Tuesday, 5 May 2020

एक बार फिर....


एक बार फिर....
उनके जीवन की
कहानियाँ रह गयीं अधूरी
बिखरे कुछ सपने,
छूट गये अपने
सूनी माँग,टूटी चूड़ियों
बूढ़ी-जवान,मासूम
दबी सिसकियों के
आर्तनाद
मीठी-खट्टी,खारी
स्मृतियों पर
उनके प्रियजनों के
सर्वाधिकार सुरक्षित हैं।

एक बार फिर...
वीर सैनिकों के 
रक्तरंजित शव
कंधों ने उतारकर रखें है 
चिताओं पर,
मातृभूमि के लिए
मृत्यु का भोग बने
शहीदों की शहादत पर
तिरंगे में लिपटे शौर्य की
गर्वित गाथाएँ
राख़ और अस्थियों के
विसर्जन के साथ
फिर से
बिसार दी जायेंंगी।

एक बार फिर...
निर्दोष सपूतों के
वीरगति पर आक्रोशित मन
पूछता है स्वयं से प्रश्न 
गगन भेदी जयघोष,
चंद सहानुभूति 
ये रटे-रटाये जुमले 
मात्र औपचारिकता-सी
क्यों प्रतीत हो रही है? 
क्या दैनिक समाचारों का
ब्रेकिंग न्यूज़ बनना  
मुख्य पृष्ठ के किसी कोने में
स्थान पाना 
और नये अपडेट के साथ
भुला दिया जाना ही
शहीदों की नियति है?

©श्वेता सिन्हा
५ मई २०२०
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28 comments:

  1. एकबार फिर आर्तनाद
    चंद सहानुभूति
    ये रटे-रटाये जुमले
    गहन चिन्तन..
    सादर..

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    1. जी आभारी हूँ दी।
      सादर।

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  2. व्यक्ति पूजा सर्वोपरि हो जहां वहां कितनी उम्मीद शेष रह जाती है सच्चे देशभक्तों के लिए
    सोचनीय और चिंतनशील प्रस्तुति

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    1. जी आभारी हूँ आदरणीया।
      सादर।

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  3. हृदय विधायक प्रश्न , यथार्थ पर सीधा सवाल उठाती गहन रचना ।
    मर्मस्पर्शी।

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    1. जी आभारी हूँ दी।
      सादर।

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  4. क्या दैनिक समाचारों का
    ब्रेकिंग न्यूज़ बनना
    मुख्य पृष्ठ के किसी कोने में
    स्थान पाना
    और नये अपडेट के साथ
    भुला दिया जाना ही
    शहीदों की नियति है?
    सही कहा बस यही नियति है शहीदों की देश के सच्चे नायकोंं की....रंगमंच के नायक लम्बे समय तक मुख्यपृष्ठ पर टीवी चैनलों पर ...और देश के सच्चे नायकों की यादें अपनी शहादत और बुझती चिता के साथ ही बुझ जाती हैं...
    यथार्थ पर प्रकाश डालती समसामयिक मार्मिक रचना।

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    1. जी आभारी हूँँ सुधा जी।
      सादर।

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  5. ऐसे काल में भी ऐसे हालात स्तब्धता है
    सुंदर लेखन

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    1. जी आभारी हूँ दी।
      सादर।

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  6. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 06 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी आभारी हूँ दी।
      सादरः

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  7. बेहद मर्मस्पर्शी रचना

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    1. जी आभारी हूँ अनुराधा जी।
      सादर।

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  8. मार्मिक. हमारी हर श्वास शहीदों के तप और त्याग की ऋणी है.

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    1. जी आभारी हूँ नुपूरं जी।
      सादर।

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  9. दुःखद ,हृदय विदारक रचना श्वेता ।
    वीर जवानों के त्याग और बलिदान के कारण ही तो हम चैन की नींद सो पाते हैं।हम उनका कर्ज से उऋण नहीं हो सकते कभी।

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    1. जी आभारी हूँ दी।
      सादर।

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  10. बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना श्वेता । सही कहा आपने इन वीर शहीदों की शहादत कुछ समय बाद बिसरा दी जाती है ,क्या यही शहीदों की नियति है ..गहरा प्रश्न छोडा गई आपकी रचना ..।

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    1. जी आभारी हूँ दी।
      सादर।

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  11. मर्मस्पर्शी रचना, श्वेता. यही होता है हर बार

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    1. आभारी हूँ प्रीति जी।
      सादर।

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  12. प्रिय श्वेता, एक मार्मिक काव्य चित्र , जो मन को उद्वेलित करते हुये अपने पीछे कई प्रश्न छोड़ जाता है। वीर जवानों की शहादत से परिवार पर क्या गुजरती है ये भी वही समझ पाते हैं। बाकी अखबार टी वी तो एक दिन
    खबर दिखा अपने कर्तव्य का निर्वहन
    कर लेते हैं। वीर शहीदों के बलिदान को शत शत नमन। पर सचमुच सोचने की बात है ये शहादतें कब तक??

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    1. बहुत आभारी हूँ दी।
      सादर।

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  13. सैनिक के जीवन से जुड़े मार्मिक पक्ष को बड़ी गंभीरता से उभारती विचारणीय अभिव्यक्ति जिसमें ज्वलंत प्रश्नों की ओर हमारा ध्यान केन्द्रित किया गया है.
    बहुत सुंदर रचना के लिए बधाई प्रिय श्वेता दीदी.

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    1. आभारी हूँ अनु।
      शुक्रिया।
      सस्नेह।

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  14. शहादत की ये कहानियाँ आख़िर कब तक दीदी? माँ भारती और कब तक अपने वीर सपूतों के रक्त से सनी अश्रु बहायेंगी? आपके इन मार्मिक पंक्तियों को और वीर सपूतों को मेरा कोटिशः नमन 🙏
    बस आगे निःशब्द हूँ

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    1. आभारी हूँ प्रिय आँचल।
      सस्नेह शुक्रिया।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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