आओ मेरे प्रिय साथियों
कुछ हरी स्मृतियाँ संजोये,
बिखरे हैं जो बेशकीमती रत्न
बेमोल पत्थरों की तरह
उन्हें चुनकर सजायें,
कुछ कलात्मक कलाकृतियाँ बनायें
,तुम्हारे साथ है धैर्य और सहनशीलता
विपरीत परिस्थितियों में जुझारूपन से
तुम्हें सींचना हैं बंजर -सी हो रही धरती पर
विरासत में बोयी गयी बीजों को
उगाने है काँटों में भी नीले,पीले फूल
निरंतर तुम्हारे मूक प्रयास के हल चल रहे हैं
अनाम खेतों की माटी कोड़ते रहो
रेहन में रखे लहलहाते सपनों के लिए
मुट्ठीभर चावल जुटाने का प्रयास करते रहो
एक दिन तुम्हारे पवित्र स्वेद की
अनोखी गंध से भींगे
प्रेम के कभी न मुरझाने वाले फूल
क्यारियों में खिलेंगे
तृप्त कर दे जो ज्ञान की क्षुधा
रस भरे अनाजों से भंडार भरेंगे
घेर लो अपनी हथेलियों से
लगातार काँपती हवाओं में
फड़फड़ा रही लौ को
फिर तो कभी न बुझने वाले
सद्भावना के दीप जलेंगे
जिसके कोमल प्रकाश
आने वाली पीढ़ियों के लिए
पथप्रदर्शक बनेंगें।
कुछ हरी स्मृतियाँ संजोये,
बिखरे हैं जो बेशकीमती रत्न
बेमोल पत्थरों की तरह
उन्हें चुनकर सजायें,
कुछ कलात्मक कलाकृतियाँ बनायें
,तुम्हारे साथ है धैर्य और सहनशीलता
विपरीत परिस्थितियों में जुझारूपन से
तुम्हें सींचना हैं बंजर -सी हो रही धरती पर
विरासत में बोयी गयी बीजों को
उगाने है काँटों में भी नीले,पीले फूल
निरंतर तुम्हारे मूक प्रयास के हल चल रहे हैं
अनाम खेतों की माटी कोड़ते रहो
रेहन में रखे लहलहाते सपनों के लिए
मुट्ठीभर चावल जुटाने का प्रयास करते रहो
एक दिन तुम्हारे पवित्र स्वेद की
अनोखी गंध से भींगे
प्रेम के कभी न मुरझाने वाले फूल
क्यारियों में खिलेंगे
तृप्त कर दे जो ज्ञान की क्षुधा
रस भरे अनाजों से भंडार भरेंगे
घेर लो अपनी हथेलियों से
लगातार काँपती हवाओं में
फड़फड़ा रही लौ को
फिर तो कभी न बुझने वाले
सद्भावना के दीप जलेंगे
जिसके कोमल प्रकाश
आने वाली पीढ़ियों के लिए
पथप्रदर्शक बनेंगें।
#श्वेता सिन्हा
-----–----
आमीन
ReplyDeleteअप्रतिम..
ReplyDeleteघेर लो अपनी हथेलियों से
लगातार काँपती हवाओं में
फड़फड़ा रही लौ को
फिर तो कभी न बुझने वाले
सद्भावना के दीप जलेंगे
सादर...
बस इतना ही तो करना है कि मन और प्रकृति का संरक्षण हो सके ।
ReplyDeleteअद्भुत , अनुपम और अलौकिक आह्वान ।
प्रेम के कभी न मुरझाने वाले फूल
ReplyDeleteक्यारियों में खिलेंगे... बहुत ही सुंदर बिम्ब।
प्रार्थना के सुमन यों ही खिलते रहें।
बहुत सुंदर सृजन।
सादर स्नेह
एक दिन तुम्हारे पवित्र स्वेद की
ReplyDeleteअनोखी गंध से भींगे
प्रेम के कभी न मुरझाने वाले फूल
क्यारियों में खिलेंगे
सकारात्मकता से ओतप्रोत बहुत ही सुंदर प्रेरक सृजन।
वाह!!!
आशा और विश्वास की फसल उगातीं सुंदर पंक्तियाँ
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रेरक रचना
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteसमय की पुकार है प्रकृति को बचायें
ReplyDeleteसुन्दर आह्वान प्रिय श्वेता।सद्भानओं और प्रेम के कभी ना मुरझाने वाले फूल आज के स्नेह से रिक्त हो रहे परिवेश की सबसे बड़ी जरुरत है। सद्भावना के दीपों का कोमल प्रकाश भावी पीढियों कर लिये अनुपम उपहार है एक सकारात्मक संदेश देती रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं।
ReplyDeleteआशा और विश्वास के साथ सकारात्मक भावों को पोषित करती बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteआज के समय में प्रेरक और सार्थक सन्देश युक्त उत्कृष्ट रचना । बहुत बधाई सखी ।
ReplyDeleteआज की मेरी ब्लॉग पोस्ट आपकी सुंदर प्रेरक रचना को समर्पित है सादर...
खामोशी से कर्तव्यों
को करते देखा है ।
जलते अंगारों पे
चलकर बनती रेखा है ॥
जो रेखाएँ गर्म लहू से
अंगारों पे लिखी गईं ।
आँसू के छीटों संग
अम्बर छूते देखा है ॥
बूँद स्वेद की कतरा-कतरा
रिस-रिस भू तक पहुँच गईं ।
धरती से कर द्वन्द
कोपलें बनते देखा है ॥
रगड़-रगड़ घिस-घिस
पत्थर से निकले चिंगारी
धूल सनी काया से
धुआँ निकलते देखा है ॥
कहें ब्रह्म की ज्योति
वहीं पर जले सदा अविरत
तिमिर चीरकर स्वयं तिमिर
घृत बनते देखा है ॥
**जिज्ञासा सिंह**
सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteप्रेम के कभी न मुरझाने वाले फूल
ReplyDeleteक्यारियों में खिलेंगे
तृप्त कर दे जो ज्ञान की क्षुधा
रस भरे अनाजों से भंडार भरेंगे
बहुत सुंदर
काश कि ऐसा हो। पर हक़ीक़त की दुनिया बहुत अलग और निष्ठुर है।
ReplyDeleteसकारात्मकता से परिपूर्ण बहुत सुंदर रचना, स्वेता दी। काश, ऐसा ही हो।
ReplyDelete