आहट तुम्हारी एहसास दिलाती है,
मेरी साँसों में बचा है प्रेम अब भी...।
काँपती स्मृतियों में स्थिर तस्वीर
भीड़ में तन्हाई की गहरी लकीर,
हार जाती भावनाओं के दंगल में
दूर तक फैले सन्नाटों के जंगल में,
पुकार तुम्हारी गुदगुदाकर कहती है,
मेरी साँसों में बचा है प्रेम अब भी...।
बींध गया झटके से उपेक्षा का तीर
राग-मोह छूटा, बना मन फ़कीर,
बौराई फिरती हूँ ज्ञान वेधशाला में
तुलसी की माला में ध्यान की शाला में,
आँखें तुम्हारी मुस्कुराकर बताती है
मेरी साँसों में बचा है प्रेम अब भी...।
धुँधलाई आँखें, पथराये से कान
मुरझाऐ उमस भरे सूने दालान,
प्रतीक्षा की सीढ़ी पे सोयी थककर
तारों के पैताने चाँद पे सर रखकर,
स्पर्श तुम्हारा, दुलराती जताती हैं
मेरी साँसों में बचा है प्रेम अब भी...।
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- श्वेता सिन्हा
१७ जुलाई २०२२
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सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteजी सर,प्रणाम।
Deleteसादर।
आपकी लिखी रचना सोमवार 18 जुलाई 2022 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteसांस है तो प्रेम है, प्रेम है तो सांस है,
ReplyDeleteतभी तक प्यार है, जबतक जिंदा आस है।
बहुत ही प्यारा और सम्मोहक सृजन! प्रेम की रोशनाई बहती रहे।
प्रेम रहना ही चाहिए। बहुत सुंदर भावनात्मक प्रस्तुति।
ReplyDeleteदिल को छूती बहुत सुंदर रचना, स्वेता दी।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी सृजन ।
ReplyDeleteप्रेम का बचा होना ज़िंदगी के बचे होने का द्योतक है। प्रेम का बचा होना शुभ ही है।
ReplyDeleteप्रेम इन्सान की जिन्दगी की संजीवनी शक्ति है।इसका बचा होना एक सकारात्मक पहलू है जीवन यात्रा का।प्रेम ही तो उदास तन्हाई में रंग भरता है।नारी मन की भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय श्वेता।हार्दिक शुभकामनाएं 🌺🌺🌹🌹
ReplyDeleteभावना ही जीवन्त होने का प्रमाण है.
ReplyDeleteबींध गया झटके से उपेक्षा का तीर
ReplyDeleteराग-मोह छूटा, बना मन फ़कीर,
उपेक्षा अगर प्रेम से मिले गहरी टीस और असहनीय पीड़ा का दर्द कम करने ज्ञान का सहारा लेना मन को ध्यान में लीन कर वैरागी सा हो जाना ...एक प्रेम की उपेक्षा सभी मोह से दूर ले जाती
उसी प्रेम से प्रेम की हल्की सी आशा वापस जीवनमें जान भर देती है...
क्या बात...अनकहे एहसासों को शब्दों में ढ़ालना आसान नहीं होता
कमाल का सृजन
लाजवाब ।
यह प्रेम बचा रहे तभी जिंदगी है।
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी सृजन
ReplyDeleteप्रेम जीवन होता,जो जीवन को गति प्रदान करने के लिए बहुत ज़रूरी है ।बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteसूर्य की पहली किरण सी, थोड़ी सी आशा भी जीवन उजागृत कर देती है!! बहुमूल्य सृजन❤
ReplyDeleteबींध गया झटके से उपेक्षा का तीर
ReplyDeleteराग-मोह छूटा, बना मन फ़कीर,
बौराई फिरती हूँ ज्ञान वेधशाला में
तुलसी की माला में ध्यान की शाला में,
आँखें तुम्हारी मुस्कुराकर बताती है
मेरी साँसों में बचा है प्रेम अब भी...।
..प्रेम, आशा और विश्वास का गहनतम भाव..बहुत सुंदर रचना ।
वेदना के साथ सुंदर एहसास समेटे मर्म छूता सृजन।
ReplyDeleteकहीं एक रोशनी दिख जाती है वापसी के लिए।
अप्रतिम!
बेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteप्रेम शाश्वत है, कभी ढक भले जाता हो मिटता कभी नहीं
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