हिंदी,अंग्रेजी, उर्दू,बंग्ला, उड़िया,मराठी
भोजपुरी, मलयाली, तमिल,गुजराती
आदि,इत्यादि ज्ञात,अज्ञात
लिखने वालों की अनगिनत है जमात
कविता,लेख ,कथा,पटकथा,नाटक
विविध विधा के रचनात्मक वाचक
सोचती हूँ अक़्सर
लिखने वालों के लिए भाषा है अनमोल
या पूँजी है आत्मा के स्वर का संपूर्ण कलोल?
वर्तमान परिदृश्य में...
चमकदार प्रदर्शन की होड़ में
बाज़ारवाद के भौड़े शोर में
सिक्कों के भार से दबी लेखनी,
आत्मा का बोझ उठाए कौन?
बेड़ियाँ हैं सत्य, उतार फेंकनी,
दुकान-दुकान घूमकर
लेखन बेचना रद्दी के भाव
जूतों की तल्ली घिसने तक
हड्डियों के भीड़ में पीसने तक
भोजपुरी, मलयाली, तमिल,गुजराती
आदि,इत्यादि ज्ञात,अज्ञात
लिखने वालों की अनगिनत है जमात
कविता,लेख ,कथा,पटकथा,नाटक
विविध विधा के रचनात्मक वाचक
सोचती हूँ अक़्सर
लिखने वालों के लिए भाषा है अनमोल
या पूँजी है आत्मा के स्वर का संपूर्ण कलोल?
वर्तमान परिदृश्य में...
चमकदार प्रदर्शन की होड़ में
बाज़ारवाद के भौड़े शोर में
सिक्कों के भार से दबी लेखनी,
आत्मा का बोझ उठाए कौन?
बेड़ियाँ हैं सत्य, उतार फेंकनी,
दुकान-दुकान घूमकर
लेखन बेचना रद्दी के भाव
जूतों की तल्ली घिसने तक
हड्डियों के भीड़ में पीसने तक
आसान नहीं
शायद सबसे आसान है
अपनी आत्मा को रखना गिरवी
क्योंकि
स्वार्थी,लोलुप अजब-गजब किरदार
आत्मविहीन स्याही के व्यापारी, ख़रीददार
शायद सबसे आसान है
अपनी आत्मा को रखना गिरवी
क्योंकि
स्वार्थी,लोलुप अजब-गजब किरदार
आत्मविहीन स्याही के व्यापारी, ख़रीददार
चाहते हैं रखना बंधक, बुद्धि छाँट
छल,बल से जुटाते रहते हैं चारण और भाट
बिचौलिए बरगलाते हैं मर्म
कठपुतली है जिनके हाथों की
सत्ता और धर्म...।
बिचौलिए बरगलाते हैं मर्म
कठपुतली है जिनके हाथों की
सत्ता और धर्म...।
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#श्वेता
सटीक |
ReplyDeleteबहुत आभारी हूँ सर,बहुत दिनों बाद आपका आशीष मिला।
Deleteप्रणाम
सादर।
:) बीच में ३ वर्ष बाबूगिरी के काम में लगा दिया गया था | पढाई लिखाई सब छूट गयी | अब लौट के बुद्धू घर वापस आ गए हैं | कोशिश कर रहा हूँ लय में आने की |
Deleteआज लोग समाज को जगाने के लिए कम धन कमाने के लिए ज्यादा लिखते हैं -- भूल जाते हैं कि जहाँ आस्था होती है वहाँ कुतर्क नहीं चलता । पाँच लिंकों के आनंद की आज की भूमिका पर ---
ReplyDeleteआज कल
आत्मा गिरवी है
लिखने वालों की
बस वही लिखते हैं
स्वान्तः सुखाय
जिनको नहीं जानता ज़माना
ज़रा सा नाम होते ही
भाषा भी भूल जाते हैं
आज का लेखक
प्रभावित हो रहा है
स्वयं लोगों की भाषा से
और न्यायसंगत भी बताता है
इसे अपने कुतर्क से ।
कुछ हैं लिखने वाले जो
मानते हैं कि मूल्यों को
करना है स्थापित
तो कविता तुमको जीना होगा ।
हर एक को
करना होगा
खुद से संवाद
आत्म मंथन से निकलेगी
मन की बात
हमे करना है उलटबांस
सरकार के हाथ से
लेनी होगी तलवार
हर बात का मात्र विरोध
देश को नहीं सकता संवार ।
मरुस्थल सरीखी आंखों को
पढ़ते हुए
ज़रूरत नहीं होती संपादन की
आज इसी लिए
नहीं बचे हैं संपादक भी ।
पढ़ते गुनते
आज की ये प्रस्तुति
लगी बेमिसाल
भूमिका में कर दिया है
तुमने कमाल ।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसुंदर रचना।
ReplyDeleteलिखने वालों के लिए भाषा है अनमोल
ReplyDeleteया पूँजी है आत्मा के स्वर का संपूर्ण कलोल?
सिक्कों के भार से दबी लेखनी,
आत्मा का बोझ उठाए कौन?
बहुत सटीक एवं चिंतनीय...
सत्ता और धर्म कठपुतली हैं जिनके हाथ की उनके लिए क्या कहना...?
बहुत ही सार्थक एवं सारगर्भित।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" बुधवार 28 जून 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा धन्यवाद!
ReplyDeleteअत्यंत प्रभावशाली लेखन, भीतर भाव न हों तो भाषा क्या कर लेगी, दिल की गहराई से निकले शब्द ही कालजयी होते हैं
ReplyDeleteकटु सत्य
ReplyDeleteस्वार्थी,लोलुप अजब-गजब किरदार
ReplyDeleteआत्मविहीन स्याही के व्यापारी, ख़रीददार
चाहते हैं रखना बंधक, बुद्धि छाँट
छल,बल से जुटाते रहते हैं चारण और भाट
बिचौलिए बरगलाते हैं मर्म
कठपुतली है जिनके हाथों की
सत्ता और धर्म...।///
प्रिय श्चेता,लेखन किस कारण अधोगति को प्राप्त हुआ ये नितांत चिंतन परक विषय है।बिकने वाले लेखकों की कमी नहीं पर मुझे लगता है कि सत्ता और धर्म जैसे भारी-भरकम उपक्रमों को चारण कवि शायद अपने हाथों की कठपुतली बनाने में सक्षम ना हों पर सत्ता और धर्म जरुर इन्हें खरीद कर अपने हाथों की कठपुतली जरुर बना सकते हैं।बहुत ही गहनता से विश्लेषण किया है तुमने एक सम सामयिक विषय का।बधाई और शुभकामनाएं !
सटीक और सार्थक चिंतन ...
ReplyDeleteजीवन में जरूरी है ऐसा चिंतन ... दिशा ऐसे ही तय होगी ...
सामाजिक विद्रूपताओं पर गहरी वैचारिक नजर के उपरांत गहन गूढ़ अवलोकन। गहन चिंतन और विवेक की परिचायक है आपकी ये रचना।
ReplyDeleteसुंदर रचना
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