हर अभिव्यक्ति के बाद
बची हुई अभिव्यक्ति में
भावों की गहराई में छुपी
अव्यक्तता की अनुभूति
सदैव जताती है
अभिव्यक्ति के
अधूरेपन के समुच्चय को
अपूर्ण शब्दों के समास को
जिन्हें पूर्ण करने की चेष्टा में
अक्सर ख़ाली पन्ने पर
फडफड़़ाती हैं बेचैनियाँ...।
बेचैनियों को
छुपाने के लिए
कविताओं का आसामान चुना
सोचती रही
शब्दों से नज़दीकियाँ बढ़ाकर
फैलाकर अपने भावों के पंख
सुकून पा रही हूँ...
पर जाने क्यों
उम्र के साथ
बढ़ती ही जा रही हैं
बेचैनियाँ।
पसीजे मन की धुन पर
चटखती उंगलियाँ,
कल्पनाओं के
स्क्रीन ऑन-ऑफ
स्क्रॉल करती...,
एक मनचाहा
संदेश देखने के लिए
विकल आँखें,
नींद का स्वांग भरती
करवटें,
कोलाहलों से तटस्थ
बस एक परिचित आहट
टोहते कान,
सचमुच...
भीतर ही भीतर
भावनाओं के
अनगिनत बूँदों को
कितने धैर्य से समेटी
हुई होती है न
ये बेचैनियाँ ।
#श्वेता सिन्हा
१९ जनवरी २०२२
सही कहा आपने,बेचैनीयों से पार पाना आसान नहीं।
ReplyDeleteबहुत आभारी हूँ।
Deleteसादर।
प्रिय श्वेता, मन में बेचैनियों का डेरा स्थायी है | गाहे-बगाहे ये पूरे अस्तित्व को विचलित कर तहस- नहस कर देती हैं |और सच में शब्दों से नजदीकियाँ ही नव सृजन का प्रश्रय बनती हैं |विचलित आत्मा ही सृष्टि का नवीनतम और मधुरतम गान रचती हैं |सस्नेह
ReplyDeleteआपका स्नेह अमूल्य है दी।
Deleteप्रणाम
सादर।
कुह्ह मिलते जुलते भाव
ReplyDeleteवेदना पथ के पथिक का
सफर का कब आसान रहा
विरह का आनन्द ही
जीने का सामान रहा
आँसुओं से याराना
आहों से अनुबंध हुए
हँसी पे लग गये पहरे
मुस्कानों पर प्रतिबन्ध हुए
फिर भी इसके उर से जन्मा
सृष्टि का मधुरतम गान रहा
सस्नेह --
व्यथित उर किन्तु मधुरतम गान !
Deleteप्रिय दी,
Deleteरचना से ज्यादा सुंदर और हृदयस्पर्शी आपकी काव्यात्मक प्रतिक्रिया ने मन छू लिया।
सस्नेह।
भावों और बैचेनियों को सही से व्यक्त कर दे ऐसे शब्द हैं ही नहीं.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
आभारी हूँ भाई, बहुत दिन बाद रचना पर आपकी प्रतिक्रिया पाकर अच्छा लग रहा।
Deleteस्नेह बना रहे।
सादर।
श्वेता दी,मन की बेचैनियों से पार पाना ही तो सबसे कठीन कार्य है। बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteबहुत अभारी हूँ ज्योति दी।
Deleteसादर।
वाह! बहुत खूब।
ReplyDeleteबहुत आभारी हूँ।
Deleteसादर।
पर जाने क्यों
ReplyDeleteउम्र के साथ
बढ़ती ही जा रही हैं
बेचैनियाँ।
बहुत आभारी हूँ सर।
Deleteसादर।
बहुत बहुत सुन्दर सरस रचना । शुभ कामनाएं
ReplyDeleteबहुत आभारी हूँ सर
Deleteसादर।
वाह श्वेता !
ReplyDeleteतुम्हारी तुम जानों, !
हमारे बेचैन मन को तो सुकून दिलाने के लिए तो तुम्हारी कवितायेँ ही काफी हैं.
बहुत आभारी हूँ सर।
Deleteप्रणाम
सादर।
कोई तो बताए कि किस विधि इन बेचैनियों को ही समझाया जाए ताकि वे हद में रहे । वैसे ये न हो तो इतनी सुन्दर कविता भी कैसे लिखी जाए ? छटपटाहट को बढ़ाती हुई....
