कभी किसी दिन
तन्हाई में बैठे
अनायास ही
मेरी स्मृतियों को
तुम छुओगे अधरों से
झरती कोमल चम्पा की
कलियों को
समेटकर अँजुरी से
रखोगे
उसी पिटारे में
जिसमें
मेरे दिये नामों-उपनामों की
खनकती सीपियाँ बंद है
तुम्हारी उंगलियों के स्पर्श से
स्पंदित होकर
जब लिपटेगे वो बेतुके नाम
तुम्हारी धड़कनों से
कलोल के
मीठे स्वर हवाओं के
परों पर उड़ - उड़कर
तुम्हें छेड़ेगे
सुनो!
उस पल
तुम मुस्कुराओगे न?
मैं रहूँ या न रहूँ।
#श्वेता सिन्हा