Friday 4 October 2019

प्रभाव..एक सच


देश-दुनिया भर की
व्यथित,भयाक्रांत 
विचारणीय,चर्चित
ख़बरों से बेखबर
समाज की दुर्घटनाओं
अमानवीयता,बर्बरता
से सने मानवीय मूल्यों
को दरकिनार कर,
द्वेष,घृणा,ईष्या की 
ज्वाला में जलते 
पीड़ित मन की
पुकार अनसुना कर
मोड़कर रख देते हैं अख़बार,
बदल देते हैं चैनल..., 
फिर, कुछ ही देर में वैचारिकी
प्रवाह की दिशा बदल जाती है....।
हम यथार्थवादी,
अपना घर,अपना परिवार,
अपने बच्चों की छोटी-बड़ी
उलझनों,खुशियों,जरूरतों और 
मुसकानों में पा लेते हैं
सारे जहाँ का स्वार्गिक सुख
हमारी प्राथमिकताएँ ही तय
करती है हमारी संवेदनाओं
का स्तर
क़लम की नोंक रगड़ने से
हमारे स्याही लीपने-पोतने से
बड़े वक्तव्यों से
आक्रोश,उत्तेजना,अफ़सोस 
या संवेदना की भाव-भंगिमा से
नहीं बदला जा सकता है
 किसी का जीवन
बस दर्ज हो जाती है औपचारिकता।

हाँ, पर प्रेम....।
स्वयं से,अपनों से,समाज से 
देश से,प्रकृति से,जीवन से
भरपूर करते हैं
क्योंकि हम जानते हैं 
हमारी प्रेम भरी भावनाओं का
कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा..,
देश-दुनिया के 
वाद-विवाद,संवाद और
राजनीतिक तापमान पर...।

#श्वेता सिन्हा











नोटः अर्चना कुमारी की एक रचना से प्रेरित। सादर

20 comments:

  1. सही लिखा स्वेता जी दिन भर चल रहे न्यूज चैनल
    माना कि सच दिखाना उनका काम है फिर भी एक ही ख़बर को बार-बार देने से किसी के भी मन में उन विचारों का प्रभाव घर कर सकता है ,परंतु हमारी स्व्यम की परस्पर स्नेह की भावना पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता चाहिए

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  2. हाँ, पर प्रेम....।
    स्वयं से,अपनों से,समाज से
    देश से,प्रकृति से,जीवन से
    भरपूर करते हैं
    क्योंकि हम जानते हैं
    हमारी प्रेम भरी भावनाओं का
    कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा..,
    देश-दुनिया के
    वाद-विवाद,संवाद और
    राजनीतिक तापमान पर...।
    .
    सत्य का यथार्थ वर्णन👏🏻👏🏻👏🏻

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  3. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (0५ -१०-२०१९ ) को "क़ुदरत की कहानी "(चर्चा अंक- ३४७४) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  4. यथार्थ के कठोर सत्य को वर्णित करती सार्थक चिंतन देती रचना।

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  5. Very nicely written.. Jawab nahi.....great

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  6. समय को साधती शानदार रचना

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  7. , पर प्रेम....।
    स्वयं से,अपनों से,समाज से
    देश से,प्रकृति से,जीवन से
    भरपूर करते हैं
    क्योंकि हम जानते हैं
    हमारी प्रेम भरी भावनाओं का
    कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा..,
    देश-दुनिया के
    वाद-विवाद,संवाद और
    राजनीतिक तापमान पर...।

    बहुत खूब श्वेता जी

    प्रेम एक ऐसा भाव है जो इंसान को इंसान बनाए रखता है .

    प्रेम के संबंध में मेने पहली रचना ब्लॉग पर शेयर की है कृपया मेरी पहली रचना  .. पधारें 🙏

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  8. ये प्रेम निरंतर बने रहना चाहिए ... देश समाज हर किसी से ...
    और हाँ परिवर्तन जरूर आता है ... कई बात सूक्ष्म होता है पर आता जरूर है ...

