सर्दियों की अंधेरी भोर में
ठंडी हवा कराह रही है,
पृथ्वी लोहे की तरह कठोर है,
पानी पत्थर की तरह;
जिसके हल्के से छू भर जाने से
देह सिहरने लगा और
उंगलियाँ बेहोश होने लगी,
बहुत देर के बाद सूरज के छींटों से होश आया...
मूँगफली का सोंधापन,
मटर की छीमियों की मिठास
अगींठी के इर्द-गिर्द
स्मृतियों की खोई कड़ियों को चुनता
एक उनींदा दिन;
पलक झपकते ही
गुलाबी दुशाल लपेटकर
गुलाब,गुलदाउदी ,गेंदा की क्यारियों से
तितलियों,भौंरों के परों पर उड़ता हुआ
केसरी होकर साँझ के स्याह कजरौटे
में समा जाता है।
- श्वेता सिन्हा
सुन्दर
ReplyDeleteवाह।
ReplyDeleteमोसम सामने से गुज़र गया ... लजवाब ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteशोध-कार्य हेतु आपसे बात करनी थी I कृपया संपर्क क्रमांक मिले तो बात हो सकेगी I
ReplyDeleteउनींदा दिन साँझ के स्याह कजरौटे में समा गया...
ReplyDeleteसूरज के छींटों से होश आना !
बहुत ही लाजवाब....
कमाल का सृजन
वाह!!!
मूँगफली की सौंधी महक ,मटर की मिठास.., अंगीठी पर हाथ तापने का अहसास कुनकुनी धूप जैसा लगा । बहुत सुंदर शब्द चित्र !!
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