मौन हृदय के स्पंदन के
सुगंध में खोये
जग के कोलाहल से परे
एक अनछुआ एहसास
सम्मोहित करता है
एक अनजानी कशिश
खींचती है अपनी ओर
एकान्त को भर देती है
महकती रोशनी से
और मैं विलीन हो जाती हूँ
शून्य में कहीं जहाँ
भावनाओं में बहते
संवेदनाओं की मीठी-सी निर्झरी
मन को तृप्त करने का
असफल प्रयास करती है,
उस प्रवाह में डूबती-उतरती
भूलकर सर्वस्व
तुम्हें महसूस करती हूँ
तुम पास हो कि दूर
फ़र्क नहीं पड़ता
पर, तुम साथ होते हो,
धड़कते दिल की तरह,
उस श्वास की तरह
जो अदृश्य होकर भी
जीवन का एहसास है।
- श्वेता सिन्हा
आपकी लिखी रचना आज के "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 25 मार्च 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteभूलकर सर्वस्व
ReplyDeleteतुम्हें महसूस करती हूँ
तुम पास हो कि दूर
फ़र्क नहीं पड़ता
पर, तुम साथ होते हो,
धड़कते दिल की तरह,
उस श्वास की तरह
जो अदृश्य होकर भी
जीवन का एहसास है।
प्रिय श्वेता जी,आपने 'एहसास 'को शब्दों में पिरो कर मौन प्रेम का बहुत सुन्दर एहसास कराया है ।
सुंदर रचना ।
सादर ।
वाह!!श्वेता...बहुत खूबसूरत शब्दों के मोतियों में पिरोया है आपने अपनी इस रचना की माला को ...
ReplyDeleteवाव्व...स्वेता,बहुत ही सुंदर एहसासों से परिपूर्ण रचना।
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteउम्दा रचना
कोमल एहसास को शब्दों में पिरो दिया है
उनका जीवन सफल है जिनके पास इतने सुंदर एहसास हों . सुंदर प्रस्तुति .
ReplyDeleteएक अनछुआ एहसास.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, शानदार , लाजवाब
वाह!!!
किसी के होने का अहसास वक संबल है जो थाम के रखता है हमेशा फिर को चेतन में साथ है की नहि क्या फ़र्क़ पड़ता है ... प्रेम का रंग जब चढ़ जाता है अहसास के द्वार खुल जाते हैं ...
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण रचना है ..।
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