तितलियों के टापू पर
मेहमान बन कर जाना चाहती हूँ
चाहती हूँ पूछना उनसे-
बेफ्रिक्र झूमती पत्तियों को
चिकोटी काटकर,
खिले-अधखुले फूलों के
चटकीले रंग चाटकर
बताओ न गीत कौन-सा
गुनगुनाती हो तितलियाँ?
चाँद के आने से पहले
सूरज के ठहरने तक
चिड़ियों की पुकार पर
ऋतुओं के बदलने तक
बागों में क्या-क्या गुज़रा
क्यों नहीं बताती हो तितलियाँ?
मेहमान बन कर जाना चाहती हूँ
चाहती हूँ पूछना उनसे-
बेफ्रिक्र झूमती पत्तियों को
चिकोटी काटकर,
खिले-अधखुले फूलों के
चटकीले रंग चाटकर
बताओ न गीत कौन-सा
गुनगुनाती हो तितलियाँ?
चाँद के आने से पहले
सूरज के ठहरने तक
चिड़ियों की पुकार पर
ऋतुओं के बदलने तक
बागों में क्या-क्या गुज़रा
क्यों नहीं बताती हो तितलियाँ?
प्रेम में डूबी,खुशबू में खोयी
कल्पनाओं के फेरे लगाती
स्वप्नों के टूटने से फड़फड़ाकर
व्यथाओं से सरगम सजाती
क्या तुम भी भावनाओं से बेकल
प्रार्थना मुक्ति की दोहराती हो तितलियाँ?
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-श्वेता
२२ जनवरी २०२३
२२ जनवरी २०२३
संवेदनशीलता की धारा पर बहती भावनाओं की नौका पर सवार हो कर तितलियों के टापू का सृजन .. किसी को भी उन का मेहमान नहीं .. वरन् उनके परिवार का सदस्य बन कर उस टापू का निवासी बनने के लिए मज़बूर कर देगा .. बस यूँ ही ...
ReplyDeleteपर .. एक विरोधाभास .. प्रेम में डूबी और भावनाओं से बेकल .. तितलियाँ हों या मानव, मुक्ति की प्रार्थना दोहराने की बात तो दूर .. एक बार भी मुक्ति की कामना नहीं कर सकते प्रेमसिक्त प्राणी .. उन्हें तो बन्धन ही प्रिय होते हैं .. शायद ...
तुतलाती नहीं तितलियां
ReplyDeleteहोकर प्रेम विकल सदैव
खिलखिलाती हैं तितलियां।.....सुंदर रचना!
आपकी लिखी रचना सोमवार 23 ,जनवरी 2023 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
प्रिय श्वेता,सबसे पहले तो इस विराट मौन को तोड़ने के लिए बहुत-बहुत आभार।तुम्हारी सुदक्ष लेखनी से सृजित इस रचना में जो मार्मिक भाव समाहित हैं वो मन को छू लेते हैं।तितलियाँ प्रतीक हैं उन्मुक्तता और उल्लास का। उनके भीतर भी पीड़ा हो सकती है,इस बात पर कदाचित विश्वास करने को जी नहीं चाहता। फिर भी तितलियों के संसार में एक कवि मन की घुसपैठ और उनसे सीधा संवाद बहुत रोचक और भाव-पूर्ण है। तितली की मस्ती और स्वछंदता को बाधित कर उसे व्यथित करने वाले तत्व कम नहीं।कभी ना कभी तो उसके विकल मन से अवश्य ही प्रार्थनाओं के स्वर फूट पड़ते होंगे पर शायद निर्मम संसार उसे सुनने में सक्षम नहीं।आखिर प्रेम से भरा हृदय मानव का हो या तितली का,दोनों में अंतर ही क्या है!!नववर्ष की पहली सुन्दर रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं और ब्लॉग पर दुबारा सक्रिय होने पर हार्दिक अभिनन्दन ❤❤
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteतितलियों का टापू और उनके साथ गुफ़्तगू…,अद्भुत .., बहुत सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteबेफ्रिक्र झूमती पत्तियों को
ReplyDeleteचिकोटी काटकर,
खिले-अधखुले फूलों के
चटकीले रंग चाटकर...
वाह!! बहुत सुंदर रचना।
तितलियों के बहाने जीवन से आँख मिलाती हुई सुंदर रचना!
ReplyDeleteप्रिय श्वेता,
ReplyDeleteतितलियों की टापू की अनूठी कल्पना....
मुझे तो हमेशा ही ऐसा लगता है कि ये किसी विशिष्ट देश से आई शापित परियाँ हैं। सब जानती हैं तितलियाँ..... बदलती ऋतुओं के रहस्य, कलियों की वेदना, फूलों का समर्पण.... शायद प्रकृति अपना हर राज इनसे साझा करती है। एक लंबे समय के बाद लिखा, अपनी चिर परिचित शैली की छाप मन पर गहरे छोड़ती है आपकी कविता। जैसे तितली को पकड़ने पर उसके रंग उँगलियों पर अपनी छाप छोड़ जाते। सस्नेह।
प्रेम में डूबी,खुशबू में खोयी
ReplyDeleteकल्पनाओं के फेरे लगाती
स्वप्नों के टूटने से फड़फड़ाकर
व्यथाओं से सरगम सजाती
क्या तुम भी भावनाओं से बेकल
प्रार्थना मुक्ति की दोहराती हो तितलियाँ?
इतने खूबसूरत कल्पना लोक (तितलियों का टापू)का भ्रमण कर आया मन इसे पढ़ते हुए ।
और अंत मे चिंतन को विवश कि फड़फडाती तितलियों के भी स्वप्न टूटते होंगे! मुक्ति हेतु तितलियों की प्रार्थना...!
वाह!!!!
अद्भुत! एवं लाजवाब ।
अनोखे रँग लिए तितलियाँ जीवन में भी नए रँग भर देती हैं ...
ReplyDeleteसार्थक रचना ...
आदरणीया श्वेता सिन्हा जी ! वन्दे मातरम !
ReplyDeleteतितलियों की भाषा और संवाद उनके रंगो से मंचित हो जाते है , उन्हें स्वर देती रचना के लिए , अभिनन्दन !
उत्तम रचना !
आपको बसंत पर्व एवं गणोत्सव की हार्दिक शुभकामनाए !
जय हिन्द ! जय श्री कृष्ण जी !
प्रिय श्वेता दी, तितलियों से गुफ्तगू...कल्पना का बहुत ही सुंदर दृश्य प्रस्तुत किया है आपने।
ReplyDeleteअद्भुत
ReplyDeleteआपकी लिखी कोई रचना सोमवार 6 मार्च 2023 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
बहुत ही सुंदर दृश्य प्रस्तुत किया
ReplyDeleteअत्यन्त सुन्दर एवं अद्भुत रचना....😍
ReplyDeleteधन्यवाद