निर्लज्ज निमग्न होकर मन
देता है तुम्हें मूक निमंत्रण
और तुम निर्विकार,शब्द प्रहारकर
झटक जाते हो प्रेम अनदेखा कर
जब तुम्हारा मन नहीं होता...।
घनीभूत आसक्ति में डूबा
अपनी मर्यादा भूल
प्रणय निवेदन करता मन
तुम्हारे दर्शन बखान पर
अपनी दुर्बलताओं के भान पर
लजाकर सोचता है
तुम कितने निर्मोही हो जाते हो
जब तुम्हारा मन नहीं होता...।
मेरी आत्मीयता के विस्तार पर
तुम झट से खींच देते हो लक्ष्मण रेखा
मेरे सारे प्रश्नों को विकल,
अनुत्तरित छोड़ चले जाते हो
जब तुम्हारा मन नहीं होता...।
तुम्हारा सानिध्य आत्मिक सुख है
परंतु,तुम्हारे प्रेम के लिए सुपात्र नहीं मैं
अपनी अपात्रता पर ख़ुद ही खीझती हूँ
तुम्हारे अबोलेपन पर भी रीझती हूँ
तुम्हारे एहसास में अकेली ही भींजती हूँ
जब तुम्हारा मन नहीं होता...।
#श्वेता सिन्हा
मेरी आत्मीयता के विस्तार पर
ReplyDeleteतुम झट से खींच देते हो लक्ष्मण रेखा
मेरे सारे प्रश्नों को विकल,
अनुत्तरित छोड़ चले जाते हो
जब तुम्हारा मन नहीं होता...।
प्रिय श्वेता, अनुभूतियों के धरातल पर
नारी मन के शाश्वत भावों को कितनी सहजता से, किसी निर्मोही को उद्बोधन के रूप में आकार
देकर समेट लिया तुमने। पौरुष के दर्प और मनमानी की अभेद्य दीवार से उलझते विकल मन की अनकही दास्ताँ लिख दी है तुमने, जिसके आगे नारी हीनता के गर्त में डुबो खुद को प्रेम का सुपात्र नहीं समझती। प्रेमिल अनुभूतियों मेंआकंठ निमग्न मन की करुण कथा के लिए हार्दिक शुभकामनाएं और प्यार 🙏🙏🌹🌹
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Deleteएक अनोखी सी रचना है यह मेरे लिए चूँकि मैं एक पुरुष हूँ अतः इसकी गहराई समझ भी सकता हूँ।
ReplyDeleteएक नारी की मनोभावना की गहनता और उसकी विवशता की यह दशा, सच में हृदयविदारक है।
वो महज एक शरीर नहीं, एक निर्मल मन भी है। महज नश्वर शरीर से प्रेम, प्रेम नहीं हो सकता।
आपकी यह रचना, नारी मन की कई दिशाओं व दशाओं का प्रतिनिधित्व कर रही है।
साधुवाद। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया श्वेता जी।
बहुत अच्छी रचना। कुछ सोचने, कुछ समझने और कुछ महसूस करने की ओर ले जाती।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (11-04-2021) को "आदमी के डसे का नही मन्त्र है" (चर्चा अंक-4033) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सत्य कहूँ तो हम चर्चाकार भी बहुत उदार होते हैं। उनकी पोस्ट का लिंक भी चर्चा में ले लेते हैं, जो कभी चर्चामंच पर झाँकने भी नहीं आते हैं। कमेंट करना तो बहुत दूर की बात है उनके लिए। लेकिन फिर भी उनके लिए तो धन्यवाद बनता ही है निस्वार्थभाव से चर्चा मंच पर टिप्पी करते हैं।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 11 अप्रैल 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआज इस रचना में तुमने शायद हर नारी के मन की कभी न कभी उठने वाली पीड़ा को रेखांकित कर दिया है ।
ReplyDeleteमूक निमंत्रण में भी नारी ही लज्जा का भान कर सकती है और पुरुष द्वारा अनदेखा कर देना जैसे उसके अस्तित्व को ही नकार देना ।
