Saturday, 9 April 2022

गीत अधूरा प्रेम का


गीत अधूरा प्रेम का,
रह-रहकर मैं  जाप रही हूँ।
व्याकुल नन्ही चिड़िया-सी
एक ही राग आलाप रही हूँ।

मौसम बासंती स्वप्नों का क्षणभर ठहरा,
पाँखें मन की शिथिल हुई सूना सहरा।
आँखों की हँसती आशाएँ बेबस हो मरीं,
भावों के मध्य एकाकीपन की धूल भरी।

विरहा की इस ज्वाला को,
स्मृतियों की आहुति दे ताप रही हूँ।
व्याकुल नन्ही चिड़िया-सी,
एक ही राग आलाप रही हूँ।

व्यग्र भावों के भोथरेपन का कोलाहल,
मधु पात्र में भरा आहों का हालाहल।
अधूरी कहानियाँ,अधलिखी कविताओं-सी
अधूरे चित्रों की रहस्यमयी नायिकाओं-सी।

तत्व-ज्ञान से परिपूर्ण इक जोगी की, 
उपेक्षा हृदय में छाप रही हूँ।
व्याकुल नन्ही चिड़िया-सी,
एक ही राग आलाप रही हूँ।

समय की दरारों में पड़ा निश्चेष्ट मौन,
चेष्टाओं में प्रीत की भंगिमाएँ अब गौण।
तन के घर में मन मेरा परदेश रहा, 
जीवन का अभिनय कितना शेष रहा?

प्रश्न ताल में डूबती-उतरती,
पुरइन पर बूँदों जैसी काँप रही हूँ.
व्याकुल नन्ही चिड़िया-सी,
एक ही राग आलाप रही हूँ।
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-श्वेता सिन्हा
९अप्रैल २०२२
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17 comments:

  1. शुभ संध्या..
    सुंदर पंक्ति
    व्याकुल नन्ही चिड़िया-सी,
    एक ही राग आलाप रही हूँ।
    सादर..

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  2. बहुत ही उम्दा 👌👌👌

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  3. एक नन्हीं चिड़िया के माध्यम से व्याकुल मन का खाका खींच दिया है ।
    उपेक्षाओं को सहते हुए न जाने कितना वैराग्य सा छा जाता होगा , भला इसकी थाह कौन पा सकता है ? जीने की इच्छा ही जैसे खत्म हो जाती होगी ।
    ऐसे में के भावों को बखूबी उकेर दिया है
    ।अद्भुत लेखन ।

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  4. ऐसे मन के भावों ..... पढा जाए ।

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  5. प्रिय श्वेता,जीवन में सब कुछ होते हुए भी अनगिन अधूरी कामनाएं इन्सान के भीतर जल में कंकर-सी पड़ी रहती हैं।कितने अनसुने गीत भीतर ही दम तोड़ देते हैं।
    इस अपूर्णता से वैराग्य उपजता है और उम्दा सृजन भी !!! हृदय की इस टीस को शब्दों में सजा भावपूर्ण अभिव्यक्ति दी है तुमने, क्योंकि एक कवि मन ही इस अधूरेपन को शब्दांकित करने में सक्षम है। इस मर्मस्पर्शी रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं।

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  6. अनमोल पँक्तियाँ-------
    समय की दरारों में पड़ा निश्चेष्ट मौन,
    चेष्टाओं में प्रीत की भंगिमाएँ अब गौण।
    तन के घर में मन मेरा परदेश रहा,
    जीवन का अभिनय कितना शेष रहा?
    👌👌🌺🌺🌷🌷♥️♥️

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  7. बहुत प्यारी कविता🌷🌷

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  8. जीवन के कष्ट और तकलीफ़ों में भी जो मुस्कुराकर कविता कह दे, वही कवि है। आपको साधुवाद🌷

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  9. चुगती दाने आकुलता के,
    विरह व्याकुल घूम रही हूं।
    मन गहवर मदमस्त मीत को
    चंचल चोंचों से चूम रही हूं।
    अंतस पैठे साजन छवि को,
    बहिरव्योम में व्याप रही हूं।
    नहीं कदाचित व्याकुल अब मैं,
    साजन - साजन जाप रही हूं।

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  10. विरह और प्रेम की भावनाओं को सँजोये सुंदर कविता

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  11. सचमुच प्रेम का हर गीत अनूठा होता है।

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  12. विरह वेदना का भावुक कर देने वाला गीत

    इस गीत को पढ़कर,मनन कर लगा कि जैसे छायावादी युग लौट आया हो,उस युग कविता जीवित थी प्रेम,विरह ओर श्रृंगार के अद्भुत गीत रचे गए.

    वर्तमान में कविता के नाम पर कुछ भी लिखा जा रहा है यह सुधि पाठक सब जानते हैं.

    ऐसे समय में सुंदर बिंम्ब,सौंधे प्रतीक और गीत की किलकारी मन मोह लेती है.

    श्वेता अपने तरह के लेखन में विश्वास रखती हैं और नए प्रतिमान गढ़ती है,यह महत्वपूर्ण गीत इसका प्रमाण है.

    बहुत बहुत बधाई इस सुंदर गीत के लिए

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  13. समय की दरारों में पड़ा निश्चेष्ट मौन,
    चेष्टाओं में प्रीत की भंगिमाएँ अब गौण।
    तन के घर में मन मेरा परदेश रहा,
    जीवन का अभिनय कितना शेष रहा?
    तन के घर मन परदेशी!!!
    वाह!! अद्भुत बिम्ब
    चाही अनचाही परिस्थितियों में तन ही कैद रहता है मन पर किसका वश चलता है...हाँ मन के बिना तन भी तन कहाँ?
    लाजवाब सृजन ।

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  14. प्रश्न ताल में डूबती-उतरती,
    पुरइन पर बूँदों जैसी काँप रही हूँ.
    व्याकुल नन्ही चिड़िया-सी,
    एक ही राग आलाप रही हूँ।
    नन्ही चिड़िया के माध्यम से प्रेम और विरह की भावना को बहुत ही खुबसूरती से व्यक्त किया है आपने, स्वेता दी।

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  15. वाह वाह व्याकुल चिड़िया की उपमा ने सब कुछ कह डाला. बहुत ही सुन्दर गीत है.

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  16. समय की दरारों में पड़ा निश्चेष्ट मौन,
    चेष्टाओं में प्रीत की भंगिमाएँ अब गौण।
    तन के घर में मन मेरा परदेश रहा,
    जीवन का अभिनय कितना शेष रहा?
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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  17. सच में इसमें एक-एक शब्द की भागीदारी इस गीत को बहुत सुन्दर बना रहे हैं। बहुत सुंदर।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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