मैं चाँद हूँ
आसमाँ के दामन से उलझा
बदरी की खिड़कियों से झाँकता
चाँदनी बिखराता हूँ
मुझे न काटो जाति धर्म की कटार से
मैं शाश्वत प्रकृति की धरोहर
हीरक कणों से सरोबार
वादियों में उतरकर
जी भर कर चूमता हूँ धरा को
करता आलिंगन बेबाक
क्या जंगल, पर्वत,बस्ती,क्या नदियों की धार
झोपड़ी की दरारों से,
अट्टालिकाओं की कगारों से
झाँककर फैलाता हूँ स्वप्निल संसार
दग्ध हृदय पर,आकुलाये मन पर
रुई के कोमल फाहे रख,
बरसाता मधुर रसधार
ईद का चाँद मैं
खुशियों की ईदी दे जाता हूँ
शरद की रात्रि का श्रृंगार
घट अमृत छितराता हूँ
न मैं हिंदू न मुसलिम हूँ
मैं चाँद हूँ
प्रकृति का सलोना उपहार
कुछ तो सीखो हे,मानव मुझसे
भूलकर हर दीवार
मानव बन करो मानवता से प्यार
---श्वेता सिन्हा
ब्लॉग जगत में आपकी सक्रीयता सराहनीय है।
ReplyDeleteवाह श्वेता जी लाजवाब ...साम्प्रदायिकता से परे खड़ा हर धर्म को आत्म सात करता चाँद ...आओ कुछ सीख देता काव्य
ReplyDeleteRenu11:19 pm, June 16, 2018
ReplyDeleteवाह्ह !! प्रिय श्वेता | चाँद के आत्म कथ्य को बहुत ही सुन्दरता से शब्दांकित किया आपने | चाँद सदैव ही सबके लिए सौहार्द और प्रेम का प्रतीक रहा है इसे ना कोई बाँट सका है ना बाँट सकेगा | एक यही चीज इन्सान के बस में नही |ये हर हाल में मानवता से प्रेम करना सिखाता है | सस्नेह
बहुत ख़ूब ...
ReplyDeleteप्राकृति ने तो कोई भेद किसी के साथ नहि किया ... उसकी श्रेष्ठ रचना इंसान है जिसके साथ भी कोई भेदभाव नहि किया पर इंसान ... उसी प्राकृति को ... उसी माँ को बाँटने में लगा रहता है ...
स्पष्ट शब्दों में सच को रखते आपकी रचना लाजवाब है ... काश सभी के दिल में उतरे ...
बहुत ही खूबसूरत संदेश दिया चाँद के माध्यम से....सुंदर शब्दावली व प्रकृति की दिव्यता का वर्णन सराहनीय है।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर एहसास श्वेता जी
ReplyDeleteशानदार रचना
अति सुंदर रचना👌👌
ReplyDeleteमैं चाँद हूँ
ReplyDeleteप्रकृति का सलोना उपहार
कुछ तो सीखो हे,मानव मुझसे
भूलकर हर दीवार
मानव बन करो मानवता से प्यार
वाव्व...श्वेता, बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति।
"मानव बन करो मानवता से प्यार"
ReplyDeleteवाह क्या खूबसूरत संदेश दिया है चँदा मामा ने
आज जो हालात हो रखे हैं उसमें इंसानियत कहीं खो गयी है और जो धर्म/मजहब मानव को अँधेरे में मार्ग दिखाने के लिए बना था वो खुद आज अमावस सा काला हो चला है ऐसे में आपकी रचना की चाँदनी लोगों को इंसानियत के सही राह पर आगे बढ़ने को प्रेरित कर रही है
बेहद उत्क्रष्ट लाजवाब रचना
सादर नमन शुभ संध्या श्वेता दीदी 🙇
मैं शाश्वत प्रकृति की धरोहर
ReplyDeleteहीरक कणों से सरोबार
वादियों में उतरकर
जी भर कर चूमता हूँ धरा को..
लाज़बाव तसव्वुर, मंत्रमुग्ध करती शैली, मुदित करता शब्द चयन। बहुत ही ख़ूब श्वेता जी।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 19 जून 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteवाह !!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सार्थक रचना ....
जाति धर्म से परे सिर्फ मानवता से प्रेम कितनी सुखद कल्पना है...प्रकृति प्रदत्त चाँद को भी हमने जाति धर्म बाँट डाला ....
लाजवाब रचना के लिए बहुत बहुत बधाई श्वैता जी।
बहुत सुंदर रचना
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