शरद में
अनगिनत फूलों का रंग निचोड़कर
बदन पर नरम शॉल की तरह लपेटकर
ओस में भीगी भोर की
नशीली धूप सेकती वसुधा,
अपने तन पर फूटी
तीसी की नाजुक नीले फूल पर बैठने की
कोशिश करती तितलियों को
देख-देखकर गुनगुनाते
भँवरों की मस्ती पर
बलाएँ उतारती है...
खेतों की पगडंडियों पर
अधखिले तिल के गुलाबी फूलों को
हथेलियों में भरकर
पुचकारती बासंती हवाओं की
गंध से लटपटाई वसुधा
सोचती है....
इन फूलों और
गेहूँ की हरी बालियों की
जुगलबंदी बता रही है
खेतों में शरद ने खिलखिलाहट
बो दिए हैं
अबकी बरस
गेहूँ के साथ फूल भी खिलखिलायेंगे
तुम सुन रहे हो न
आने वाले समय का आलाप
उम्मीद का यह गीत
कितना मीठा है न..।
-श्वेता सिन्हा
१६दिसंबर २०२१
इन फूलों और
ReplyDeleteधान की हरी बालियों की
जुगलबंदी बता रही है
खेतों में शरद ने खिलखिलाहट
बो दिए हैं
अबकी बरस
धान के साथ फूल भी खिलखिलायेंगे/
तुम सुन रहो न/आने वाले समय का आलाप/
उम्मीद का यह गीत/कितना मीठा है न...।////
बहुत सुंदर प्रिय श्वेता। ये मौसम इतना शानदार है कि कवियों की कल्पना सरपट दौड़ने लगती है। गेहूं कीबालियों के साथ फूलों की जुगलबंदी अभिनव कल्पना है। ढेरों बधाइयां और प्यार इस मोहक सृजन के लिए ❤️❤️🌷🌷
आपका स्नेह पाना शरद की नरम धूप सा एहसास है दी।
Deleteआपकी उत्साहवर्धक सराहना के लिए
बहुत आभारी हूँ दी।
सस्नेह शुक्रिया।
वाक़ई, मीठा है उम्मीदों का यह गीत! यूँ ही गाते रहें!!!
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१८-१२ -२०२१) को
'नवजागरण'(चर्चा अंक-४२८२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
शरद का भी अपना एक अलग ही सौन्दर्य होता है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
गर शरद में ही खिलखिला गए सारे फूल तो बसन्त का क्या होगा ।
ReplyDeleteप्रकृति के सौंदर्य को शब्दों में क्या खूब बाँधा है । अभी तक नशीली धूप का एहसास हो रहा है ।
मंत्रमुग्ध कर देने वाला सृजन ।
सुन्दर
ReplyDeleteशरद की प्राकृति का अनूठा रूप होता है ... इसी को जीवन कहते हैं ...
ReplyDeleteइसी रूप को बाखूबी शब्दों में बाँधा है ...
अबकी बरस
ReplyDeleteगेहूँ के साथ फूल भी खिलखिलायेंगे
तुम सुन रहे हो न
आने वाले समय का आलाप
उम्मीद का यह गीत
कितना मीठा है न..।बेहद खूबसूरत रचना श्वेता जी।
क्या तारीफ करूँ मैं इस सृजन की
ReplyDeleteजो तारीफ कर रहा प्रकृति की!
उसके खूबसूरत शब्दों के आगे मेरे शब्द फीके से लगते हैं!
जिसमें पहले से ही चार चांद लगे हो उसमें तारीफ करके चार चांद लगाना नहीं आता मुझे!
निशब्द....!🙏🙏🙏
नशीली धूप सेकती वसुधा,
ReplyDeleteअपने तन पर फूटी
तीसी की नाजुक नीले फूल पर बैठने की
कोशिश करती तितलियों को
देख-देखकर गुनगुनाते
भँवरों की मस्ती पर
बलाएँ उतारती है...
वाकई बहुत ही मीठा..
निशब्द करती अद्भुत व्यंजनाएं... बहुत ही मनमोहन एवं लाजवाब सृजन
वाह!!!
प्रकृति का बहुत ही मनमोहक सृजन, प्रिय श्वेता दी।
ReplyDeleteअबकी बरस
ReplyDeleteगेहूँ के साथ फूल भी खिलखिलायेंगे
तुम सुन रहे हो न
आने वाले समय का आलाप
उम्मीद का यह गीत
कितना मीठा है न..। वाह, सुंदर छायाचित्र जैसी रचना ।