कभी किसी दिन
तन्हाई में बैठे
अनायास ही
मेरी स्मृतियों को
तुम छुओगे अधरों से
झरती कोमल चम्पा की
कलियों को
समेटकर अँजुरी से
रखोगे
उसी पिटारे में
जिसमें
मेरे दिये नामों-उपनामों की
खनकती सीपियाँ बंद है
तुम्हारी उंगलियों के स्पर्श से
स्पंदित होकर
जब लिपटेगे वो बेतुके नाम
तुम्हारी धड़कनों से
कलोल के
मीठे स्वर हवाओं के
परों पर उड़ - उड़कर
तुम्हें छेड़ेगे
सुनो!
उस पल
तुम मुस्कुराओगे न?
मैं रहूँ या न रहूँ।
#श्वेता सिन्हा
तुम छुओगे अधरों से
ReplyDeleteझरती कोमल चम्पा की
कलियों को
समेटकर अँजुरी से
रखोगे
उसी पिटारे में... वाह ! बेहतरीन प्रिय सखी
सादर
बहुत ही ख़ूबसूरत काव्य सृजन मैम... अद्भुत !
ReplyDeleteप्यार से परिपूर्ण दिल को छूती बहुत ही सुंदर रचना, श्वेता दी।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत।
ReplyDeleteतुम्हारी उंगलियों के स्पर्श से
ReplyDeleteस्पंदित होकर
जब लिपटेगे वो बेतुके नाम
तुम्हारी धड़कनों से
बहुत लाजवाब....
वाह!!!
वाह आदरणीया दीदी जी बहुत सुंदर
ReplyDeleteलाजवाब
बेहद खूबसूरत रचना
ReplyDeleteप्रेम के नाज़ुक लम्हों को ले कर बुनी इस प्रेम माय रहना में डूब जाता है मन ... बहुत ही लाजवाब उड़ान कल्पना की ...
ReplyDeleteकोमल, भावुक रचना। हमेशा की तरह सुंदरं। आपकी हर रचना को पढ़ने के लिए मन लालायित रहता है।
ReplyDeleteशब्द-शब्द भावनाओं के मुलायम फाहे बन मन के अंतरिक्ष में तैर रहे हैं और हिया के कलोल की मीठी किलकारी कविता के छंदों से बूंद बूंद चू रही है.
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteक्या बात है श्वेता बहते हुवे एहसास हैं बहा ले जायेंगे तुम रहो या ना रहो, बस हम यही चाहते हैं कि कयामत तक बस तुम रहो कभी यादों में कभी वादों में कभी काव्य में कभी कविता में कभी गीतों में और सदा हमारे मानस में...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना।
बहुत ही बेहतरीन रचना।
ReplyDelete👌 👌 👌 बेहतरीन
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