बड़ी हसरत से देखता हूँ
वो नीला आसमान
जो कभी मेरी मुट्ठी में था,
उस आसमान पर उगे
नन्हें सितारों की छुअन से
किलकता था मन
कोमल बादलों में उड़कर
चाँद के समीप
रह पाने का स्वप्न देखता रहा
वक़्त ने साज़िश की
या तक़दीर ने फ़ैसला लिया
जलती हवाओं ने
झुलसाये पंख सारे
फेंक दिया तपती मरूभूमि में
कहकर,भूल जा
नीले आसमान के ख़्वाबगाह में
नहीं उगते खनकदार पत्ते
टिमटिमाते सितारों से
नहीं मिटायी जा सकती है भूख,
और मैं
अपने दायरे के पिंजरें
क़ैद कर दिया गया
बांधे गये पंखों को फड़फड़ाकर
मैं बे-बस देख रहा हूँ
ज़माने के पाँव तले कुचलते
मेरे नीले आसमान का कोना
जो अब भी मुझे पुकारता है
मुस्कुराकर अपनी बाहें पसारे हुये
और मैं सोचता हूँ अक्सर
एक दिन
मैं छूटकर बंधनों से
भरूँगा अपनी उड़ान
अपने नीले आसमान में
और पा लूँगा
अपने अस्तित्व के मायने
#श्वेता सिन्हा
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसुंदर रचना
सुंदर
ReplyDeleteवाह!!श्वेता ,बहुत सुंदर ...।
ReplyDeleteसुन्दर रचना.
ReplyDeleteबड़ी हसरत से देखता हूँ......अस्तित्व के मायने...फड़फड़ाते पंखों में ' मन के पाखी ' के!!!
ReplyDeleteरचना के तौर पर बहुत ही अच्छा है
ReplyDeleteपर आप की हथेली में उगता सूरज ही अच्छा लगता है
निराशा कभी श्वेत नही होती श्वेत रंग तो प्रकाश फैलाता है
हौसला बढाता है और रंगहीन जीवन में सपने सजाता है
वाह श्वेता लाजवाब!! आशा निराशा के मिलेजुले भाव, शानदार अभिव्यक्ति पर इतना कहूंगी
ReplyDeleteरात का तम जितना गहरा
होगा
सूरज उतना चमकीला होगा,
ढ़लता सूरज मजबूर सही
उगता सूरज मजबूर नही
जितना गहरी तम की रैन
उतनी सुंदर होगा दिन।
बहुत खूबसूरत रचना..श्वेता जी हर भाव को बांध लेती है।
ReplyDeleteप्रिय श्वेता -- एक पाखी मन का हो या नभ का जब उसकी आजादी छिन जाती है तो वह सचमुच अस्तित्वहीन हो जाते है | आखिर अस्तित्व ही जीबन का आधार है | बहुत ही सधे शब्दों में आपने उस स्थिति को उकेरा है | सुंदर रचना -----------
ReplyDeleteनिमंत्रण
ReplyDeleteविशेष : 'सोमवार' २३ अप्रैल २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक में दो अतिथि रचनाकारों आदरणीय सुशील कुमार शर्मा एवं आदरणीया अनीता लागुरी 'अनु' का हार्दिक स्वागत करता है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
वाह प्रिय श्वेता जी आशा निराशा के मध्य झूलते भाव ........शब्दों की कारीगरी अति सुन्दर बहाव
ReplyDelete👌👌👌👌
जीवन का कटु सत्य उजागर करता है हर अल्फाज दुख सुख हर्ष विषाद सब जीवन के ही भाग ! हाँ कोशिश तो करनी होगी निकलो पंख पसार तोड़ के पिंजरा उड़ जाये पंछी तो हाथों मैं आकाश
आशावाद की ओर
ReplyDeleteबेहद सुन्दर
सादर
आपकी लिखी रचना आज के "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 24 एप्रिल 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाव्व स्वेता,बहुत ही सुंदर शब्दो में जीवन के कटु सत्य को उजागर किया हैं आपने।
ReplyDeleteभावों का सजीव चित्रण.
ReplyDeleteबहुत ही हृदयस्पर्शी रचना...
ReplyDeleteऊँची उड़ान भरने की आकांक्षा रखने वाला मन जब हकीकत के धरातल पर रेंगता रह जाता है तब सम्भवतः इन्हीं भावों से होकर गुजरता है...आसान नहीं इन भावों को शब्दों में पिरोना.....
अद्भुत बेहतरीन एवं लाजवाब रचना श्वेता जी!
वाह!!!!
सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteहिन्दीकुंज,हिंदी वेबसाइट/लिटरेरी वेब पत्रिका
वाआआह अनुपम सृजम
ReplyDeleteअद्भुत शब्द संयोजन बखूबी शब्दों को पिरोया है सुन्दर रचना है बधाई श्वेता जी :)
ReplyDeleteबहुत कुछ होता है जीवन में संसार में रो अपने अस्तित्व को लगातार चोट देता है उसके मायने ख़त्म होने लगते हैं पर फिर अपनी उड़ान को बल देना होता है ... स्वतः हिम्मत से उठना होता है और पाना होता है अपना आसमान ...
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण रचना है ...