आरक्षण के नाम पर
घनघोर मचा है क्लेश
अधिकारों के दावानल में
पल-पल सुलगता देश
लालच विशेषाधिकार का
निज स्वार्थ में भ्रमित हो
क्या मिल जायेगा सोचो?
दूजे नीड़ के तिनकों से,
चुनकर के स्वप्न अवशेष
जाति,धर्म के दीमक ने ही
प्रतिभाओं को चाट लिया
नेताओं ने कुर्सी की खातिर
अगड़े पिछड़े को बाँट लिया
टुकड़े हो देश,यही दुर्गति शेष
आरक्षण की वेदी पर चढ़ा
अनगिनत मासूमों की भेंट
नर,नराधम अमानुष बन
पुरुषार्थ हीन करते आखेट
फिर,कैसे तुम हुये विशेष?
अधिकारों का ढोल पीटते
कितने कर्तव्य निर्वहन किये?
बस जलाकर,दहशत फैला
अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किये
देशभक्ति का यह अनूठा वेश
बाजुओं में दम है तो जाओ
कर्मों की अग्नि जलाओ
क्यों बनो याचक कहो न?
बन के सूरज जगमगाओ
सार्थक उदाहरण,तुम बनो संदेश
-श्वेता सिन्हा
बाजुओं में दम है तो जाओ
ReplyDeleteकर्मों की अग्नि जलाओ
क्यों बनो याचक कहो न?
बन के सूरज जगमगाओ
सार्थक उदाहरण,तुम बनो संदेश......बहुत सुन्दर पंक्तियाँ!!!बधाई!!!
जाति,धर्म के दीमक ने ही
ReplyDeleteप्रतिभाओं को चाट लिया
नेताओं ने कुर्सी की खातिर
अगड़े पिछड़े को बाँट लिया
टुकड़े हो देश,यही दुर्गति शेष...
एक सार्थक रचना हेतु बधाई...👌👌👌👌
कहते है जो दुनिया से की
ReplyDeleteजात पात का भेद न कर
वही बांटते है आरक्षाण
पूछ पूछ कर जात अगर
तो खुल कर बोलो दलित है हम
हम सदा हाथ फैलायेंगे
मांगेंगे तुमसे भीख मगर
तुमको ही आँख दिखायेंगे
इस जात पात की दीमक को
सरकारें ही फैलाती हैं
शर्म नही आती है जब
औरों को पाठ पढाती हैं
बहुत गंभीर विषय पर शानदार रचना
बहुत बेहतरीन
ReplyDeleteकरारी चोट
आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 4अप्रैल 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआरक्षण पर देश समर्थन और विरोध में बंटा हुआ है. शिक्षा व्यवस्था को एक समान बनाने से आरक्षण व्यवस्था की आवश्यकता निष्प्रभावी हो सकती है. एक ओर देश में ऐसे सरकारी विद्यालय और महाविद्यालय हैं जहां शिक्षण सम्बंधी न्यूनतम सुबिधाएं तक नहीं हैं वहीं दूसरी ओर भव्यता से परिपूर्ण शिक्षण संस्थान हैं. जब किसी नौकरी के लिये परीक्षा ली जाती है तो उसका पेपर सभी परीक्षार्थियों को एक जैसा थमाया जाता है. यहाँ विचार करना होगा परीक्षा में कौन-सा विद्यार्थी सफल होगा.
ReplyDeleteरचना में आरक्षण विरोधी आक्रोश साफ़ झलक रहा है. आरक्षण समाप्ति की मांग करने वालों के ज़ख्म़ पर मरहम लगाती है. इस आवाज़ को भी सुना जाना चाहिये. सभी राजनैतिक दल संसद में आरक्षण का समर्थन करते हैं लेकिन कोई अपने फ्रिंज समूहों के माध्यम से मुद्दे को सुलगाते रखता है.
इस ज्वलंत मुद्दे पर तार्किक बहस की ज़रूरत है ताकि युवाओं को हताशा के गर्त में जाने से रोका जा सके.
