अच्छा हुआ कि लोग गिरह खोलने लगे।
दिल के ज़हर शिगाफ़े-लब से घोलने लगे।।
पलकों से बूंद-बूंद गिरी ख़्वाहिशें तमाम।
उम्रे-रवाँ के ख़्वाब सारे डोलने लगे।।
ख़ुश देखकर मुझे वो परेश़ान हो गये।
फिर यूँ हुआ हर लफ़्ज़ मेरे तौलने लगे।।
मैंने ज़रा-सी खोल दी मुट्ठी भरी हुई।
तश्ते-फ़लक पर तारे रंग घोलने लगे।।
सिसकियाँ सुनता नहीं सूना हुआ शहर।
हँस के जो बात की तो लोग बोलने लगे।।
#श्वेता🍁
शिग़ाफ़े-लब=होंठ की दरार
उम्रे-रवाँ=बहती उम्र
तश्ते-फ़लक=आसमां की तश्तरी