Thursday, 20 July 2023

धिक्कार है....


धिक्कार है ऐसी मर्दांनगी पर
घृणित कृत्य ऐसी दीवानगी पर।
भीड़ से घिरी निर्वस्त्र स्त्री,
स्तब्ध है अमानुषिक दरिंदगी पर ।

गौरवशाली देश हमारा
झूठ यह हर दिन दोहराता है।
नारी जननी पूजनीय देवी,
कह-कहकर बरगलाता है।
झूठे प्रलाप सभी छद्म सेवी , 
स्त्रियों का अस्तित्व रौंदा जाता है।
भीड़ से घिरी निर्वस्त्र स्त्री
क्यों हैरान नहीं कोई हैवानगी पर?

बेटियों की अस्मिता सुरक्षित!
चहुँओर, भ्रमित जुमलों का शोर है। 
स्वच्छंद बहेलिए प्रशिक्षित ,
धर्म जाति में बँटे, लोग आदमखोर हैं।
क्रांतिकारी,ओजस्वी भाषणवीर
जिनकी झोली में विषबुझे तुणीर,
भीड़  से घिरी निर्वस्त्र स्त्री
क्यों मौन हैं सारे, बेपर्दगी पर?

व्यथित, दुखी और अपमानित
माँ भारती आँसुओं से सराबोर है।
अहिल्या,सीता,द्रौपदी या सुनीता
 क्या बदला नारी के लिए दौर है ? 
बेचैनियों की गिरह कौन खोले?
नपुंसकों की सभा है किससे बोले?
भीड़ से घिरी निर्वस्त्र स्त्री
अकर्मण्यता क्यों?कैसी लाचारगी है?

-श्वेता


9 comments:

  1. धिक्कारना जरूरी है | सजा भी जरूरी है | किसे मिलनी चाहिये और कौन देगा? शर्मनाक घटना |

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  2. मानवता को शर्मसार करने वाली बेहद निंदनीय घटना

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  3. आशा है कि आपका प्रश्न - 'क्यों मौन हैं सारे' हमारे मूकबधिर सदृश ब्लॉगर भाईबहनों के कानों तक अवश्य पहुँचेगा। अच्छी बात यह है कि सर्वोच्च न्यायालय ने इस जघन्य परिघटना का तथा मणिपुर की समग्र दुरवस्था का संज्ञान ले लिया है। बुरी बात यह है कि समाज की संवेदनशून्यता अब भी विद्यमान है।

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  4. धिक्कार है ऐसी मर्दांनगी पर
    घृणित कृत्य ऐसी दीवानगी पर,
    भीड़ से घिरी निर्वस्त्र स्त्री
    स्तब्ध है अमानुषिक दरिंदगी पर। //
    हैरानी और परेशानी से कहीं ज्यादा है भुगतभोगी स्त्रियों का दर्द।नर पिशाचों के हाथों नुचती स्त्री देह और मौन भीड तंत्र! लानत है उन आँखों पर जो ये दृश्य देख कर झुकी नहीं और धिक्कार है उन बाहों पर जो भीड़ से नोची जा रही इन निरीह औरतों की रक्षा ना कर पाई। बहुत दर्द है रचना में प्रिय श्वेता।😔😔

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  5. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (23-07-2023) को    "आशाओं के द्वार"  (चर्चा अंक-4673)   पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  6. निर्लज्ज हैवानियत पर हुंकारती और इंसानियत के रूहों के रोम रोम को जगाती सशक्त रचना। कलम आग उगलती रहे।

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  7. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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  8. शर्मनाक है ये कृत्य .... इंसानियत मर गई है, काश समाज में परिवर्तन की बयार आए ... संवेदनाएं जागें ...

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  9. गौरवशाली देश हमारा
    झूठ यह हर दिन दोहराता है।
    नारी जननी पूजनीय देवी,
    कह-कहकर बरगलाता है।
    झूठे प्रलाप सभी छद्म सेवी ,
    स्त्रियों का अस्तित्व रौंदा जाता है।
    भीड़ से घिरी निर्वस्त्र स्त्री
    क्यों हैरान नहीं कोई हैवानगी पर?
    अन्तर्आत्मा को कटोचती इस मार्मिक एवं घृणित घटना पर संवेदनशून्यता को धिक्कारती एवं सशक्त रचना।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

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