! मन के कोमल भावों को उकेरती प्यारी सी गज़ल !!!!!!!!!! बहुत शुभकामना आदरणीय श्वेता जी --
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए रेणु जी।
Deleteसुंदर !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मीना जी सस्नेह शुक्रिया आपका।
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ReplyDeleteजाता नहीं दर्द दिल का है भारी
हकीमों से कितनी दवा कर चुके हम... क्या बात है
बहुत बेहतरीन ग़ज़ल
हर शेर लाजवाब
बहुत बहुत आभार तहेदिल से शुक्रिया आपका लोकेश जी।
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