पुरुष केवल अपने मन की सुनता है , नारी हृदय की थाह नही पाता , क्यों कि नारी की भाषा तो केवल उसके नैन हैं या उसका मन है या फिर आत्मीयता है , । अंतिम पंक्तियाँ प्रेम की पराकाष्ठा प्रदर्शित कर रही हैं ----
अपनी अपात्रता पर ख़ुद ही खीझती हूँ
तुम्हारे अबोलेपन पर भी रीझती हूँ
तुम्हारे एहसास में अकेली ही भींजती हूँ
जब तुम्हारा मन नहीं होता...।
इस कविता पर क्या न न्योछावर कर दूँ ? अनंत शुभकामनाएँ , यूँ ही लिखती रहो रचना संसार ।
नारी मन की नम संवेदनाओं को बहुत ही सुंदर तरीक़े से रच दी आपने। हर पंक्तियाँ भीगों रही।
ReplyDeleteबधाई।
नारी ही नहीं बल्कि सृष्टि, प्रकृति, धरती सबकी कथा को स्वर दे दिया है । अनकहा स्वर जो हृदयस्पर्शी है ।
ReplyDeleteऔर हाँ ! चोट पर आपने जो कहा, मेरी भी आँखे नम हो आईं । पर शब्द खो गये ।
हर स्त्री के मन की व्यथा बखूबी बया कर दी आपने
ReplyDeleteपढ़ कर मेरी आंख भर आई सच हम स्त्रियाँ कितनी भावुक हो जाती हैं पर पुरुष मन समझने की कोशिश भी नहीं करता है
बहुत सुंदर भावों की अविरल अभिव्यक्ति,प्रिय श्वेता जी शायद ही कोई स्त्री हो जो इस अकथनीय वेदना से न गुजरी हो, हां कहने में कुछ गुरेज हो सकता है,पर ये है अटूट सत्य है,जिसे आपकी लेखनी ने बखूबी बयान कर दिया,सुंदर सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं एवम नमन ।
ReplyDeleteमन के उस कोमल भावनाओं को बेहद सुंदर ढंग से बयान किया है, बहुत खूब
ReplyDeleteप्रेम के वास्तविक सच को व्यक्त करती
ReplyDeleteकमाल की रचना
बहुत बधाई
A good informative post that you have shared and thankful your work for sharing the information. I appreciate your efforts. this is a really awesome and i hope in future you will share information like this with us. Please read mine as well. truth of life quotes
ReplyDeleteबेहतरीन रचना सखी
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत रचना, सच को उजागर करती हुई, सादर नमन हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteमेरी आत्मीयता के विस्तार पर
ReplyDeleteतुम झट से खींच देते हो लक्ष्मण रेखा
मेरे सारे प्रश्नों को विकल,
अनुत्तरित छोड़ चले जाते हो
जब तुम्हारा मन नहीं होता...।
वाह!!!
हर स्त्री मन के अनकहे से भावों को शब्द दिये हैं आपने...मन मर्जी का मालिक पुरुष जहाँ प्रथम आसक्ति में हमेशा अग्रणी रहता है वहीं प्रेम सफर में अपने ही प्रेम को ऐसा तिरस्कृत करता है कि प्रेम स्वयं को अपात्र मानने लगे...।
स्त्री मन की वेदना को बखूबी उजागर करती उत्कृष्ट रचना।
नारी-मन की गहन वेदना. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई.
ReplyDeleteमन के भावों की सशक्त अभिव्यक्ति। बधाई।
ReplyDeleteअनुत्तरित प्रेम की सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआज वो सभी स्त्रियाँ आपकी लेखनी को आभार व्यक्त करती होंगी जिनकी मानसिक व्यथा-कथा को आपने शब्द प्रदान कर दिए। शुभकामनाओं संग हार्दिक आभार प्रेषित करती हूँ आपकी लेखनी को जो पीड़ा को लिखना जानती है,जो जन-जन तक उन चीख़ों को पहुँचाती जिसकी आवाज़ कहीं गुम हो गई हो।
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