अश्कों का आँख से ढलना हमें अच्छा नहीं लगता
तड़पना,तेरा दर्द में जलना हमें अच्छा नहीं लगता
भिगाती है लहर आकर, फिर भी सूखा ये मौसम है
प्यास को रेत का छलना हमें अच्छा नहीं लगता
क़फ़स में जां सिसकती है फ़लक सूना बहारों का
दुबककर मौत का पलना हमें अच्छा नहीं लगता
लोग पत्थर समझते हैं तो तुम रब का भरम रखो
तेरा टुकड़ोंं में यूँ गलना हमें अच्छा नहीं लगता
झलक खुशियों की देखी है वक़्त की पहरेदारी में
याद में ज़ख़्म का हलना हमें अच्छा नहीं लगता
कहो दामन बिछा दूँ मैं तेरी राहों के कंकर पर
ज़मीं पर चाँद का चलना हमें अच्छा नहीं लगता
--श्वेता सिन्हा
कहो दामन बिछा दूँ मैं तेरी राहों के कंकर पर
ReplyDeleteज़मीं पर चाँद का चलना हमें अच्छा नहीं लगता
SUPERB !!!!
एक से बढ़कर एक हैं सारे छंद, वाह !!!
आफरीन आफरीन!!
ReplyDeleteशानदार अश्आर, हर शेर दुसरे पे भारी।
उम्दा, बेहतरीन।
शानदार, बेहतरीन
ReplyDeleteहर शेर जबरदस्त
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 13 जून 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteश्वेता,तुम्हारी इतनी अच्छी लेखनी पर टिप्पणी किए बिना आगे बढना मुझे अच्छा नहीं लगता। हा हा हा ...
ReplyDeleteबहुत ख़ूब ...
ReplyDeleteहर शेर कमाल का ... नई बात कहता हुआ ...
आफरीन आफरीन ..श्वेता जी आफरीन ....हर लफ्ज उम्दा हर शेर आफरीन क्या दाद दे मुसाफिर यूं कलाम सुन के चुप रह जाना हमें अच्छा नहीं लगता ....😁😁😁😁👌👌👌👌👌👌👌👌👍👍👍👍👍👍👍
ReplyDeleteकफ़स में जां सिसकती है, फ़लक सुना बहारों का
ReplyDeleteदुबक कर मौत का पलना हमें अच्छा नहीं लगता....
................. भावों की इतनी प्रगाढ़ता! उफ़! नि:शब्द!!!
वाह!!वि!!श्वेता ...क्या बात है !!लाजवाब !!
ReplyDeleteबेहतरीन श्वेता जी निःशब्द कर दिया आपने तो ...
ReplyDeleteशुभकामनाएँ ..
तरन्नुम में गुनगुनाने लायक दिलकश अल्फ़ाज़ में सृजित संजीदा एहसासात से सजी नज़्म।
ReplyDeleteबधाई एवं शुभकामनायें।
लिखते रहिये।
वाह ! क्या बात है ! लाजवाब !! आखिरी शेर के तो क्या कहने !! बहुत खूब आदरणीया ।
ReplyDeleteवाह वाह दीदी जी क्या बात है हर शेर सवा शेर सा है हर शब्द में भाव का सागर है क्या सराहना करूँ इसकी शब्द कम पड़ जायेंगे
ReplyDeleteलाजवाब सुंदर उत्क्रष्टता के परे 👌👌
सादर नमन शुभ दिवस 🙇
ख़ूबसूरत अंदाज-ए-बयां
ReplyDeleteकहो दामन बिछा दूँ मैं तेरी राहों के कंकर पर
ReplyDeleteज़मीं पर चाँद का चलना हमें अच्छा नहीं लगता
वाह!!!!
क्या बात है !!!!!
शानदार, शेरों से सजी लाजवाब गजल...
वाहवाह
हो दामन बिछा दूँ मैं तेरी राहों के कंकर पर
ReplyDeleteज़मीं पर चाँद का चलना हमें अच्छा नहीं लगता-
प्रिय श्वेता मन तो इस रचना के लिए आपको कई दिन से दाद दे रहा है --पर व्यस्तता वश लिख नहीं पाई | मन के कोमलतम एहसासों से भरी सुंदर रचना को पढ़कर निशब्द हूँ | इस बेजोड़ प्रस्तुति ले लिए बस मेरा प्यार |
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शुक्रवार 11 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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ReplyDeleteक़फ़स में जां सिसकती है फ़लक सूना बहारों का
दुबककर मौत का पलना हमें अच्छा नहीं लगता
वाह!! बहुत सुंदर प्रस्तुति श्वेता जी।
सुन्दर
ReplyDeleteकोमल एहसास अनमोल हैं। उनको रचना में ढालना आसान नही। पर तुमने किया प्रिय श्वेता। फिर से कलम थामो और लौटो अपने भाव सदन में। हार्दिक स्नेह और शुभकामनाएं 💘💘🌹🌹
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