चित्र:मनस्वी प्राजंल
त्रिलोकी के नेत्र खुले जब
अवनि अग्निकुंड बन जाती
वृक्ष सिकुड़कर छाँह को तरसे
नभ कंटक किरणें बरसाती
बदरी बरखा को ललचाती
जब जेठ की तपिश तपाती
उमस से प्राण उबलता पल-पल
लू की लक-लक दिल लहकाती
मन के ठूँठ डालों पर झूमकर
स्मृतियाँ विहृ्वल कर जाती
पीड़ा दुपहरी कहराती
जब जेठ की तपिश तपाती
प्यासी नदियां,निर्जन गुमसुम
घूँट-घूँँट जल आस लगाए
चिचियाए खग व्याकुल चीं-चीं
पवन झकोरे आग लगाए
कलियाँ दिनभर में मुरझाती
जब जेठ की तपिश तपाती
#श्वेता सिन्हा
वाह!!श्वेता ...बहुत खूब ..,आपकी लेखन कला को नमन..।
ReplyDeleteअति आभार आपका शुभा दी..आपके स्नेहाशीष के लिए क्या कहे..बस प्रेम बनाये रखिये दी।
Deleteवाव्व...श्वेता, बहुत ही सुंदर रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार ज्योति दी।
Deleteजेठ की गर्मी पर उम्दा रचना
ReplyDeleteअति आभार लोकेश जी।
Deleteवाह श्वेता. बहुत उम्दा लेखन. सुंदर शब्द संयोजन
ReplyDeleteअति आभार आपका सुधा जी।
Deleteउमस से प्राण उबलता पल-पल
ReplyDeleteलू की लक-लक दिल लहकाती
बहुत सुन्दर .....,
बहुत बहुत आभार मीना जी।
Deleteवाह.. बहुत बढिया
ReplyDeleteबहुत आभार पम्मी जी।
Deleteबिटिया के चित्र के आगे आज आप पिछड़ गये बहुत सुंदर चित्र बनाया है प्रांजल ने मासी की और से ढेर सा प्यार।
ReplyDeleteरचना बहुत अच्छी है जो कहना चाह रहे हो भाव मुखरित हो आये हैं ग्रीष्म की भयावहता का सटीक वर्णन ।
😊😊
Deleteअति आभार दी
आपका स्नेह और आशीष सदैैव अपेक्षित है।
माँ-बेटी दोनों की ओर से सादर नमन दी और अतुल्य प्रेम।
सिर्फ वाह! और कुछ नहीं। वो भी चित्र के लिए!
ReplyDeleteमनभावन शब्द संयोजन!!!!
😊😊
Deleteअति आभार आपके आशीष का।
हृदय से बहुत बहुत आभार।
प्रिय श्वेता -- जेठ की तपिश को शब्दों में आपने बांधा तो बिटिया ने रंगों से कागज पर हुबहू तस्वीर उतार दी | माँ बेटी ने शब्द और रंग से मौसम को जीबंत कर दिया |माँ सरस्वती ने दोनों पर अपनी खूब कृपा बरसाई है-- दुआ है ये यूँ ही बनी रहे | दोनों को खूब शुभकामनाये और मेरा प्यार |
ReplyDelete😊😊
Deleteरेणु दी, आपकी स्नेहसिक्त प्रतिक्रिया ने रचना को विशिष्ट बना दिया है।
अति आभार आपका,स्नेहाशीष बनाये रखे दी।
अद्भुत माँ बेटी का भाव एक लिखे दूजी चित्रित करें अद्भुत संगम देखा आज ...आफरीन प्रिय श्वेता जी
ReplyDelete😊😊😊
Deleteअति आभार आपका प्रिय इन्दिरा जी।
सस्नेह शुक्रिया आपका।
बहुत सुन्दर रचना साथ में प्रिय बिटिया द्वारा बनाया खूबसूरत चित्र......वाह!!!
