सिलवट भरे पन्नों पर जो गीली-सी लिखावट है,
मन की स्याही से टपकते, ज़ज़्बात की मिलावट है।
पलकें टाँक रखी हैं तुमने भी तो,देहरी पर,
ख़ामोशियों की आँच पर,चटखती छटपटाहट है ।
लाख़ करो दिखावा हमसे बेज़ार हो जीने का,
नाराज़गी के मुखौटे में छुप नहीं पाती सुगबुगाहट है।
मेरी नादानियों पर यूँ सज़ा देकर हो परेशां तुम भी
सुनो न पिघल जाओ तुम पर जँचती मुस्कुराहट है।
-श्वेता सिन्हा
वाह! बहुत सुंदर!!!
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ReplyDeleteमेरी नादानियों पर यूँ सज़ा देकर हो परेशां तुम भी
सुनो न, पिघल जाओ तुम पर जँचती मुस्कुराहट है।
हाय ! इस मासूमियत पर कौन ना मर जाए ऐ खुदा!!
मेरी रचना पर आपकी टिप्पणी स्पैम में भी नहीं मिली। गूगलेश्वर महाराज खा गए शायद।
ReplyDeleteसुंदर।
ReplyDeleteनाराज़ भी होते हैं और खुद परेशां भी होते हैं ।
ReplyDeleteज़ज़्बातों को लपेट हम ज़ार ज़ार रोते हैं
ये तहतीर जो लिखी है अश्कों की स्याही से
देखो न बस हम तेरी इक मुस्कान को तरसते हैं ।
कुछ ऐसा से लगा पढ़ कर ......लाजवाब 👌👌👌👌
पलकें टाँक रखी हैं तुमने भी तो,देहरी पर,
ReplyDeleteख़ामोशियों की आँच पर,चटखती छटपटाहट है ।
वाह!!!
मेरी नादानियों पर यूँ सज़ा देकर हो परेशां तुम भी
ReplyDeleteसुनो न पिघल जाओ तुम पर जँचती मुस्कुराहट है।
तुम्हारी मुस्कराहट देखने की आरजू दिल को....
बहुत ही लाजवाब सृजन।
बेहतरीन रचना।
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ReplyDeleteजी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२०-०५-२०२२ ) को
'कुछ अनकहा सा'(चर्चा अंक-४४३६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
एक एक शब्द एक से बढ़कर एक।
ReplyDeleteवाह! बहुत ही बेहतरीन।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर श्वेता !
ReplyDeleteमान-मनौअल का, अपना आनंद है. एक पुराना नग्मा याद आ रहा है -
'तुम रूठी रहो, मैं मनाता रहूँ, मज़ा जीने का और भी आता है ---'
प्रेम में पड़े रहना और प्रेम में जीने की कला सिखाती
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत रचना
कमाल का सृजन
बधाई
वाह!श्वेता ,अद्भुत!!
ReplyDeleteतुम्हारी मुस्कराहट देखने की आरजू दिल को....
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब सृजन
शानदार भावों को अस्आर में पिरोया है आपने प्रिय श्वेता।
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन।
मन की स्याही से टपके ज़ज़्बात लाजवाब।
लाख छुपाओ, छुप न सकेगा, राज़ ये दिल का गहरा !!☺️☺️
ReplyDeleteसुंदर रचना।
मेरी नादानियों पर यूँ सज़ा देकर हो परेशां तुम भी
ReplyDeleteसुनो न पिघल जाओ तुम पर जँचती मुस्कुराहट है।
...वाह बहुत बढ़िया, नजाकत नफासत भरी रचना ।
प्रेम के हजार फूलों को निचोड़कर लाई गई इत्र सी है ये मुस्कुराहट... उठी खुश्बू के लिए अब क्या कहना.....
ReplyDeleteवाह मुझे तो प्रेम हो गया
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteकोमल भावों से सजी मधुर सरस कृति ।
ReplyDeleteवाह क्या खूब लिखा है, काश मैं भी ऐसा कुछ लिख पाती🌹
ReplyDeleteवाह! अंतिम शेर सबसे प्यारा है!
ReplyDeleteसुंदर।
ReplyDeleteसिलवट भरे पन्नों पर जो गीली-सी लिखावट है,
ReplyDeleteमन की स्याही से टपकते, ज़ज़्बात की मिलावट है।///
रूहानी एहसासों की सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय श्वेता।अच्छा लगा पढ़कर
अंतिम पंक्ति सबसे मधुर लगी! बहुत सुंदर कविता
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