चित्र-मनस्वी प्रांजल
लीपे चेहरों की भीड़ में
सच-झूठ पहचाने कैसे?
अनुबंध टूटते विश्वास की
मौन आहट जाने कैसे?
नब्ज संवेदना की टटोले
मोहरे बना कर मासूमियत को,
शह मात की बिसात में खेले
शकुनियों के रुप पहचाने कैसे?
खींचते है प्राण,अजगर बन
निष्प्राण अवचेतन करके
निगलते सशरीर धीरे-धीरे
फनहीन सर्पों को पहचाने कैसे?
सोच नहीं बदलता ज़माना
कभी नारी के परिप्रेक्ष्य में
बदलते युग के गान में दबी
सिसकियों को पहचाने कैसे?
बैठे हो कान में उंगलियाँ डाले
नहीं सुनते हो चीखों को?
नहीं झकझोरती है संवेदनाएँ?
मृत नहीं तुम जीवित हो माने कैसे?
--श्वेता सिन्हा
अद्भुत अभिव्यक्ति श्वेता जी,खासकर
ReplyDeleteनिगलते सशरीर धीरे धीरे
फनहीन सर्पों को पहचाने कैसे
और सबसे बड़ा सत्य समकालिक का,
बदलते युग के गान में दबी सिसकियों को पहचाने कैसे..
बहेद खूबसूरती से अभिव्यक्त किया है आपने ढेरों शुभकामनाएं
बेहद आभार आपका सुप्रिया जी।
Deleteआपकी प्रतिक्रिया रचना का मान बढ़ा गयी।
तहेदिल से शुक्रिया आपका।
सादर
वाह
ReplyDeleteबेहतरीन
सादर
आभार दी:)
Deleteहृदयतल से अति आभार।
सादर।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 20 मई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका आदरणीय सर।
Deleteबहुत शुक्रिया आपका।
लीपे चेहरों की भीड़ में
ReplyDeleteसच-झूठ पहचाने कैसे?
अनुबंध टूटते विश्वास की
मौन आहट जाने कैसे?
नब्ज संवेदना की टटोले
मोहरे बना कर मासूमियत को,
शह मात की बिसात में खेले
शकुनियों के रुप पहचाने कैसे?
मन की वेदना, व्यथा, कटुता को व्यक्त करती तीखी पंक्तियाँ ! इस रचना की हर पंक्ति के लिए साधुवाद प्रिय श्वेता। आपकी ये बेमिसाल रचना सुप्त मनों को झंझोड़कर जगा पाए, यही शुभेच्छा !
प्रिय मीना जी,
Deleteआपकी इतनी उत्साहभरी सराहना ने मन में एक उम्मीद जगायी है शायद किसी एक पाठक के मन की संवेदनाओं को झकझोर सके तो लिखना सार्थक हो जायेगा।
हृदय तल से अति आभार बहुत सारा।
आपका स्नेह सदैव एक उमंग जाता है। स्नेह बना रहे:)
सादर।
वाह!!श्वेता ..कितना सुंदर लिखती हैं आप ..
ReplyDeleteलिपे चेहरों की भीड़ में ,सच झूठ पहचाने कैसे ..। वाह, वाह!!
खींचते है प्राण,अजगर बन
ReplyDeleteनिष्प्राण अवचेतन करके
निगलते सशरीर धीरे-धीरे
फनहीन सर्पों को पहचाने कैसे?
यही तो विडम्बना है ऐसे लोगों को पहचाने कैसे
बहुत ही सुन्दर ,सार्थक रचना
वाह!!!
खींचते है प्राण,अजगर बन
ReplyDeleteनिष्प्राण अवचेतन करके
निगलते सशरीर धीरे-धीरे
फनहीन सर्पों को पहचाने कैसे?
बेहतरीन, खूबसूरत अभिव्यक्ति श्वेता. बधाई
एक नारी की व्यथा नारी से ज्यादा कोई नही समझ सकता।प्रेम और सम्मान की भूखी नारी की व्यथा को बडे ही मार्मिक ढंग से आपने प्रस्तुत किया है। बधाई।
ReplyDeleteरो देता हूँ अक्सर
ReplyDeleteउसकी याद में
उसकी मासूमियत
उसकी नादानियाँ उसके स्वभाव में थी
बच्ची थी,बहुत छोटी थी
बुरा न सोच सकी बुरों के बारे में
मर रही थी उस हवसी के सामने तो
उसकी सोच ये रही होगी
कोई गलती हो गयी होगी
जिसकी सजा दे रहे ये अंकल.
उँगलियाँ डाल के कान में
अब बैठा हूँ अवाक
असली चीख न सुनी
मगर सुन लूँ मन की चीख अब....
बस उस बच्ची की याद फिर से दिला दी आपकी इस रचना ने.
लाजवाब श्वेता!!
ReplyDeleteप्रतिकों के माध्यम से अंतर दहन को उजागर करना कोई आपसे सीखे अतुल्य।
लीपे चेहरों की भीड़ में
ReplyDeleteसच-झूठ पहचाने कैसे?
अनुबंध टूटते विश्वास की
मौन आहट जाने कैसे?
वास्तविकता के ठोस धरातल पे प्रहार करती उम्दा कविता
आजकल के सामाजिक परिवेश से पीड़ित मन की आवाज़. सुंदर प्रस्तुति .
ReplyDeleteस्वेता,सचमुच आज का परिदृश्य देख कर कई बार मन में यह सवाल पैदा होता हैं कि आज जमाना इतना संवेदनाहीन कैसे हो गया हैं? क्यों नारी की चीखें उसे सुनाई नहीं देती? इस बात को बहुत ही खूबसूरती से शब्दों में पिरोया हैं तुमने। बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteबेमिसाल रचना..
ReplyDeleteआदरणीया श्वेता दीदी बेहद लाजवाब रचना
ReplyDeleteअतुलनीय सुंदर अभिव्यक्ति
गहरे प्रश्न जो मन को झकझोर गये
सादर नमन
शुभ संध्या 🙇
Nice Lines,Convert your lines in book form with
ReplyDeleteonline Book Publisher India
जिस दिल में समवेदनाएँ नहीं वो धड़कता कहाँ है ... मृत है वो तो जो मासूम सिसकियाँ ना पहचाने ... गहरी भावपूर्ण रचना ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteगहरी भावपूर्ण रचना ।
ReplyDeleteप्रिय श्वेता ---मौन रहकर किसी अन्याय को देखकर अनदेखा करना --दैहिक ना सही वैचारिक रूप से मृतप्राय होने का लक्षण है यानी मौन को अप्रत्यक्ष सहमती माने तो अतिश्योक्ति ना होगी | सच लिखा आपने और बेहद तीखा और सार्थक लिखा | समाज पर ये मौन बड़ा मर्मान्तक होता है एक संवेदनशील व्यक्ति खासकर कवि के लिए | सार्थक रचना के लिए आप सराहना की पात्र हैं | हार्दिक शुभकामनायें साथ में मेरा प्यार |
ReplyDeleteवाह ! रिश्तों में अविश्वास बहुत ही पीड़ा दायक होता है ! खूबसूरत प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीया ।
ReplyDeleteबैठे हो कान में उंगलियाँ डाले
ReplyDeleteनहीं सुनते हो चीखों को?
नहीं झकझोरती है संवेदनाएँ?
मृत नहीं तुम जीवित हो माने कैसे?
संवेदनाओं के अनुसंधान में आसक्त मन का अनहद आलाप!!!