गर्वित साहित्यिक इतिहास की साक्षी,
भावों की मधुरिम परिभाषा है हिन्दी।
विश्वपटल पर गूँजें ऋचाएँ ससम्मान,
राष्ट्र की अंतस अभिलाषा है हिन्दी।
भावों की मधुरिम परिभाषा है हिन्दी।
विश्वपटल पर गूँजें ऋचाएँ ससम्मान,
राष्ट्र की अंतस अभिलाषा है हिन्दी।
भाषा का जीवन समाज की बोली
प्रगति की होड़ में जल रही होली,
हिन्दी की ज़मीनी सच्चाई नहीं बदली
बाजारवाद के मेले में रिक्त रही झोली,
निरंतर अशुद्धियों के पत्थर से टूटती
आस जीर्णोद्धार की फिर भी न छूटती,
स्वयं को हर दिन देती दिलासा है हिन्दी।
भावों की मधुरिम परिभाषा है हिन्दी।।
आतातायियों की थोपी थाती पोसते
दिवस विशेष पर अंग्रेजी को कोसते,
साहित्य तक सिमटा हिन्दी का अस्तित्व
भविष्य के लिए कितने नवांकुर हम रोपते?
न रहे अंग्रेजी शिक्षितों की पहचान
आओ सब बनाये अब हिन्दी को शान,
पीढ़ियों में जगे रोचकता और उत्सुकता,
अनंत का विस्तार जिज्ञासा है हिन्दी।
भावों की मधुरिम परिभाषा है हिन्दी।।
साहित्यिक तान में मेघ मल्हार है हिन्दी
कहीं शब्द, कहीं भाव के कहार है हिन्दी,
संस्कृतियों के वाहक,सरल,सहज,सुबोध
सदियों से एकता का सूत्रधार है हिन्दी,
अभिव्यक्ति अपनी खोने से बचाना है
अलख हिन्दी की हर दिल में जगाना है,
प्राणवायु देश की राजभाषा है हिन्दी ।
भावों की मधुरिम परिभाषा है हिन्दी।।
-श्वेता
बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteअनंत का विस्तार जिज्ञासा है हिन्दी।
ReplyDeleteभावों की मधुरिम परिभाषा है हिन्दी।।
भारत भू के कोटिशः जन में लोकप्रिय जन-जन की वाणी हिन्दी भाषा के सम्मान में अति उत्तम सृजन ।
'सदियों से एकता का सूत्रधार है हिन्दी'
ReplyDeleteहिन्दी दिवस पर सुंदर रचना
हिंदी के हम, हिंदी हमारी
ReplyDeleteहिंदी की लड़ाई अंग्रेजी से तो नहीं....
ReplyDelete"अंग्रेजी शिक्षितों की न रहे पहचान" .... हिंदी इतनी तो खुदगर्ज नहीं हो सकती.
और न ही अंग्रेजी ने रोका है हिंदी को फैलने से
अगर कहीं दो भाषाओँ के बिच प्रतियोगिता है भी तो वो शुद्ध तो हो
आरोपों से क्या सिद्ध हुआ,
क्या हासिल हुआ?
बाकि रचना अच्छी है.
जी, मेरी लिखी जिन पंक्तियों का आप जो विश्लेषण कर रहे वैसा कुछ हम नहीं सोचते हैं।
Deleteन मुझे अंग्रेजी से दिक्कत है और न ही किसी अन्य लिपि से...
मेरा मंतव्य बस इतना सा है कि आज के समाज में व्यावसायिक स्थलों पर सिर्फ़ अंग्रेजी बोलने पढ़ने और समझने वालों को सुशिक्षित समझा जाता है, हिंदी बोलने वालों को हेय दृष्टि से देखा जाता है ये फ़र्क तो मिटाना ही चाहिए न...।
हिंदी माध्यम से उच्च शिक्षित व्यक्ति अगर अंग्रेजी बोलने में असहज महसूस करता है तो उसका समर्थन तो कोई नहीं करता बल्कि हँसने वाले बहुतेरे मिलेंगे..।
आपका बहूत आभार प्रतिक्रिया के लिए..।
सादर।
बहुत सुन्दर श्वेता. तुमने अपनी कविता में हिंदी की और देवनागरी लिपि की महत्ता दर्शाते हुए अन्य भाषाओँ पर और अन्य लिपियों पर कोई प्रहार नहीं किया है, इसके लिए मैं तुम्हें बधाई देता हूँ.
ReplyDeleteहिंदी के उत्थान के लिए, उसे सर्व-ग्राह्य बनाने के लिए हमको सहिष्णुता की और गुण-ग्राह्यता की नीति अपनानी होगी.
हर भाषा के कंचन को हमको अपनी हिंदी में लाना होगा.
हमको यह याद रखना होगा कि हिंदी केवल हिन्दुओं की नहीं बल्कि सारे हिन्द की भाषा है.
बहुत सुंदर भाव प्रवण सृजन प्रिय श्वेता, हिन्दी को समुच्चय आदर दिलवाना हिन्दी साहित्यकारों का दायित्व बनता जा रहा है।
ReplyDeleteसाहित्यिक तान में मेघ मल्हार है हिन्दी
ReplyDeleteकहीं शब्द, कहीं भाव के कहार है हिन्दी,
संस्कृतियों के वाहक,सरल,सहज,सुबोध
सदियों से एकता का सूत्रधार है हिन्दी,
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बहुत सुन्दर पन्क्तियों से सुसज्जित कविता...
न रहे अंग्रेजी शिक्षितों की पहचान
ReplyDeleteआओ सब बनाये अब हिन्दी को शान,
पीढ़ियों में जगे रोचकता और उत्सुकता,
अनंत का विस्तार जिज्ञासा है हिन्दी।
भावों की मधुरिम परिभाषा है हिन्दी।।
काश हिन्दी को शान समझें सभी ...अंग्रेजी अपनाना गलत नहीं बस हिंदी और हिंदीभाषियों को हेय ना माने..
बहुत सुंदर सार्थक लाजवाब सृजध
वाह!!!
बहुत बढ़िया,
ReplyDeleteभाषा के महत्त्व को बाखूबी लिखा है आपने ... हिन्दी को अपना स्थान मिल सके ये भाव सभी के मन में रहेगा तो स्थान भी मिलेगा ...
ReplyDeleteअति सुन्दर रचना !
ReplyDeleteइस देश की बिंदी है हिंदी !
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सार्थक सृजन, स्वेता दी।
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