बर्फीली ठंड,कुहरे से जर्जर,
ओदायी,
शीत की निष्ठुरता से उदास,
पल-पल सिहरती
आखिरी साँस लेती
पीली पात
मधुमास की प्रतीक्षा में,
बसंती हवा की पहली
पगलाई छुअन से तृप्त
शाख़ से लचककर
सहजता से
विलग हो जाती है।
ठूँठ पर
ठहरी नरम ओस की
अंतिम बूँद को
पीने के बाद
मतायी हवाओं के
स्नेहिल स्पर्श से
फूटती नाजुक मंजरियाँ,
वनवीथियों में भटकते
महुये की गंध से उन्मत
भँवरें फुसफुसाते हैं
मधुमास की बाट जोहती,
बाग के परिमल पुष्पों
के पराग में भीगी,
रस चूसती,
तितलियों के कानों में।
बादलों के गाँव में
होने लगी सुगबुगाहट
सूरज ने ली अंगड़ाई,
फगुनहट के नेह ताप से
आरक्त टेसु,
कूहू की पुकार से
व्याकुल,
सुकुमार सरसों की
फूटती कलियों पर मुग्ध
खिलखिलाई चटकीली धूप।
मधुमास शिराओं में
महसूस करती
दिगंबर प्रकृति
नरम,स्निग्ध,
मूँगिया ओढ़नी पहनकर
लजाती,इतराती है।
#श्वेता सिन्हा
१६/०२/२०२०
१६/०२/२०२०
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 18 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteमधुर सरस काव्य रस छलकता पीयूष सा सुंदर सृजन।
ReplyDeleteभावों में विविध विस्तार भरता अभिनव कार्य।
अद्धभुत भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुंदर काव्याभिव्यक्ति प्रिय श्वेता ।शब्दों का बसंत सचमुच के बसंत से बिल्कुल भी कम नहीं है। सरस कोमल शब्दावली में बंधी भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें। ये पंक्तियाँ बहुत प्यारी लगी मुझे ------
ReplyDeleteबादलों के गाँव में
होने लगी सुगबुगाहट
सूरज ने ली अंगड़ाई,
फगुनहट के नेह ताप से
आरक्त टेसु,
कूहू की पुकार से
व्याकुल,
सुकुमार सरसों की
फूटती कलियों पर मुग्ध
खिलखिलाई चटकीली धूप।
सुंदर रचना
ReplyDeleteवाह श्वेता जी प्रकृति के सौन्दर्य और विशिष्ट उपमान अपने आप में अद्भुत होते हैं आपके.....
ReplyDeleteआपकी रचनाओं पर प्रतिक्रिया देने लायक नहीं समझती मैं स्वयं को....
बस लाजवाब और सिर्फ लाजवाब ही लिख पाती हूँ....
कोटिश नमन आपको और आपकी लेखनी को।
फ़ाल्गुन मधुमास अनोखा मौसम है
ReplyDeleteआदमी का जहां बदन सम्भलता नहीं है वहीं प्रकृति सृजनात्मक ठंग से जाग रही होती है।
आपने बहुत सुंदर व्याख्या की है।
शुभकामनाएं।😊
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत प्यारी रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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