Thursday 6 July 2017

वहम

आँखों के दरीचे में तेरे ख्यालों की झलक
और दिल के पनाहों में किसी दर्द का डेरा
शाखों पे यादों के सघन वन में ढ़ूँढ़ता तुम्हें
रात रात भर करता है कोई ख्वाब बसेरा
टूटकर कर जो गिर रहे ख्वाहिशों के पत्ते
अधूरे ख्वाब है जो न हुआ तेरा न ही मेरा
मुमकिन हो कि वहम निकले मेरे ये मन का
हमी से रात, हमसे ही होता है उसका सवेरा

3 comments:

  1. बहुत ख़ूब ! श्वेता जी सुन्दर रचना बधाई आपको लिखते रहिए। आभार "एकलव्य"

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    1. जी, बहुत बहुत आभार हृदय से शुक्रिया आपका , ध्रुव जी आपकी शुभकामनाओं के लिए बहुत धन्यवाद।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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