विदा लेती
भादो की
बेहद उदास शाम
अनायास नभ के
एक छोर पर उभरी
अपनी कल्पना में गढ़ी
बरसों उकेरी गयी
प्रेम की धुंधली तस्वीर में
तुम्हारे अक्स की झलक पाकर
सूखकर पपड़ीदार हुये
कैनवास पर एहसास के रंगों का
गीलापन महसूस कर
अवश मन
तैरने लगा हवाओं में.....
मन अभिमंत्रित
बँधता रहा तुम्हारे
चारों ओर
मैं घुलती रही बूँद-बूँद
तुम्हारी भावों को
आत्मसात करती रही
तुम्हारे चटख रंगों ने
फीका कर दिया
जीवन के अन्य रंगों को,
अपनी साँसों में महसूस करती
मैं अपनी प्रेम की कल्पनाओं को
यथार्थ में जीना चाहती हूँ
छूकर तुम्हारी पेशानी
सारी सिलवटें
मिटाना चाहती हूँ,
तुम्हारी आँखों में जमे
अनगिनत प्रश्नों को
अपने अधरों के ताप से
पिघलाकर स्नेह के बादल
बना देना चाहती हूँ
तुम्हारे मन के तलछट की
सारी काई काछकर
नरम दूब उगाना चाहती हूँ
पर डरती हूँ
कहीं मेरे स्पर्श करने से प्रेम,
खूबसूरत कल्पनाओं
की रंगीन शीशियाँ,
कठोर सत्य की सतह पर
लुढ़ककर बिखर न जाये
रिसती,निर्बाध बहती
पवित्र भावनाओं
को मेरे छुअन का संक्रमण
अभिशप्त न कर दे।
सोचती हू्ँ...
अच्छा हो कि
मैं अपनी स्नेहसिक्त
अनछुई कल्पनाओं को
जीती रहूँ
अपनी पलकों के भीतर
ध्यानस्थ,चढ़ाती रहूँ अर्ध्य
मौन समाधिस्थ
आजीवन।
#श्वेता सिन्हा