देह की
परिधियों तक
सीमित कर
स्त्री की
परिभाषा
है नारेबाजी
समानता की।
दस हो या पचास
कोख का सृजन
उसी रजस्वला काल
से संभव
तुम पवित्र हो
जन्म लेकर
जन्मदात्री
अपवित्र कैसे?
रुढ़ियों को
मान देकर
अपमान मातृत्व का
मान्यता की आड़ में
अहं तुष्टि या
सृष्टि के
शुचि कृति का
तमगा पुरुष को
देव दृष्टि
सृष्टि के
समस्त जीव पर
समान,
फिर...
स्त्री पुरुष में भेद?
देवत्व को
परिभाषित करते
प्रतिनिधियो;
देवता का
सही अर्थ क्या?
देह के बंदीगृह से
स्वतंत्र होने को
छटपटाती आत्मा
स्त्री-पुरुष के भेद
मिटाकर ही
पा सकेगी
ब्रह्म और जीव
की सही परिभाषा।
-श्वेता सिन्हा
स्त्री पुरुष की रचना करते समय ईश्वर के मन में शायद सृष्टि को अनवरत रखने की जद्दोजहद रही होगी। शेष तो, मानव विवेक की कारगुजारी है।
ReplyDeleteअच्छी सोच के साथ लिखी गई है यह रचना। बधाई आदरणीय श्वेता जी।
आदरणीय p.k ji आपकी त्वरित प्रतिक्रिया के लिए आभारी हू्ँँ...बेहद शुक्रिया आपका।
Deleteदेह के बंदीगृह से
ReplyDeleteस्वतंत्र होने को
छटपटाती आत्मा
स्त्री-पुरुष के भेद
मिटाकर ही
पा सकेगी
ब्रह्म और जीव
की सही परिभाषा।
गहन चिंतन के साथ लिखी रचना ...,
बेहतरीन 👌👌
Very True and realistic thoughts, Waah waah........ Female are more powerful provided they understand their power and capability and given opportunity. Beautiful thoughts. very true..
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना आदरणीया श्वेता जी मन को छू रहे, हर शब्द जैसे अपने अस्तित्व की गाथा सुना रहे
ReplyDeleteसादर
व्यंग्यात्मक रचना
ReplyDeleteबहुत खूब.....आदरणीया।
सत्य को उद्घाटित करती सार्थक रचना
ReplyDeleteदस हो या पचास
ReplyDeleteकोख का सृजन
उसी रजस्वला काल
से संभव
तुम पवित्र हो
जन्म लेकर
जन्मदात्री
अपवित्र कैसे?
विचारणीय एवं सटीक .....
लाजवाब व्यंग्यात्मक सारगर्भित प्रस्तुति...
वाह श्वेता ! तुम्हारी इस कविता को सबरीमाला मंदिर के ठेकेदारों को पढ़ना चाहिए. कोई स्वयं-भू पुरुष ही स्त्री को स्वयं से हीन समझ सकता है. स्त्री की महानता की थाह न पाने की असमर्थता ही पुरुष को उसका दमन करने के लिए प्रेरित करती है.
ReplyDeleteबहुत खूब .....स्वेता जी ,सादर स्नेह
ReplyDeleteदेह की
ReplyDeleteपरिधियों तक
सीमित कर
स्त्री की
परिभाषा
है नारेबाजी
समानता की।
बेमिशाल,गहरे भावों शब्दो को समेटे हुये हैं ये रचना।सादर
ये प्रश्नचिन्ह अपने आप में क्रांति हैं.
ReplyDeleteनिश्चित ही कट्टर धार्मिक तत्व स्त्री विरोधी हैं और इनकी सम्पूर्णत: मतिभ्रष्ट हो गयी है.
जितनी कु-प्रथाएं हैं सब स्त्रियों पर अत्याचार हैं. आप देखें
स्त्री के पहनावे से लेकर उनकी जीवनशैली और जीने के अधिकार तक इन सब पर आदमी का अधिकार है या यूँ कहें कि इसने जानबुझकर ये अधिकार अपने पास रखे हैं.
उम्दा रचना है.
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शुक्रवार 11 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सटीक सृजन 👌👌
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteवाह.....अद्भुत सृजन
ReplyDeleteवाह, सटीक व्याख्या समानता की। 👌👌👌👌
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