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  9. उचित कहा आपने आदरणीया दीदी जी
    बहुत खूब। सादर नमन

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  10. प्रायः हम अपनी कायरता को अपनी शराफ़त का और अपने अहिंसा-प्रेम का जामा पहना देते हैं और अन्याय का प्रतिकार करने के लिए अपनी कलम चलाकर थोड़ा कागज़ स्याह कर लेते हैं या फिर कोई ओजस्वी भाषण दे लेते हैं. हम यदि दिल से यह चाहते हैं कि दुनिया से अन्याय के आधिपत्य का काम तमाम हो तो हमको तलवार उठाने में भी संकोच नहीं करना चाहिए.

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  11. बेहतरीन रचना श्वेता जी

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  12. भावना कैसी भी हो इसका किसी पर कितना प्रभाव पड़ पाया है.??
    प्रभाव छोड़ता है कर्म, और कर्म भी वो जो प्रभावशाली हो.
    हम किसी की नाजायज मौत पर या बलात्कार जैसी घटना के विरुद्ध में केवल भाव प्रकट कर देते हैं या और अधिक फैशन दिखाना हो तो इक्कठे होकर मोमबती जला देते है...फिर थोड़ी देर बाद बढिया भात खा कर आराम से सोते हैं.
    हम ठोस कर्म जबतक नहीं करते तब तक कि ऐसी कोई घटना अपनी खुद की ना हो.
    बेहतरीन रचना है...

    मेरी नई पोस्ट पर स्वागत है आपका 👉🏼 ख़ुदा से आगे 

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  13. यह बात तो कुछ समय के उपरांत ही यथार्थ बन गईं। आज इस पर पुनः गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।

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  14. हाँ, पर प्रेम....।
    स्वयं से,अपनों से,समाज से
    देश से,प्रकृति से,जीवन से
    भरपूर करते हैं
    क्योंकि हम जानते हैं
    हमारी प्रेम भरी भावनाओं का
    कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा..,
    देश-दुनिया के
    वाद-विवाद,संवाद और
    राजनीतिक तापमान पर...।..आज के परिदृश्य को यथार्थ के तराजू में तौलती अनुपम अभिव्यक्ति,बहुत शुभकामनाएं प्रिय श्वेता जी ।

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  15. आदरणीया मैम,
    बहुत ही सटीक और सशक्त व्यंग्य जो हमें समाज और देश के आरती जागरूक होने जे लिए ललकारता भी है और हमारे "हम सुखी तो जग सुखी" वाली विचारधारा पर बहुत अच्छा कटाक्ष है। सच तो यह है कि देश और समाज के प्रति हमारा प्रेम निष्क्रिय प्रेम है (देशभक्ति और जागृति गीत गाने तक और किसी शहीद सैनिक को नमन करने तक सीमित), और ऐसी निष्क्रियता से कोई बदलाव नहीं आ सकता है। हार्दिक अबगार इस अत्यंत सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम।

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  16. बात हर व्यक्ति की प्राथमिकता पर आ जाती है . बड़ी बड़ी बातें करने वाले भी कहते कुछ हैं करते कुछ और हैं . हम आम लोगों के दायरे सीमित होते हैं , आज की परिस्थिति में ही देखा जाए तो जब अपने दायरे में आने वाले लोगों पर महामारी प्रभाव डाल रही तब ही मन ज्यादा व्यथित हो रहा . यथार्थ को कहती विचारणीय रचा .

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  17. प्रिय श्वेता, एक संवेदनशील रचना जो सोचने के लिए बाध्य करती है! अपनों का प्रेम ही हमारी पहली उम्मीद हैं और कह सकते हैं ये वही कवच है जो हमें समस्त प्रहारों से बचा सकता है! भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं ❤🌹

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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