सूनी रात के अंतिम प्रहर
एक-एककर झरते
वृक्षों से विलग होकर
गली में बिछे,
सूखे पत्रों को
सहलाती पुरवाई ने
उदास ड्योढ़ी को
स्नेह से चूमा,
मधुर स्मृतियों की
साँकल खड़कने से चिंहुकी,
कोयल की पुकार से उठी
मन की हूक को दबाये
डबडबाई पलकें पोंछती
पतझड़ से जीवन में 'वह'
वसंत की आहट सुनती है।
हवाओं में घुली
नवयौवना पुष्पों की गंध,
खिलखिलाई धूप से
दालान के बाहर
ताबंई हुई वनचम्पा
जंगली घास से भरी
क्यारियों में
बेतरतीब से खिले
डालिया और गेंदा
को रिझाते
अपनी धुन में मगन
भँवरों की नटखट टोलियाँ,
मुंडेर पर गूँटर-गूँ करते
भूरे-सफेद कबूतर
फुदकती बुलबुल
नन्हें केसरी बूटों
की फुलकारी से शोभित
नागफनी की कंटीली बाड़ से
उलझे दुपट्टे उंगली थामे
स्मृतियों का वसंत
जीवंत कर जाते हैं।
विरह की उष्मा
पिघलाती है बर्फ़
पलकों से बूँद-बूँद
टपकती है वेदना
भिंगाती है धरती की कोख
सोये बीज सींचे जाते हैं,
फूटती है प्रकृति के
अंग-प्रत्यंग से सुषमा,
अनहद राग-रागिनियाँ...,
यूँ ही नहीं
ओढ़ते हैं निर्जन वन
सुर्ख़ ढाक की ओढ़नी,
मौसम की निर्ममता से
ठूँठ हुयी प्रकृति का
यूँ ही नहीं होता
नख-शिख श्रृंगार,
प्रेम की प्रतीक्षा में
चिर विरहिणियों के
अधीर हो कपसने से,
अकुलाई,पवित्र प्रार्थनाओं से
अँखुआता है वसंत।
'अँखुआता है वसंत।'नि:शब्द!
ReplyDeleteभँवरों की नटखट टोलियाँ,
ReplyDeleteमुंडेर पर गूँटर-गूँ करते
भूरे-सफेद कबूतर
फुदकती बुलबुल
नन्हें केसरी बूटों
की फुलकारी से शोभित
नागफनी की कंटीली बाड़ से
उलझे दुपट्टे उंगली थामे
स्मृतियों का वसंत
जीवंत कर जाते हैं।
सच में प्रकृति के देन है यह उल्हास से भरे यह रोचक पल,
जो हमें जिंदा होने और रहने के लिए प्रेरित करते है।
वाह!!श्वेता ,बहुत ही खूबसूरत सृजन👌
ReplyDeleteप्रेम की प्रतीक्षा में
ReplyDeleteचिर विरहिणियों के
अधीर हो कपसने से,
अकुलाई,पवित्र प्रार्थनाओं से
अँखुआता है वसंत।
बहुत भावपूर्ण प्रिय श्वेता। इन चिर विरहनियों की प्रार्थना रंग लाती है , पर काश सचमुच का बसंत इनके जीवन का बसंत भी लौटा दे।
प्रशंसनीय
ReplyDeleteप्रकृति के सहज कलापों में भी वेदना कैसे झलकती है ये आपकी शानदार लेखनी बहुत सुंदर ढंग से उकेरती है श्वेता ।
ReplyDeleteलाजवाब सृजन।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति श्वेता जी
ReplyDeleteसराहनीय सृजन स्वेता! बहुत सुंदर।
ReplyDeleteविरह की उष्मा
ReplyDeleteपिघलाती है बर्फ़
पलकों से बूँद-बूँद
टपकती है वेदना
भिंगाती है धरती की कोख
सोये बीज सींचे जाते हैं,
बेहद भावपूर्ण सृजन श्वेता जी ,सादर नमन
यूँ ही नहीं होता
ReplyDeleteनख-शिख श्रृंगार,
प्रेम की प्रतीक्षा में
चिर विरहिणियों के
अधीर हो कपसने से,
अकुलाई,पवित्र प्रार्थनाओं से
अँखुआता है वसंत।
बेजोड़ पंक्तियाँ प्रिय श्वेता ! आपकी रचनाएँ, उनमें प्रयुक्त शब्द, बहुत ही असाधारण कलाकारी से गूँथे गए भाव निःशब्द कर जाते हैं।
बहुत सुंदर वासंतिक रचना...🌹🙏🌹
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