Friday, 12 April 2019

मैं रहूँ या न रहूँ


कभी किसी दिन
तन्हाई में बैठे
अनायास ही
मेरी स्मृतियों को 
तुम छुओगे अधरों से
झरती कोमल चम्पा की
कलियों को
समेटकर अँजुरी से
रखोगे
उसी पिटारे में 
जिसमें 
मेरे दिये नामों-उपनामों की
खनकती सीपियाँ बंद है
तुम्हारी उंगलियों के स्पर्श से
स्पंदित होकर
जब लिपटेगे वो बेतुके नाम 
तुम्हारी धड़कनों से 
कलोल के
मीठे स्वर हवाओं के 
परों पर उड़ - उड़कर
तुम्हें छेड़ेगे
सुनो!
उस पल 
तुम मुस्कुराओगे न?
मैं रहूँ या न रहूँ।

#श्वेता सिन्हा

14 comments:

  1. तुम छुओगे अधरों से
    झरती कोमल चम्पा की
    कलियों को
    समेटकर अँजुरी से
    रखोगे
    उसी पिटारे में... वाह ! बेहतरीन प्रिय सखी
    सादर

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  2. बहुत ही ख़ूबसूरत काव्य सृजन मैम... अद्भुत !

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  3. प्यार से परिपूर्ण दिल को छूती बहुत ही सुंदर रचना, श्वेता दी।

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  4. बहुत खूबसूरत।

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  5. तुम्हारी उंगलियों के स्पर्श से
    स्पंदित होकर
    जब लिपटेगे वो बेतुके नाम
    तुम्हारी धड़कनों से
    बहुत लाजवाब....
    वाह!!!

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  6. वाह आदरणीया दीदी जी बहुत सुंदर
    लाजवाब

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  7. बेहद खूबसूरत रचना

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  8. प्रेम के नाज़ुक लम्हों को ले कर बुनी इस प्रेम माय रहना में डूब जाता है मन ... बहुत ही लाजवाब उड़ान कल्पना की ...

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  9. कोमल, भावुक रचना। हमेशा की तरह सुंदरं। आपकी हर रचना को पढ़ने के लिए मन लालायित रहता है।

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  10. शब्द-शब्द भावनाओं के मुलायम फाहे बन मन के अंतरिक्ष में तैर रहे हैं और हिया के कलोल की मीठी किलकारी कविता के छंदों से बूंद बूंद चू रही है.

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  11. क्या बात है श्वेता बहते हुवे एहसास हैं बहा ले जायेंगे तुम रहो या ना रहो, बस हम यही चाहते हैं कि कयामत तक बस तुम रहो कभी यादों में कभी वादों में कभी काव्य में कभी कविता में कभी गीतों में और सदा हमारे मानस में...

    बहुत सुंदर रचना।

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  12. बहुत ही बेहतरीन रचना।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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