काल के धारदार
नाखून में अटके
मानवता के मृत,
सड़े हुये,
अवशेष से उत्पन्न
परजीवी विषाणु,
सबसे कमजोर शिकार की
टोह में दम साधकर
प्रतीक्षा करते हैं
भविष्य के अंंधेरों में
छुपकर।
मनुष्यों के स्वार्थी
तीरों से विदीर्ण हुई
कराहती
प्रकृति के अभिशाप से
जर्जर हुये कंगूरों पर
रेंगती लताओं से
चिपटकर चुपचाप
परजीवी चूसते हैं
बूँद-बूँद
जीवनी शिराओं का रस
कृश तन,भयभीत मन को
शक्तिशाली होने का भ्रम दिखा
संक्रमित कर सभ्यताओं को
गुलाम बनाकर
राज करना चाहते हैं
संपूर्ण पृथ्वी पर।
धैर्य एवं सकारात्मकता के
कालजयी अस्त्रों
से सुशोभित
सजग,निडर योद्धा
काल के परिस्थितिजन्य
विषधर परजीवियों
के साथ हुये
महाविनाशकारी
महायुद्ध में
मृत्यु के तुमुलनाद से
उद्वेलित,
काल-कलवित होते
मानवों की संख्यात्मक वृद्धि से
विचलित,
किंतु दृढ़प्रतिज्ञ,
संक्रमित नुकीले
महामारी के
विषदंतों को
समूल नष्ट करने के लिए
अनुसंधानरत,
अतिशीघ्र
मिटाकर अस्तित्व
विषैले परजीवियों का,
विजय रण-भेरी फूँककर
आशान्वित
संपूर्ण विश्व को
चिंतामुक्त कर
आह्लादित करने को
कटिबद्ध हैं।
#श्वेता सिन्हा
१७/०३/२०२०
१७/०३/२०२०
सार्थक लेखन... आस फलित हो
ReplyDeleteआभारी हूँ दी। सादर।
Deleteअन्य कई रचनाकारों से इतर .. "कोरोना" शब्द को बिना व्यवहार में लाए ..पर कुछ-कुछ क्लिष्ट** साहित्यिक शब्दों के साथ ..कोरोना के अतुल्य शब्द-चित्र और बिम्बों से सुसज्जित रचना ...
ReplyDelete( ** - हो सकता है मुझ जैसे अल्पज्ञानी के लिए कुछ शब्द क्लिष्ट हो ).
जी आभारी हूँ।
Deleteसादर।
इस हाड़मांस के पुतले में मानवता होती तो ये रोज नए नए जीवों के गोस्त में स्वाद नहीं ढूंढता।
ReplyDeleteकमज़ोर काया तो किसी भी विषाणु से नाश हो सकती है।
लेकिन दुनियां भर के वैद्य और डॉक्टर इस पर पार पा सकते हैं। अभी वो अपनी कोशिश में हैं।
सार्थक,सुंदर,सबक भरी रचना।
बहुत खूब।
नई रचना सर्वोपरि?
आभारी हूँ रोहित जी।
Deleteसादर।
वाह!श्वेता ,बहुत खूब!आशा तो यही करते हैं कि शीध्र ही इस 'कोरोना'नामक दैत्य से संपूर्ण विश्व को मुक्ति मिले ।
ReplyDeleteआभारी हूँ शुभा दी।
Deleteसादर।
आभारी हूँ दी।
ReplyDeleteसादर।
बहुत खूब , ओजपूर्ण सृजन ,सादर नमन श्वेता जी
ReplyDeleteसार्थक और सामयिक
ReplyDeleteअति सुंदर !
ReplyDelete:
सावधानी में ही बचाव है
प्रिय श्वेता,महामारी के तांडव की दस्तक और डरा सहमा समस्त विश्व। सबसे बुरी बात इसका पंजा उनके गिरेबाँ तक जा पहुंचा जो प्रकृति के सबसे करीब हैं । परजीवियों पर आधारित आहार इसका मुख्य कारण बना जो एक तरह से उन अबोले प्राणियों का शाप है, जो अकारण मानव के भोजन के लिए तड़प तड़प कर अपनी जान गंवाते रहे है।सार्थक रचना जो समस्त घटनाचक्र पर विहंगमता से दृष्टिपात करती है। हार्दिक शुभकामनायें इस समसामयिक रचना के लिए।शायद हमारे शाश्वत मूल्य इस बीमारी से निजात पाने में सहायक सिद्ध हों। सस्नेह 👌👌👌👌
ReplyDeleteसमय की नब्ज टटोलती भावपूर्ण और प्रभावी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन
आपने तो हमारे ब्लॉग में आना ही छोड़ दिया
सादर
पढ़ें- कोरोना
कोरोना का लॉक डाउन चल रहा होगा!😀
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