तुम्हारी
प्राथमिकताओं की
सूची में
सर्वोच्च स्थान
पाने की कामना
सदा रही,
किंतु तुम्हारी
विकल्पों की सूची में भी
स्वयं को सबसे अंतिम पाया।
तुम्हारे लिये
विशेष मैं हो नहीं सकती
परंतु अपने अंश का
शेष भी सदैव
तुम्हारा मुँह जोहते
उपेक्षित पाया।
एकटुक,
अपलक निहारो कभी,
तुम्हारी आँखोंं में
स्वयं को पिघलाने का स्वप्न
मर्यादाओं की
लक्ष्मणरेखा का यथार्थ
लाँघकर भी
तुम्हारी दृष्टि में
व्यर्थ ही रहा।
बहुत चाहा
तुम्हारी तृप्ति का
एक बूँद हो सकूँ
किंतु तुम्हारे अहं की 'धा' में
भाप बनी
अपने लिए
तुम्हारे मनोभावों
की सत्यता
जानकर भी
तुम्हारे ही
आस-पास
भटकना
और मिट जाना
नियति है मेरी।
©श्वेता सिन्हा
सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteबहुत आभारी हूँ सर।
Deleteसादर।
बहुत सुंदर रचना... एक एक लाइन बहुत कुछ कहती हुई...
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 17 जून जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक चर्चा मंच पर चर्चा - 3736
ReplyDeleteमें दिया गया है। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
अच्छी गवेषणा।
ReplyDeleteहृदय तक पहुँचती पंक्तियाँ...
ReplyDeleteसच है की किसी के अहम् को पार करना आसान नहीं ... अहम् के आगे किसी को कुछ दिखाई कहाँ देता है ... मन के भाव ... दिल को छूते ...
ReplyDeleteविकल नारी मन के भावों का सुंदर शब्दांकन, प्रिय श्वेता | सम्पूर्ण समर्पित मन -तन को मनचाहा अवलंबन ना मिले तो ऐसे भाव उपजना स्वाभाविक है दूसरे शब्दों में इसे नियति मानकर संतोष करना पड़ता है|
ReplyDeleteबहुत चाहा
ReplyDeleteतुम्हारी तृप्ति का
एक बूँद हो सकूँ
किंतु तुम्हारे अहं की 'धा' में
भाप बनी.. वाह बेहद खूबसूरत रचना श्वेता जी।
सुंदर भावाभिव्यक्ति श्वेता👌
ReplyDeleteबहुत उम्दा
ReplyDelete"तुम्हारे लिये
ReplyDeleteविशेष मैं हो नहीं सकती
परंतु अपने अंश का
शेष भी सदैव
तुम्हारा मुँह जोहते
उपेक्षित पाया।"
बहुत बढ़िया। बेहतरीन...
विकल्पों की सूची में भी
ReplyDeleteस्वयं को सबसे अंतिम पाया।
वाह सुन्दर शब्द समायोजन
तुम्हारे मनोभावों
ReplyDeleteकी सत्यता
जानकर भी
तुम्हारे ही
आस-पास
भटकना
और मिट जाना
नियति है मेरी।
प्रेम दूसरा रास्ता ढ़ूंढने ही कहाँ देता है....फिर परवाने सा जल कर भष्म ही क्यों न हो जाय नियति मानकर तिल तिल जलता है इस विश्वास के साथ कि शायद कभी तो....
बहुत ही भावपूर्ण लाजवाब सृजन।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 17 जून 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteकाश मनचाहा हो पाता
ReplyDeleteहो भी जाता है कभी-कभी
हर मुराद पूरी हो दुआ है मेरी
अति सुंदर सृजन
ReplyDeleteअग्रिम क्षमाप्रार्थी ...
ReplyDelete"एकटुक,
अपलक निहारो कभी," .. में एकटुक = एकटक .. Typoerror हो गया है .. शायद ...
(या शायद इस शब्द का अर्थ नहीं आता हो मुझ अल्पज्ञानी को)
बहुत अच्छी रचना है...।
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