आरक्षण जिस तबके को मिल पा रहा है उसकी जनसंख्या के अनुपात में वह ऊँट के मुंह में जीरा है. सरकार लगातार नौकरियों के अवसर कम करती जा रही है अर्थात केक छोटा होता जा रहा है जिसके लिये छीना-झपटी जैसी स्थिति है.
संविधान में प्रतिनिधित्व देने के लिये आरक्षण का प्रावधान किया गया लेकिन सामाजिक असमानता को ख़त्म करने का यह प्रयास आज चुनावी जुमला ही साबित हो रहा है.
सटीक सामयिक पंक्तियाँ ...
ReplyDeleteदेश में राजनीतिक पार्टियों ने स्वार्थ की ख़ातिर ऐसा खेल रचा है की देश रसतल की उर ही जाए पर उनकी कुर्सी बची रहे ...
हम सब अब इतने स्वार्थी हो चुके हैं कि अपने स्वार्थ से आगे कुछ नहीं दिखता ...
आरक्षण जब गुणवत्ता पर हावी होने लगे तब उसका विरोध होना ही चाहिए। सभी जानते हैं कि किस प्रकार आरक्षण की लाठी के सहारे कितने ही नाकाबिल लोगों की नैया पार लग जाती है और काबिल,मेहनती और हकदार इंसान हाथ पैर मारते रह जाते हैं ताज़िंदगी....सामयिक मुद्दे पर इस प्रखर रचना हेतु बधाई श्वेताजी !!!
ReplyDeleteआरक्षण अब एक समस्या बनता जा रहा है, इसका खास कारण ये भी है आरक्षण का लाभ भी केवल वही उठा पा रहे हैं जो उस वर्ग में समर्थ हैं ...वो अपने ही वर्ग के लोगों का शोषण कर रहे हैं | ... बहुत जरूरी मुद्दा उठाया आपने , शेयर करने के लिए शुक्रिया
ReplyDeleteवाह!!श्वेता ,क्या खूब लिखा है ..आरक्षण शायद काबिलियत को खा रहा है ..
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ReplyDeleteबाजुओं में दम है तो जाओ
कर्मों की अग्नि जलाओ
क्यों बनो याचक कहो न?
बन के सूरज जगमगाओ
सार्थक उदाहरण,तुम बनो संदेश।
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, स्वेता। अब आरक्षण खत्म होना ही चाहिए।
आरक्षण जाति विशेष को नहीं जरूरतमन्द(दिव्यांग, गरीब,शहीदों के परिवार को ,अनाथों)आदि को मिले...तो सही हो ...
ReplyDeleteबहुत लाजवाब अभिव्यक्ति....
जाति,धर्म के दीमक ने ही
प्रतिभाओं को चाट लिया
नेताओं ने कुर्सी की खातिर
अगड़े पिछड़े को बाँट लिया
टुकड़े हो देश,यही दुर्गति शेष
बहुत सटीक
वाह!!!!
एक सुलगता ज्वालामुखी जैसे मीलों मीलों भूमि और वातावरण को दूषित करता रहता है, युगों तक जहां सब कुछ निसक्रिय बंजड़ उजाड़ और भयभीत करने वाला माहौल होता है जहां विकास अर्थ हीन होता है, वैसा ही आरक्षण का प्रभाव होगा, देश नश्ल सामाज पर बंदर के हाथ उस्तरा वाली कहावत सच होगी।
ReplyDeleteश्वेता आरक्षण पर आपकी बहुत ही जोरदार अभिव्यक्ति, काव्य और भाव दोनो स्पष्ट और सामाईक, साधुवाद।
लालच विशेषाधिकार का
ReplyDeleteनिज स्वार्थ में भ्रमित हो
क्या मिल जायेगा सोचो?
दूजे नीड़ के तिनकों से,
चुनकर के स्वप्न अवशेष--
प्रिय श्वेता ----- रचना में जो ज्वलंत प्रश्न उकेरे गये हैं उनका आज राष्ट्रभर बड़ी विकलता से सामना कर रहा है | बहुत ही सार्थक प्रश्न और जीवन में कर्म का आह्वान बहुत ही प्रेरक है | सस्नेह --
आदरणीय रवीन्द्र जी की सारगर्भित टिपण्णी बहुत ज्ञानवर्धक है |
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