ReplyDeleteबहुत आभारी हूँ अमृता जी उत्साह बढ़ाने के लिए।
Deleteसस्नेह।
बैचेनियाँ होती ही कुछ ऐसी कि जितना कम करना चाहो बढ़ती ही जाती है!
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन!
बहुत आभारी हूँ मनीषा।
Deleteसस्नेह।
सचमुच...
ReplyDeleteभीतर ही भीतर
भावनाओं के
अनगिनत बूँदों को
कितने धैर्य से समेटी
हुई होती है न
ये बेचैनियाँ ।
बहुत सुंदर सचमुच लाजबाव
आभारी हूँ भारती जी।
Deleteसादर।
बहुत सुंदर! भावों को गूंथना कोई आपकी कविताओं से सीखें श्वेता!जिनका किनारा मिलना आसान नहीं, जो पाठक को कुछ नया लिखने को बैचेन कर दें ।
ReplyDeleteअप्रतिम।
वैसे मानव संसार का सबसे उन्नत घटक है,पर अपने हर कलाप में स्वयं कुछ अधूरा ढूंढ़ कर स्वयं को ही बैचेन करता है। ,किये रहता है आगे कुछ सम्पूर्ण करने की बैचेनियाँ कब किसका पीछा छोड़ती है ,कवि भी रचेता है और उसकी रचना ही उसकी बैचेनियों का सबब है।
सस्नेह।
बहुत आभारी हूँ दी।
Deleteरचना का विश्लेषात्मक विवेचना मन को सुकून दे रहा,आपकी सराहना पाकर उत्साह से भर जाती है क़लम।
स्नेह बना रहे दी।
प्रणाम
सादर।
मन के गहन भावों को अभिव्यक्त कर ,फिर भी बहुत कुछ रह जाता है बचा हुआ ,बेचैनियाँ क्षणिक तो शांत होती प्रतीत होती हैं लेकिन जो बचा हुआ होता है वो फिर धीरे धीरे विशाल हो जाता है । कविताओं के माध्यम से थोड़ा सुकूँ मिलता है । यदि पूरा सुकून मिल जाये तो रचना संसार कैसे आगे बढ़ेगा । वैसे बेचैनियाँ हमारी स्वयं की सोच से उतपन्न होती हैं ।और किसी की आहट सुनने के लिए कान जो बेचैन होते हैं उससे जो बेचैन हृदय होता उसको तो बयान करना ही मुश्किल ।।
ReplyDeleteतुमने इन सब बातों को बखूबी शब्दों में बाँध लिया है । गहन अभिव्यक्ति ..... अब फिर कब छलक रही बेचैनियाँ ।
प्रिय दी,
Deleteआपकी प्रतिक्रिया की सदैव प्रतीक्षा रहती है।
सही कहा दी पूरा.सुकून मिल जाये तो रचना संसार कैसे आगे बढ़ेगा।
आपके द्वारा निष्पक्ष विश्लेषण और
रचना पर आपकी सराहना पाना मन मुदित करता है।
स्नेह बना रहे।
प्रणाम दी
सादर।
बेचैनी पर मीठा मलहम।
Deleteबहुत आभारी हूँ।
ReplyDeleteसस्नेह।।
अतिउत्तम मार्गदर्शन मैम
ReplyDeleteबेहतरीन रचना श्वेता जी।
ReplyDeleteहर अभिव्यक्ति के बाद
ReplyDeleteबची हुई अभिव्यक्ति में
भावों की गहराई में छुपी
अव्यक्तता की अनुभूति
सदैव जताती है
अभिव्यक्ति के
अधूरेपन के समुच्चय को
अपूर्ण शब्दों के समास को
जिन्हें पूर्ण करने की चेष्टा में
अक्सर ख़ाली पन्ने पर
फडफड़़ाती हैं बेचैनियाँ...।
हर अभिव्यक्ति जो सम्पूर्णता के लिए सम्पन्नता के लिए होती है वो पहले से भी ज्यादा अपूर्ण और बेचैन कर जाती है कर्ता को...और कर्ता बिना विश्राम किये नवसृजन में लग जाता है जितने सृजन उतनी अपूर्णता और बेचैनियां... यही तो देखते हैं अपने आसपास और सोचते हैं और कितना चाहिए संतुष्टि नहीं है क्या... मन की बेचैनियों को समझ नहीं पाते... ये असंतुष्टि ही आविष्कार की जन्मदाता हुई। मन मे छिपे अनकहे से भावों को कितनी सहजता से काव्य में पिरो दिया आपने...
साधुवाद आपको एवं आपकी लेखनी को।🙏🙏🙏🙏