ReplyDeleteमाँ बेटी को असीम शुभकामनाएं।
सुधा जी हृदयतल से अति आभार,
Deleteआपकी शुभकामनाएँ सदैैव अपेक्षित है।
सस्नेह शुक्रिया जी।
वाह ! क्या बात है ! जेठ की तपिश की लाजवाब प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीया ।
ReplyDeleteअति आभार आपका सर।
Deleteतहेदिल से बहुत शुक्रिया।
वाह श्वेता जी , बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteअति आभार आपका वंदना जी।
Deleteहृदयतल से बहुत शुक्रिया।
बहुत ही सुंदर लेखन। जेठ की तपिश से जूझता जीवन फिर भी हंसता खेलता जीवन।
ReplyDeleteअति आभार आपका p.k ji.
Deleteहदयतल से अति आभार आपका।
जब आपको कोई टोपिक दिया जाता है और उस पर रचना बनानी होती है तो वह रचना केवल शब्दों का ढेर होकर रह जाती है.
ReplyDeleteइस प्रकार के काव्य में आप केवल कोशिशें करती रहती हैं कि शब्द सही से जच जाये.
एक बार मैने यशोदा जी को ईमेल किया था कि कविता जानबूझ कर लिखी नहीं जाती वो सिर्फ पैदा होती है
कब,किस जगह और किस टोपिक पर पैदा होगी कोई नहीं बता सकता.
आप एक बार सोचें कि इस रचना को रचते वक्त क्या आप वो लिख रहीं थी जो आप का दिल कह रहा था या आपने अपने दिमाग के माध्यम से वो लिखा जो टॉपिक के अंतर्गत आ रहा है...दोनों में बहुत अंतर है...
मैं ये कतई नही कहता कि दिए गये टॉपिक पर कोई रचना नहीं बन सकती
दिए गये टॉपिक पर लिखा जा सकता है लेकिन काव्य नही, लेख/सुलेख लिखा जा सकता है...
इसीलिए कवि या शायर खुद को पागल कह सकते हैं लेकिन एक लेखक अपने आप को पागल कहने की भूल कभी नहीं करेगा.
क्यूंकि लेख लिखते वक्त आपको टॉपिक के बारे में पहले जानकारी होनी चाहिए कि किस टॉपिक पर लिखना है उससे सम्बन्धित आंकड़े,तथ्य,विवरण आपके पास होने चाहिए या याद होना जरूरी है.
कृपया गद्य-पद्य में अंतर जाने.
आभार.
अपने जो तर्क गढ़ा है,उसके आलोक में हिंदी के उन महान कवियों यथा दिनकर (टॉपिक - कर्ण ), मैथिलीशरण गुप्त ( टॉपिक - यशोधरा ) जयशंकर प्रसाद ( टॉपिक - मनु, श्रृद्धा, इडा आदि ) की महान कृतियों का अवलोकन करें तो वो निरा शब्दों का ढेर ही मानी जाएगी। और यदि शास्त्रीय परंपरा का भी स्मरण किया जाय तो गद्य काव्य का ही निकष है। इसलिए कविता को किसी परिभाषा की परिधि में बांधना स्वयं एक अकवितात्मक कृत्य है। इस विषय मै सियाराम शरण गुप्तजी का बहुचर्चित निबंध ' कवि चर्चा ' आंख खोलने वाला मील का पत्थर है। अवश्य पढ़ें। सादर।
Deleteआदरणीय रोहितास जी -- बहुत विनम्रता से आदरणीय विश्वमोहन जी की बात से सहमत होते हुए मैं इसे थोड़ा विस्तार देना चाहूंगी |रचना बेशक पैदा होती है पर एक सकारात्मक और रचनात्मक प्रतिस्पर्धा नए सृजन को जन्म देने में सक्षम होती है | आदरणीय यशोदा जी और आदरणीय रवीन्द्र जी ने पञ्च लिंकों पर जो हमकदम नाम से छोटा सा प्रयास इस दिशा में किया है ---उससे अनेक उत्कृष्ट रचनाएँ अस्तित्व में आई है क्योकि एक कवि या लेखक उस विषय से जुड़ बीते अनुभवों के माध्यम से सृजन करता है ना कि कोरा शब्द - प्रपंच रचता है | मैंने हाल ही में जब आपकी