अच्छा हुआ कि लोग गिरह खोलने लगे।
दिल के ज़हर शिगाफ़े-लब से घोलने लगे।।
पलकों से बूंद-बूंद गिरी ख़्वाहिशें तमाम।
उम्रे-रवाँ के ख़्वाब सारे डोलने लगे।।
ख़ुश देखकर मुझे वो परेश़ान हो गये।
फिर यूँ हुआ हर लफ़्ज़ मेरे तौलने लगे।।
मैंने ज़रा-सी खोल दी मुट्ठी भरी हुई।
तश्ते-फ़लक पर तारे रंग घोलने लगे।।
सिसकियाँ सुनता नहीं सूना हुआ शहर।
हँस के जो बात की तो लोग बोलने लगे।।
#श्वेता🍁
शिग़ाफ़े-लब=होंठ की दरार
उम्रे-रवाँ=बहती उम्र
तश्ते-फ़लक=आसमां की तश्तरी
शुभ संध्या सखी
ReplyDeleteबेहतरीन....
चमनदार अश़आर
अच्छा हुआ कि लोग गिरह खोलने लगे।
दिल के ज़हर शिगाफ़े-लब से घोलने लगे।।
सादर
बहुत बहुत आभार दी,तहेदिल से बहुत.शुक्रिया आपका:)
Deleteसादर।सप्रेम।
आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 24 दिसम्बर 2017 को साझा की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआदरणीय सर जी,बहुत बहुत आभार आपका,तहेदिल से शुक्रिया।
Delete
ReplyDeleteसिसकियाँ सुनता नहीं सूना हुआ शहर।
हँस के जो बात की तो लोग बोलने लगे।
....तल्ख लफ्जों में कहा है जमाने के दस्तूर को,मिठास के आदी कड़वा सच कहाँ बर्दाश्त कर पाते हैं...
जी,सही कहा आपने मीना जी,
Deleteआपके निरंतर साथ का अति आभार,तहेदिल से शुक्रिया आपका।
बहुत ही जबरदस्त
ReplyDeleteबहुत उम्दा शेर, बेहतरीन ग़ज़ल
बहुत बहुत आभार आपका लोकेश जी,तहेदिल से बहुत शुक्रिया आपका।
Deleteजुबान-ए-उर्दु आज कयामत तक ले जाएगी,
ReplyDeleteकहर बरपा यह शायरी न जाने कहाँ ढाएगी....
बहुत ही उम्दा तकल्लुफ लिए शानदार कोशिश । बधाई श्वेता जी।
जी बस सीख रहे है आदरणीय p.k ji,
Deleteएक छोटी कोशिश थी,आपके सराहनीय ऊर्जावान शब्दों के लिए अति आवश्यक आभार आपका।
वाह
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सर।
Deleteउम्दा शेर, बेहतरीन ग़ज़ल...बधाई श्वेता जी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका नीतू जी।
Deleteपलकों से बूंद-बूंद गिरी ख़्वाहिशें तमाम।
ReplyDelete------------------------- वाह !
बहुत बहुत आभार आपका प्रतिभा जी,तहेदिल से शुक्रिया बहुत।
Deleteसुंदर!!!
ReplyDeleteअति आभार आपका विश्वमोहन जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteबहुत ही उम्दा....,
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मीना जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteबहुत ही उम्दा गज़ल, स्वेता।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ज्योति जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteपलकों से बूंद-बूंद गिरी ख़्वाहिशें तमाम।
ReplyDeleteउम्रे-रवाँ के ख़्वाब सारे डोलने लगे।।
वाह बहुत ही अच्छा लिखती हैं आप श्वेता ... बधाई
आपके सराहनीय शब्दों ने नयी ऊर्जा भर दी सदा जी,एक रचनाकार के लिए अनमोल है ऐसी सराहना।हृदयतल से आपके आभारी है हम।
Deleteवाह ! वाह ! क्या कहने हैं ! लाजवाब !! एक से बढ़कर एक शेर ! बहुत खूब आदरणीया । बहुत खूब ।
ReplyDeleteआदरणीय सर,आपका आशीष सदैव बना रहे यही कामना है।.बहुत बहुत आभार.आपका,तहेदिल से शुक्रिया।
Deleteवाह! नज़्म हाज़िर हुई करारा व्यंग लेकर। ज़माने से जब शिकायतें हद पार कर जाएं तो बनती है कुछ ऐसी ही नज़्म।
ReplyDeleteइस ख़ूबसूरत अंदाज-ए-बयां के लिए श्वेता जी आपको बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।
आपकी क़लमकारी का यह निराला अंदाज़ बड़ा मौजू है।
लिखते रहिए।
आपकी उत्साहवर्द्धक प्रतिक्रिया मुदित कर कर गयी,अति आभार आपका रवींद्र जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका बहुत सारा।
Deleteआपके शुभकामनाएँ सदैव अपेक्षित है आदरणीय रवींद्र जी।