Tuesday, 14 November 2017

चकोर


सम्मोहित मन
निमग्न ताकता है,
एकटुक झरोखे से
मुंडेर की अलगनी पर 
बेफिक्र लटके
अभ्रख के टुकड़े से
चमकीले चाँद को,
पिघलती चाँदनी 
की बूँदों को पीने को
व्याकुल
हृदय चकोर।
जानता है 
मुमकिन नहीं छू पाना
एक कतरा भी
उंगली के पोर से भी
फिर भी अवश हो
बौराया चकोर
चाँद की बेपरवाही
भूलकर
बूँदभर चाँदनी के लिए
सिसकता है,
बंधा अपनी सीमाओं से
सुरमई रात के
ख्वाब का भरम टूटने तक।

      #श्वेता🍁

Monday, 13 November 2017

किन धागों से सी लूँ बोलो

मैं कौन ख़ुशी जी लूँ बोलो।
किन अश्क़ो को पी लूँ बोलो।
बिखरी लम्हों की तुरपन को
किन धागों से सी लूँ बोलो।

पलपल हरपल इन श्वासों से
आहों का रिसता स्पंदन है,
भावों के उधड़े सीवन को,
किन धागों से सी लूँ बोलो।

हिय मुसकाना चाहे ही ना
झरे अधरों से कैसे ख़ुशी,
पपड़ी दुखती है ज़ख़्मों की,
किन धागों से सी लूँ बोलो।

मैं मना-मनाकर हार गयी
तुम निर्मोही पाषाण हुये,
हिय वसन हुए है तार-तार,
किन धागों से सी लूँ बोलो

भर आये कंठ न गीत बने
जीवन फिर कैसे मीत बने,
टूटे सरगम की रागिनी को,
किन धागों से सी लूँ बोलो।

    श्वेता🍁

Sunday, 12 November 2017

कविताएँ रची जाती.....

मन के विस्तृत
आसमान पर
भावों के पंछी
शोर मचाते है,
उड़-उड़ कर
जब मन के सारे
मनकों को फैलाते हैं,
शब्दों के बिखरे
मोती चुन-चुनकर
कोरे-सादे पन्नों पर,
तब भाव उकेरे जाते हैं।
रोते-हँसते,गाते-मोहते,
मन जिन गलियों से 
गलियों से गुजरता है
उन गली के खुले मुंडेरों पर
सूरज-चंदा को टाँक-टाँक
नग जड़ित तारों की
झिलमिल चुनरी में
जुगनू के नाज़ुक पंखों पर 
जलते बुझते तब,
दिवा-रात के स्वप्नों को
कविताओं के शब्द बनाते हैं,
बचपन,यौवन की धूप-छाँव
प्रौढ़,बुढ़ापे से भरा गाँव,
बहते जीवन लहरों की नाव
देख के तन के चीथड़ों को,
जब पलकें पनियाती है
चलते ढलते लम्हों को,
शब्दों की स्याही में डुबाकर,
तब कविताएँ रची जाती है।

     #श्वेता🍁

Monday, 6 November 2017

तारे जग के


तारे जग के नन्हे-नन्हें
झिलमिल स्वप्न हमारे

चाहते है हम छूना नभ को
सतरंग में रंगना बादल को
सूरज को भरकर आँखों में
हम हरना चाहते है तम को

भट्टी के तापों से झुलसे
कालिख लिपटे हाथों में
शीतलता भर चाँदनी की
हम सोना चाहते फूलों पर

कोमल मन के अंकुर हम
जरा प्रेम की बारिश कर दो
जलते जीवन की मरुभूमि में
अपनेपन की छाया भर दो

कंटक राह के कम नहीं होगे
जीवनपथ पर जीवन पर्यंत
मिल जाये गर साथ नेह के
खिलखिलायेे हम दिग्दिगंत

Saturday, 4 November 2017

सुरमई अंजन लगा

सुरमई अंजन लगा निकली निशा।
चाँदी की पाजेब से छनकी दिशा।।

सेज तारों की सजाकर 
चाँद बैठा पाश में,
सोमघट ताके नयन भी
निसृत सुधा की आस में,
अधरपट कलियों ने खोले,
मौन किरणें चू गयी मिट गयी तृषा।

छूके टोहती चाँदनी तन 
निष्प्राण से निःश्वास है,
सुधियों के अवगुंठन में 
बस मौन का अधिवास है,
प्रीत की बंसी को तरसे, 
अनुगूंजित हिय की घाटी खोयी दिशा।

रहा भींगता अंतर्मन
चाँदनी गीली लगी,
टिमटिमाती दीप की लौ
रोई सी पीली लगी,
रात चुप, चुप है हवा
स्वप्न ने ओढ़ी चुनर जग गयी निशा।

     #श्वेता🍁

Friday, 3 November 2017

मन की नमी

दूब के कोरों पर,
जमी बूँदें शबनमी।
सुनहरी धूप ने,
चख ली सारी नमी।
कतरा-कतरा
पीकर मद भरी बूँदें,
संग किरणों के, 
मचाये पुरवा सनसनी।
सर्द हवाओं की
छुअन से पत्ते मुस्काये,
चिड़ियों की हँसी से,
कलियाँ हैं खिलीं,
गुलों के रुख़सारों पर 
इंद्रधनुष उतरा,
महक से बौरायी, 
हुईं तितलियाँ मनचली।
अंजुरीभर धूप तोड़कर 
बोतलों में बंद कर लूँ,
सुखानी है सीले-सीले,
मन की सारी नमी।



       #श्वेता🍁

Wednesday, 1 November 2017

मुस्कान की कनी

लबों पे अटकी
मुस्कान की कनी
दिल में गड़ गयी
लफ्ज़ों की अनी

बातों की उंगलियों से
जा लिपटा मन
उलझकर रह गयी
छुअन में वहीं

अनगिनत किस्से है
कहने और सुनने को
लाज के मौन में सिमटी
कई बातें अनगिनी

सुनो,
रोज आया करो न
आँगन में मेरे 
जाया करो बरसाकर
बातों की चाँदनी

क्या फर्क है कि
तुम दूर हो या पास
एहसास तुम्हारा
भर देता है रोशनी

     #श्वेता🍁

Monday, 30 October 2017

शरद का स्वागत


पहाड़ों
का मौसम
फ़िज़ांओं में 
उतर आया है।
चाँदनी ने 
सारी रात 
खूब नेह 
बरसाया है।

ओस में भीगी 
फूल और पत्ते 
ताजगी 
जगाने लगी,
करवट 
ले रहा
मौसम
हवाओं ने 
एहसास 
कराया है।

नीले नीले 
आसमां में
रूई से 
बादल 
उड़ने लगे,
गुनगुनी 
धूप की 
बारिश ने, 
रुत को 
रंगीन 
बनाया है।

भँवर 
और तितली
फूलों से
बतियाने लगे,
गुलाब की 
खुशबू ने 
बाग का 
हर कोना 
महकाया है।

शरद के 
स्वागत में 
वादियों के 
दामन 
सजने लगे,
बहकी
हवाओं ने 
हर शय में
नया राग 
जगाया है।

       #श्वेता🍁

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...