रचना की दो पंक्तियों पर लिखा ---तो वह मात्र शब्द जाल नहीं था, भले उत्कृष्ट ना हो --पर उसके भाव किसी के अनुभव जनित ही थे जिन्हें मैंने अपने शब्दों में लिखा |और रही श्वेता की बात--- वे ब्लॉग जगत की सशक्त हस्ताक्षर हैं जिनकी रचनाये विस्मय से भर देती हैं | उन्होंने बहुत ही कोमलता और अंतरंगता से अपना रचना संसार सजा रखा है -- उनकी रचनाएँ साहित्य में ताजगी भरा एहसास हैं औरएक पाठिका के रूप में मैंने उनकी रचनाओ में कभी कोई रसहीनता नहीं पाई | उनके काव्य
Deleteमें लालित्य , मधुरता ,कोमलता सभी कुछ विद्यमान है | और ऊपर लिखित रचना की कहूँ तो मुझे लगता है ये हमकदम के विषय की उद्घोषणा से पहले की है | शायद इसी के ऊपर विषय चुना गया है | कविता लेखन के मेरा अपना मानना है कि मैंने जो आज तक लिखा स्वछंद होकर लिखा | मैं मानती हूँ लेखन वही सार्थक है जो स्वछंद हो रचा जाये | बंधन में इसके भावहीन होने का दर मुझे सताता है हालाँकि बहुत बड़े बड़े कविजन हुए जिन्होंने छंद - बंधन में भी अति उत्तम सृजन किया है | गोस्वामी तुलसीदास जी और आधुनिककालीन अनेक कवि इसका जीवंत उदाहरन हैं | हाँ आपका ये सुझाव जरुर सार्थक हो सकता है कि हमकदम के विषय को मात्र पद्य तक सिमित ना रख गद्यात्मक भी बनाया जाये -- कभी - कभी , ताकि उत्तम निबंध भी अस्तित्व में आयें और लेखकों के चिंतन की प्रखरता का बोध हो | अपना उत्तर अवश्य लिखें मेरा अनुरोध है | सादर --
आदरणीय रोहिताश जी,
Deleteनमस्कार।
आदरणीय विश्वमोहन जी और रेणु दी की सारगर्भित और विवेचना पूर्ण प्रतिक्रिया से अब शायद आप संतुष्ट हो गये होंगे। आपके मन के सारे प्रश्न अब हल हो गये होंगे आशा करते है हम।
जी,हम भी मानते है कविताएँ बनाई नहीं जाती यह आत्मिक सृजन होती है किंतु भावों को सही स्वरूप देने के लिए एक सशक्त अभिव्यक्ति प्रदान करने के जिस लालित्य का उपयोग शब्दों के द्वारा किया जाता है उसके लिए रचनाओं के शब्द-संयोजन पर ध्यान देना ही पड़ता है।
साधारण रुप से कही बातें एक बचकानी,हल्की रचना बनकर रह जाती है।
किसी भी टॉपिक पर लिखना किसी रचनाकार की कल्पनाशीलता उसकी लेखनी की उर्वरता का द्योतक होता है। हम हृदय से ऐसे रचनाकारों का सम्मान करते हैं।
आपको मेरी रचना "शब्दों का ढेर लगी" कोशिश करेंगे अगली बार भावपूर्ण भी लगे।
आदरणीय विश्वमोहन जी का विद्वता पूर्ण तर्क बेहद प्रभावशाली है।
ज्यादा क्या कहें हृदयतल से आभार व्यक्त करते है हम आपका विश्वमोहन जी।🙏🙏
रेणु दी ने बहन के प्रेम में वशीभूत कुछ ज्यादा ही मेरी सराहना लिख दी।
दी के स्नेह से मन भीग गया। आपका नेह बना रहे दी हम पर यूँ ही।🙏🙏
हम मानते है कि मेरे लेखन में त्रुटियाँ है बहुत सारी। समय-समय पर लेखन को परिमार्जित करने के लिए आत्मावलोकन के लिए रोहिताश जी कृपया मार्गदर्शन करते रहे।
आपकी प्रतिक्रिया ने एक स्वस्थ वैचारिकी मंथन का अवसर दिया उसके लिए हम आपके तहेदिल से शुक्रगुज़ार है।
सादर
आभार।
तर्क वितर्क के समन्दर जिनती आप डुबकी लगाते हो उससे कहीं ज्यादा गहराई में आप डूबने लगते हो.
