धर्म को पुष्ट करने हेतु
आस्था की अधिकता से
सुदृढ हो जाती है
कट्टरता ....
संक्रमित विचारों की बौछारों से
से सूख जाता है दर्शन
संकुचित मन की परतों से
टकराकर निष्क्रिय हो जाते है
तर्कों के तीर
रक्त के छींटो से मुरझा जाते हैं
सौंदर्य के फूल
काल्पनिक दृष्टांतों के बोझ तले
टूट जाती है प्रमाणिकता
जीवन की स्वाभाविक गतिशीलता
को लीलती है जब कट्टरता
तब...
कोई भी गणितीय सूत्र या मंत्र
नहीं जोड़ पाती है
मानवता की साँस
नैतिकताओं को वध होते देखते
प्रत्यक्षदर्शी हम
घोंघा बने स्वयं के खोल में सिमटे
मौन रहकर
जाने-अनजाने, न चाहते हुए भी
निर्लज्ज धर्मांधों का अनुचर बनकर
मनुष्यता के भ्रूण को
चुन-चुनकर मारती भीड़ का
का हिस्सा होकर
स्वयं को निर्दोष बताते हैं...।
आस्था की अधिकता से
सुदृढ हो जाती है
कट्टरता ....
संक्रमित विचारों की बौछारों से
से सूख जाता है दर्शन
संकुचित मन की परतों से
टकराकर निष्क्रिय हो जाते है
तर्कों के तीर
रक्त के छींटो से मुरझा जाते हैं
सौंदर्य के फूल
काल्पनिक दृष्टांतों के बोझ तले
टूट जाती है प्रमाणिकता
जीवन की स्वाभाविक गतिशीलता
को लीलती है जब कट्टरता
तब...
कोई भी गणितीय सूत्र या मंत्र
नहीं जोड़ पाती है
मानवता की साँस
नैतिकताओं को वध होते देखते
प्रत्यक्षदर्शी हम
घोंघा बने स्वयं के खोल में सिमटे
मौन रहकर
जाने-अनजाने, न चाहते हुए भी
निर्लज्ज धर्मांधों का अनुचर बनकर
मनुष्यता के भ्रूण को
चुन-चुनकर मारती भीड़ का
का हिस्सा होकर
स्वयं को निर्दोष बताते हैं...।
#श्वेता
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 08 जून 2023 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
कट्टरता की भयावहता का सटीक चित्रण
ReplyDeleteसटीक रेखाचित्र
ReplyDeleteश्वेता, बात तो तुमने बड़े पते की कही है पर अगर यही कट्टरता अगर किसी को कुर्सी तक पहुंचाती है तो वो तुम्हारी बात क्यों समझना चाहेगा?
ReplyDeleteबहुत सटीक बात को सुंदर लेखिनी से प्रस्तुत किया है आपने ।
ReplyDeleteसुंदर काव्य सृजन
ReplyDeleteसुंदर काव्य सृजन
ReplyDeleteअच्छी कविता
ReplyDeleteक्या बात है प्रिय श्वेता! एक मर्मांतक सत्य की गहन पडताल करती रचना सोचने पर मजबूर करती है कि धर्म के मापदण्ड कैसे होने चाहिए।धर्म की स्थापना मानवता के कल्याण के लिए हुई होगी पर कुछ कट्टरपंथियों ने इसकी परिभाषा बदल कर इसे कुछ और ही बना दिया है।करुणा और प्रेम का संवाहक धर्म यदा -कदा निर्दोष और अभागे लोगों पर भारी पड़ जाता है जब कुछ लोग इससे निजी स्वार्थ साधने का प्रयास करते हैं।और भीड़ का कोई चेहरा नहीं होताऔर उसके हाथों हुये शिकार की गति कल्पना से परे होती हैं।
ReplyDeleteकोई भी गणितीय सूत्र या मंत्र
ReplyDeleteनहीं जोड़ पाती है
मानवता की साँस
चिंतनपूर्ण स्थिति का गहन विश्लेषण करती अत्युतकृष्ट रचना। देर से आने के लिए क्षमाप्रार्थी हूं।