गहराते रात के साये में
सुबह से दौड़ता-भागता शहर
थककर सुस्त क़दमों से चलने लगा
जलती-बुझती तेज़ -फीकी
दूधिया-पीली रोशनी के
जगमगाते-टिमटिमाते
असंख्य सितारे
ऊँची अट्टालिकाओं से झाँकते
निर्निमेष ताकते हैं राहों को
सड़कों पर दौड़ती मशीनी
ज़िंन्दगी
लौटते अपने घरौंदे को
बोझिलता का लबादा पहने
सर्द रात की हल्की धुंध में
कंपकंपाती हथेलियों को
रगड़ते रह-रहकर
मोड़कर कुहनियों को
मुट्ठी बाँधते जैकेट में
गरमाहट ढूँढ़ते
बस की खिड़की से बाहर
स्याह आसमां की
कहकशाँ निहारते
पूरे चाँद को जब देखता हूँ
तुम्हारा ख़्याल अक्सर
हावी हो जाता है
तुम्हारी बातें
घुलने लगती हैं
संदली ख़ुशबू-सी
सिहरती हवाओं
के साथ मिलकर
गुनगुनाने लगती हैं
जानता हूँ मैं
तुम भी ठंड़ी छत की
नम मुँडेरों पर खड़ी
उनींदी आँखों से
देखती होओगी चाँद को
एक चाँद ही तो है
जिसे तुम्हारी आँखें छूकर
भेजती हैं एहसास
जो लिपट जाते हैं मुझसे
आकर बेधड़क,
और छोड़ जाते हैं
गहरे निशां
तुम्हारी रेशमी यादों के ।
#श्वेता🍁
भावों से संपूर्ण,शब्दों से गहरी बेहद खूबसूरत रचना 👌👏
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आँचल जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Delete👌👌वाह श्वेता ज़ी वाह ...
ReplyDeleteभावो का अद्भुत उन्वान ...👏👏👏👏👏
सर्द रात का तन्हा चाँद
याद तुम्हरी दे जाता
जर्रा जर्रा याद महकती
जब भी तुमको छू आता !
बहुत बहुत आभार आपका प्रिय इन्दिरा,
Deleteआपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया एक नवीन उत्साह भर गयी।
वाह बेहद खूबसूरत रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सुधा जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Delete"तुम भी ठंडी छत की
ReplyDeleteनम मुंडेरों पर खड़ी
उनींदी आंखों से"
वाह!!!!कमाल की रुमानियत समेटे हुए रेशमाई अहसास.... शब्दों में क्या खुब पिरो दिया आपने... वाकई पढ़ कर बहुत अच्छा लगा..!
बहुत बहुत आभार आपका अनु,बहुत प्यारी प्रतिक्रिया आप जैसी ही।
Deleteतहेदिल से शुक्रिया आपका।
नर्म-नर्म सा ...
ReplyDeleteअमृता जी ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
Deleteबहुत बहुत आभार आपके प्यारे शब्दों के लिए।
बहुत सुन्दर अहसास👌👌
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार मीना जी,तहेदिल से.शुक्रिया बहुत सारा।
Deleteवाह कमाल का रचना कोमल अहसासों के तले ..
ReplyDeleteसच में
आकर बेधड़क,
और छोड़ जाते हैं
गहरे निशां
तुम्हारी रेशमी यादों के
बहुत बढिया..।
पम्मी जी आपकी प्रतिक्रिया सदैव कुछ खास होने का एहसास करा जाती है:))
Deleteअति आभार आपका तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा।
वाह!! बहुत सुंंदर श्वेता जी ।
ReplyDeleteबहुत आभार आपका शुभा जी।तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteतुम्हारी बातें
ReplyDeleteघुलने लगती हैं
संदली ख़ुशबू-सी
सिहरती हवाओं
के साथ मिलकर
गुनगुनाने लगती हैं.... बहुत सुन्दर रचना
बहुत बहुत आभार वंदना जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका बहुत सारा।
Deleteएक चाँद हिन्तो साक्षी है इस दूरी का इस मुहब्बत का जिसके द्वारा जाता है तन्हाई का पैग़ाम ...
ReplyDeleteइन ख़ूबसूरत बातों का फ़लसफ़ा ... लाजवाब
नव वर्ष मंगलमय हो ...
जी आभार आपका नासवा जी,कभी कभी कल्पना की उड़ान ऐसी भी रचनाएँ बना देती है।
Deleteतहेदिल से शुक्रिया आपका बहुत सारा।
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
आज गुरूवार 04-01-2018 को प्रकाशित हुए 902 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर। खेद है कि आपको सूचना देने में देरी हुई।
सधन्यवाद।
जी बहुत-बहुत आभार आपका रवींद्र जी,मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए।
Deleteबहुत ही खुबसुरत रचना, स्वेता! नववर्ष की बहुत-बहुत बधाई...
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार आपका ज्योति जी।आप के लिए भी शुभकामनाएँ नववर्ष मंगलमय हो।
Deleteबहुत ख़ूब श्वेता जी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार रितु जी आपका।
DeleteKhubsurati ke dhage mein page ehsas
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका अभि जी।
Deleteवाह्ह्ह श्वेता दी ! (मैं आपको दीदी बुला सकता हूँ ना ?) एकदम हृदय को स्पर्श करने वाली रचना। सारे शब्द एक मोती के लड़ी के भाँति है। भाव, मुख पे मुस्कान की भाँति उभर के आ रही है।
ReplyDeleteमुझे बेहद पसंद आया।
मेरी कुछ पसंदीदा पंक्तियाँ -
"पूरे चाँद को जब देखता हूँ
तुम्हारा ख़्याल अक्सर
हावी हो जाता है"
"एक चाँद ही तो है
जिसे तुम्हारी आँखें छूकर
भेजती हैं एहसास"
जी,आप निःसंकोच दीदी बुला सकते है हमको:))
Deleteआपकी स्नेहमयी प्रतिक्रिया अभिभूत कर गयी।
बेहद आभार आपका तहेदिल से शुक्रिया आपका बहुत प्रकाश जी। आपको मेरी रचना पसंद आयी पढ़कर बहुत अच्छा लगा:)
बेहद खूबसूरत रचना....
ReplyDeleteदेखती होओगी चाँद को
एक चाँद ही तो है
जिसे तुम्हारी आँखें छूकर
भेजती हैं एहसास
जो लिपट जाते हैं मुझसे
आकर बेधड़क,
अद्भुत, लाजवाब
वाह!!!
बेहद शुक्रिया आपका सुधा जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका सुधा जी।ऊर्जा से लबरेज़ आपकी प्रतिक्रिया उत्साह का संचार कर गयी।
Deleteलाज़वाब...बधाई एवं शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका नीतू जी।
Deleteऔर छोड़ जाते हैं
ReplyDeleteगहरे निशां
तुम्हारी रेशमी यादों के ।
बेहतरीन कविता
अतिसुन्दर रचना स्वेता जी
ReplyDeleteज़िंन्दगी
ReplyDeleteलौटते अपने घरौंदे को
बोझिलता का लबादा पहने
सर्द रात की हल्की धुंध में
बेहद खूबसूरत रचना....
स्नेह से लबरेज. एक एक शब्द जीता जागता सा. बेहद खूबसूरत प्रेममय रचना 👌 👌 👌 👌
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