Deleteश्वेता जी, विश्व मोहन जी और रेनू जी आपके सामने मैं बहुत बौना कवि या ज्ञानी हूँ..हमारे आधार भी बेआधार होते हैं..या यूँ कहूँ कि आपके आगे "अधजल गगरी छलकत जाए" वाली कहावत मेरे लिए ही बनी है... लेकिन फिर भी मैंने एक निबंध के माध्यम से आपको प्रतिउत्तर देने की चेष्टा करी है.. जिसका लिंक ये है ----> कविता और मैं
इस चर्चा को और विस्तार देने में मेरी कोई उत्सुकता नही थी। किन्तु, आपकी टिप्पणी और आलेख को पढ़कर मैं थोड़ा कुछ और कहने के लोभ का संवरण नही कर पाया।
Deleteपहली बात तो यह कि साहित्यिक और बौद्धिक विमर्श में सर्वदा वस्तुनिष्ठता का वरण करना चाहिए और व्यक्तिपरक वक्तव्य से परहेज़ का संस्कार सीखना चाहिए।
दूसरी बात, विषय(टॉपिक) कहीं से भी टपके,कोई और दे,परिस्थितियों के गर्भ से प्रसवित हो, किसी इतिहास चरित्र के चित्रण के आलोक में हो,अंतर्भूत हो या बहिरभूत- यह एक मानसिक प्रक्रिया है और उसे प्रक्षालित करने वाली हहराती भाव गंगा का प्रस्फुटन अंतर्मन से होता है।सृजन के इस विराट यज्ञ की अन्तःसलिला की भाव भूमि ज्ञान से परे अनुभूत मात्र है,इसलिए शब्दों के लिए अलंघ्य और अपरिभाषेय है।
यदि आप आदिकवि वाल्मिकी के महाकाव्य रामायण की रचना की पड़ताल, ज्ञात या कल्पित सर्वमान्य स्त्रोत जो भी उपलब्द्ध हैं के आधार पर और भले आप मानें या न मानें, करेंगे तो यही पाएंगे कि क्रोंच के वध से उत्पन्न वेदना कवि के हृदय में सृजन की भाव लहरी बनकर उमड़ी थी जरूर लेकिन उसके प्रबल रचनात्मक प्रवाह के लिए उन्हें राम कथा का 'टॉपिक' सुझाया गया। तभी उन्होंने रामायण की रचना की।
वैसे ही, यशोधरा,उर्मिला,उर्वशी,श्रद्धा,मनु,इड़ा या अन्य 'टॉपिक' किसी न किसी परिस्थिति की पुकार थे।
ऐसे भी अखिल भारतीय साहित्य/ कवि सम्मेलनों का हमेशा कोई न कोई 'थीम' रहा है जिस पर रचनाकारों ने अपनी अपनी विधा (कविता, निबंध,लेख,नाटक, संस्मरण आदि) में रचनायें की है।
इसलिए रचना और सृजन कर्म के इस विराट स्वरूप को संकुचित धारणा के धागों में न बांधे। इन्हें उन्मुक्त गगन में अपनी प्रकृति और अपने स्वभाव में विचरने दे।
अबतक के विमर्श का आभार और शुक्रिया, आदरणीय!
जेठ की तपिश को शब्दों में समेटती एक खूबसूरत रचना
ReplyDeleteहर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है आगे कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें !!
अति आभार आपका संजय जी
Deleteतहेदिल से शुक्रिया आपका।
बहुत ख़ूब
ReplyDeleteअति आभार आपका आदरणीय।
Deleteअति आभार आपका आदरणीय।
ReplyDeleteप्रिय श्वेता, आपकी रचनाएँ तो सुंदर और कलात्मक सृजन की अनमोल धरोहर हैं ही किंतु बिटिया के चित्र को देखकर उसमें भी एक कलाकार दिखाई दे रहा है। बिटिया की इस प्रतिभा को पंख दीजिए। मैं भी कभी बहुत अच्छी पेंटिंग्स बनाती थी किंतु जिम्मेदारियों के बोझ में सब छूट गया। अब भी कभी कभी थोड़ा बहुत रंगों से खेलना अच्छा लगता है। आप दोनों को मेरा स्नेह ।
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